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धर्मेन्द्र कुमार सिंह
  • Male
  • Raigarh, CG
  • India
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धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Discussions

बहर सारिणी
7 Replies

ग़ज़ल की बहरें समझना बहुत टेढ़ी खीर है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बहर के बारे में जानकारी तो बहुत ज्यादा मिल जाती है अंतर्जाल पर पर कहीं भी व्यवस्थित ढंग से नहीं मिलती। तो जहाँ सूचना ज्यादा हो वहाँ उसको…Continue

Started this discussion. Last reply by Admin Jan 30, 2011.

 

धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Page

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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post नफ़रत का पौधा (नवगीत)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी,  सहज कथ्य एवं सार्थक निर्वहन से यह नवगीत पठनीय बन पड़ा है। तथा, विशिष्ट मनोदशा को शाब्दिक करती यह रचना अपने हेतु में सफल है।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय.  शुभ-शुभ"
May 22

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post नफ़रत का पौधा (नवगीत)
"आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, इस उत्कृष्ट नवगीत हेतु हार्दिक बधाई और आभार. प्रतीक अपने भावों को प्रेषित करने में सफल हुए. सादर  "
May 16
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

नफ़रत का पौधा (नवगीत)

महावृक्ष बनकर लहरातानफ़रत का पौधापत्ते हरे फूल केसरियालाल-लाल फल आतेप्यास लहू की लगती जिनकोआकर यहाँ बुझातेसबसे ज्यादा फल खाने कीचले प्रतिस्पर्द्धाकिसमें हिम्मत इसे काट देउठा प्रेम की आरीइसकी रक्षा में तत्पर है वानर सेना सारी कैसे-कैसे काम कराये  निरी अंधश्रद्धा पंखों वाले बीज हुये हैंउड़-उड़ कर जायेंगेभारत के कोने-कोने मेंनफ़रत फैलायेंगेलोग लड़ेंगेलोग मरेंगे रोयेगी वसुधारोपा इसको राजनीति नेलेकिन खाद और पानीवो देते जिनके घर बैठीरक्तकमल पर लक्ष्मीजनता मूरख समझ न पाये यह…See More
Apr 26
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में (नवगीत)
"आदरणीय सौरभ  जी, नवगीत की विवेचना और इस अपार स्नेह के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ"
Dec 21, 2022

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में (नवगीत)
"विवश मनोदशा को जिस गहराई से महसूस कर नवगीत की रचना की गयी है कि शाब्दिक हुई सोच वर्ग निर्पेक्ष हुई समाज की आधी आबादी का प्रस्तुतीकरण हो गयी है. उन्मुक्त उड़ान तो अपने स्थान पर दायरे से बाहर निकलना तक मुहाल न हो तो मैना क्या कहे, क्या न कहे…"
Dec 21, 2022
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में (नवगीत)
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Dec 20, 2022
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में (नवगीत)
"आ. भाई धर्मेंन्द्र जी, सादर अभिवादन। अच्छा नवगीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16, 2022
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में (नवगीत)

मैना बैठी सोच रही हैपिंजरे के दिल मेंमिल जाता है दाना पानीजीवन जीने में आसानीसुनती सबकी बात सयानीफिर भी होती है हैरानीमुझसे ज्यादा ख़ुश तोचूहा है अपने बिल मेंजब तक बोले मीठा-मीठासबको लगती है ये सीताजैसे ही कहती कुछ अपनासब कहते बस चुप ही रहनाअच्छी चिड़िया नहीं बोलती ऐसे महफ़िल मेंबहुत सलाखों से टकराईपर पिंजरे से निकल न पाईचला न कुछ भी जादू टोना टूट गया है पंख सलोना इतनी हिम्मत जाने किसने भर दी बुजदिल में---------------------(मौलिक एवं अप्रकाशित)See More
Nov 16, 2022
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छा नवगीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Nov 15, 2022
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी। सुधार कर दिया है। "
Nov 14, 2022
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"बहुत बहुत शुक्रिया जनाब Samar kabeer साहब। सुधार कर दिया है। देर से उत्तर देने के लिए क्षमा चाहता हूँ। कुछ व्यस्तता थी इधर बीच। "
Nov 14, 2022
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Mahendra Kumar जी "
Nov 14, 2022
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

मरती हुई नदी (नवगीत)

तड़प रही हैगर्म रेत परमरती हुई नदीपहले तो बाँधों ने लूटाफिर पावर प्लांटों ने लूटातिस पर सारे नाले मिलकरहर पल इसको देते कैंसरजल्द हमारे कंधों परहोगी ये लाश लदी मरती नदियाँ मरते जंगलपूँजी का मंगल ही मंगलछोड़ सूर्य की साफ ऊर्जाहोता जीवाश्मों पर दंगलबात-बात पर खाँस रही हैये बीमार सदीगर्म हो रही सारी दुनियाभजन करें सब ले हरमुनियाप्रभु जी झूम रहे हैं सुनकरसिसक रहा बेचारा फ़्यूचरमंदिर पर मंदिर बनवाएपूँजी की नकदी----------------------(मौलिक एवं अप्रकाशित)See More
Nov 13, 2022
Mahendra Kumar commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"पर्यावरणीय चिन्ताओं पर बढ़िया नवगीत लिखा है आपने आ. धर्मेन्द्र जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। कृपया गुणीजनों का संज्ञान लें।"
Oct 2, 2022
Samar kabeer commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब, हालात-ए-हाज़िरा पर अच्छा नवगीत लिखा आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I  'होता है कोयले पर दंगल'--इस पंक्ति की मात्राएँ एक बार चेक कर लें I "
Sep 16, 2022
जयनित कुमार मेहता commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post मरती हुई नदी (नवगीत)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी, इस नवगीत के माध्यम से वर्तमान परिदृश्य का सटीक चित्रण किया है आपने। रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sep 16, 2022

