For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ajay sharma
  • Male
  • up
  • India
Share on Facebook MySpace

Ajay sharma's Friends

  • somesh kumar
  • शिज्जु "शकूर"
  • वेदिका
  • Pushyamitra Upadhyay
 

Welcome, ajay sharma!

Profile Information

Gender
Male
City State
lakhimpur kheri
Native Place
lakhimpur kheri
Profession
banking employee
About me
so cute when listened , real hope for pessimists

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी 

रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी 
जीने का हक़ मिला था जिसे कल ही आज वो 
मरने का सबब ढूंढ रहा आम आदमी 
इस दौर-इ-तरक्की में बदल जायेंगे सभी
लेकिन रहेगा आम ही ये आम आदमी 
ऊँची हवेलियों के चिरागों के वास्ते 
ढलता है बनके शाम यही आम आदमी 

ajay sharma's Photos

  • Add Photos
  • View All

Ajay sharma's Blog

इक तेरे जाने के बाद...........

कोई भी लगता नहीं अपना , तेरे जाने के बाद

हो गया ऐसा भी क्या , इक तेरे जाने के बाद १

ढूँढता रहता हूँ , हर इक सूरत में

खो गया मेरा भला क्या , इक तेरे जाने के बाद २

न महफिलें कल थी , ना है दोस्त आज भी कोई

अब मगर तन्हा बहुत हूँ , इक तेरे जाने के बाद ३

बिन बुलाए ख़ामोशी , तन्हाई , बे -परवाहपन

टिक गये हैं घर में मेरे , इक तेरे जाने के बाद ४

पूँछते हैं सब दरोदिवार मेरे , पहचान मेरी

अब तलक लौटा नहीं घर , इक तेरे जाने के बाद ५

तोड़ कर सब रख दिए मैंने ,…

Continue

Posted on August 28, 2017 at 11:46pm — 3 Comments

देख कर तुझको , निखर जाएॅगे.

देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।

हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.

तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे

तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।

दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक

घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।

दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम

पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।

वो समन्दर था , मगर भटका नहीं

हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।

दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब

छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।

सच्चे इक प्यार के मोती के लिये

हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे…

Continue

Posted on January 8, 2016 at 12:05am — 6 Comments

चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे..................

चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे

तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................

जब छा जाएँगे रिश्तों के निपट अंधेरे

और थकन की धूल पाँव से सर तक बोलेगी

थकते थकते जब इक दिन चुक जाएँगे

तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................

जब जब बोले हैं , बोले हैं खामोशी से हम

और प्रति-उत्तर भी पाए हैं , वैसे ही हमने

मिलते मिलते मौन कहीं जब थक जाएँगे

तेरी बाहों में हम छुप…

Continue

Posted on April 1, 2015 at 11:29pm — 7 Comments

मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर..........

बद -गुमानी थी मुझे क़िस्मत पे , मगर

मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर

हज़ार बार मुझे टोंका उसने , सलाह दी ,

ख़याल आया मुझे उसका , ठोकर पे , मगर

सुबह से हो गयी शाम और अब रात भी

पैर हैं कि थकने का , नाम नहीं लेते , मगर

वो खरीददार है , कोई क़ीमत भी दे सकता है

अभी आया है कहाँ , वो मेरी चौखट पे , मगर



करो गुस्सा या कि नाराज़ हो जायो "अजय"

सितम जो भी करो , करो खुद पे , मगर

अजय कुमार…

Continue

Posted on March 10, 2015 at 11:59pm — 9 Comments

ajay sharma's Videos

  • Add Videos
  • View All

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:39pm on July 4, 2013, सानी करतारपुरी said…

आदरणीय अजय जी, हौंसला-अफजाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ .. आपकी दाद मेरे लिए कीमती है ..

At 11:03pm on October 15, 2012, डॉ. सूर्या बाली "सूरज" said…

अजय जी नमस्कार ! आपको मेरी ग़ज़ल के चंद शेर पसंद आए और आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया मिली बहुत अच्छा लगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया। 

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service