For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Raj Tomar
  • Male
  • Pune, MH
  • India
Share on Facebook MySpace

Raj Tomar's Friends

  • Ashish Pandey
  • shadab ali
  • Jeet Ratnam
  • Dhruva
  • Vipul Kumar
  • Natwar singh tomar
  • deepti sharma
  • Albela Khatri
  • srinidhi mishra
  • डॉ. सूर्या बाली "सूरज"
  • rajesh kumari
  • वीनस केसरी
  • धर्मेन्द्र कुमार सिंह
  • ASHISH ANCHINHAR
  • आशीष यादव
 

Raj Tomar's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Pune
Native Place
Rewa
Profession
Teaching

Raj Tomar's Blog

तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है

तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है

तुझमे मिलती है खुशी और सहारा क्या है

तेरी यादों की कोई रुत तो नहीं होती, गो  

दिल तड़प तो रहा है ये इशारा क्या है

गम हैं तो और मुहब्बत के सिवा किस्मत में

और गम में किसी हो मौज इज़ारा क्या है

चाँद निकले है शब-ए-हिज़्र मगर कह दे तू

माह-ए-दह्र में कुछ भी यूँ हमारा क्या है

दिल जला है यूँ बहुत, खाक सिवा सर पे तू

तेरी यादों के सिवा और ये हारा क्या है !!



नोट:- मैंने ये गज़ल ३०मि में लिखी है.…

Continue

Posted on January 4, 2013 at 2:00pm — 2 Comments

अब भी चाँद चमकता है

अहा!अब भी चाँद चमकता है
तुम अब भी प्यारी लगती हो.
यूँ अब भी प्यार भटकता है
तुम दुनिया सारी लगती हो !

वो कल के बीते ताने-बाने
तुम आज कहानी लगती हो
वो सुन्दर खाब के अफसाने
तुम जानी पहचानी लगती हो!

देखो,वो सरगम वो साज सभी
तुम मेरी निशानी लगती हो.
मुझे बीता कल सब याद अभी
तुम परियों की रानी लगती हो !! .

Posted on October 17, 2012 at 11:00pm

तेरी यादों का श्रृंगार सजा

तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.

वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.

कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.

मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!

Posted on October 10, 2012 at 7:22pm — 12 Comments

यूँ कभी कभी

   यूँ कभी कभी मन में उठती है तरंग 

   बार-बार कहता कुछ विचलित मन 

   मस्तिष्क पटल पर छा जाते वो साज सभी 

   कानों में आती गुंजन की आवाज़ कभी 

   दिखती है आँखों में बिजली सी चमक कहीं 

   लगता है खोया गया सर्वस्व यहीं !

   देती है भाँवर सी फेरी वो कभी ख्यालों में मेरे 

   न जाने क्या पूंछा करती वो मुझसे साँझ सबेरे 

   बालों को लहरा के हवा आके छू जाती है मुझको 

   अपलक वो देखा करती पता नहीं क्यों खुद को 

   खिल गई कली चपला सी…

Continue

Posted on July 15, 2012 at 10:00pm — 5 Comments

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:19pm on June 14, 2012, ajay sharma said…

its really great to be added , just waiting for approval ,,,,, till then i must say ..........खुशियों ने ऊँचे दामो की फिर पक्की दूकान लगायी
इक तो गाव अभावो का mai 
और उपर से ये महगाई
इक नहीं जाने कितने ही सिन्धु रचे मैंने पन्नो पर
लेकिन जब जब प्यास लगी तो बूँद बूँद से ठोकर खायी 

At 3:15pm on May 16, 2012, डॉ. सूर्या बाली "सूरज" said…

तोमर जी नमस्कार ! आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आई और  आपकी दाद मिली अच्छा लगा । आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service