Profile Information

Gender
Male
City State
रायगढ़, छत्तीसगढ़
Native Place
प्रतापगढ़
Profession
अभियांत्रिकी

धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Blog

नफ़रत का पौधा (नवगीत)

महावृक्ष बनकर लहराता

नफ़रत का पौधा

पत्ते हरे फूल केसरिया

लाल-लाल फल आते

प्यास लहू की लगती जिनको

आकर यहाँ बुझाते

सबसे ज्यादा फल खाने की…

Continue

Posted on April 26, 2023 at 9:53am — 2 Comments

मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में (नवगीत)

मैना बैठी सोच रही है

पिंजरे के दिल में

मिल जाता है दाना पानी

जीवन जीने में आसानी

सुनती सबकी बात सयानी

फिर भी होती है हैरानी

मुझसे ज्यादा ख़ुश तो

चूहा है अपने बिल में

जब तक बोले मीठा-मीठा

सबको लगती है ये सीता

जैसे ही कहती कुछ अपना

सब कहते बस चुप ही रहना

अच्छी चिड़िया नहीं बोलती 

ऐसे महफ़िल में

बहुत सलाखों से टकराई

पर पिंजरे से निकल न पाई

चला न…

Continue

Posted on November 16, 2022 at 11:30am — 4 Comments

मरती हुई नदी (नवगीत)

तड़प रही है

गर्म रेत पर

मरती हुई नदी

पहले तो बाँधों ने लूटा

फिर पावर प्लांटों ने लूटा

तिस पर सारे नाले मिलकर

हर पल इसको देते कैंसर

जल्द हमारे कंधों पर

होगी ये लाश लदी 

मरती नदियाँ मरते जंगल

पूँजी का मंगल ही मंगल

छोड़ सूर्य की साफ ऊर्जा

होता जीवाश्मों पर दंगल

बात-बात पर खाँस रही है

ये बीमार सदी

गर्म हो रही सारी दुनिया

भजन करें सब ले…

Continue

Posted on September 16, 2022 at 12:00am — 7 Comments

कब तक झुट्टे को पूजोगे (ग़ज़ल)

बह्र : 22 22 22 22

जब तक पैसे को पूजोगे

चोर लुटेरे को पूजोगे

जल्दी सोकर सुबह उठोगे 

तभी सवेरे को पूजोगे

खोलो अपनी आँखें वरना

सदा अँधेरे को पूजोगे

नहीं पढ़ोगे वीर भगत को

तुम बस पुतले को पूजोगे

ईश्वर जाने कब से मृत है

कब तक…

Continue

Posted on August 27, 2022 at 7:30pm — 14 Comments

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At 12:19am on September 23, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आदरणीय बड़े भाई  धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, 

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

At 8:41pm on September 22, 2013, जितेन्द्र पस्टारिया said…

" जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें " आदरणीय धर्मेन्द्र जी

At 11:20am on September 22, 2013,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 10:23pm on December 13, 2012, seema agrawal said…

स्वागत है धर्मेन्द्र जी 

At 6:18pm on September 22, 2012,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 10:06am on September 22, 2012,
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
said…

भाई धर्मेन्द्रजी, 

सरल, सफल, सहज, सुगढ़
सुफल, सुमिल, सुधी
सस्वर.. .
संयत, सुहृद, सुभाव, सशब्द
संभव सदा
सबल-प्रखर.. .
शुभभावना-शुभकामना-सुसंस्मरण संप्रेष्य है !

अनेकानेक बधाइयाँ.

At 9:20am on September 22, 2012, Er. Ambarish Srivastava said…

कविता शुचिता शिल्प से, शोभित मित्र कविन्द्र.

जन्मदिवस    शुभकामना,   भाई   जी   धर्मेन्द्र..    सादर   

At 8:15am on September 22, 2012, कुमार गौरव अजीतेन्दु said…

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय धर्मेन्द्र सर.........

At 12:10pm on September 21, 2012, लक्ष्मण रामानुज लडीवाला said…

जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाए स्वीकारे आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, 

प्रभु आपको समाज और देश निर्माण में योगदान देने की शक्ति प्रदान करे | आपका 

हमारा स्नेह बना रहे |

At 1:55pm on April 7, 2011, nemichandpuniyachandan said…
aapki zarra-nawazee ke liye sukariya.
 
 
 

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