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शिज्जु "शकूर"
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बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय भाई शिज्जु 'शकूर' जी इस खूबसूरत ग़ज़ल से रु-ब-रु करवाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।  ​"
15 hours ago

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शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो जगह आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ- //चिंता जली जीवन हुआ..// यहाँ कुछ गड़बड़ लग रही है, देख लीजिएगा। //धारित करती देह जब..// धारित के साथ करती कुछ…"
yesterday

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शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
yesterday

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शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
yesterday

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शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना' शब्द ख़ास मक़सद से लिया था। बहरहाल, तरमीम कर लिया है, गौर फरमाइएगा‌ //न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे मैं उलझनों में हूँ मुझको कहाँ…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहित करती है। आपने जिस मिसरे को रेखांकित किया है, उसे यूँ बदला है।//न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरेमैं उलझनों में हूँ मुझको कहाँ ठहरना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
Saturday
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई देमुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना है.. इस शेर तक मैं पहुँच नहीं पा रहा हूँ.. शाम को फोन पर समझने का प्रयास करूँगा .ग़ज़ल के लिए बधाई "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके अनुभवों का परिचायक है.  भाई शिज्जू जी, इन सुझावों खे बरअक्स पर आपनी राय दें और अपने अनुसार और कुछ कहें, तो यह गजल और निखर जाएगी.  शुभ-शुभ"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश करने की जसारत कर रहा हूँ -  न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे ये जानता ही नहीं हूँ कहाँ ठहरना है उन्हें उजालों से तकलीफ़ हो रही…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ ..  मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना है .... क्या सतर्कता है, भाई ! .. बहुत खूब मैं देखता हूँ तुझे भी वो…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है  हार्दिक बधाई   पूरी ग़ज़ल बेहतरीन हुई है , एक एक शेर के लिए बधाई  आपको "
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई देमुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना हैनज़ारा कोई दिखा दे ये शब तो वक्त कटेइसी के साथ सहर होने तक ठहरना हैन जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरेकोई ये काश बता दे कहाँ उतरना हैये दिल भी देखता है बारहा वही सपनेज़मीं पे आके बिल-आखिर जिन्हें बिखरना हैउन्हें उजालों से तकलीफ़ होती है ऐ दोस्तजिन्हें अँधेरों से अपना जहान भरना हैउन्हें चमन से न फूलों से है कोई रग़बतमगर मुझे यूँ न…See More
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम करता आया हूँ, यह मंच भी आपका एह्तराम करता है। इस घटना के लिए आपको कोई दोष नहीं दे रहा है। किसी ने आपके खिलाफ़ कुछ नहीं कहा। यहाँ चर्चा का विषय आप या…"
Thursday

Profile Information

Gender
Male
City State
Raipur
Native Place
Raipur
Profession
Freelance Creative writer
About me
I emotional and introvert person usually like to spend time alone, it is selfish nature because sometimes our beloved one wishing to spend time with us

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शिज्जु "शकूर"'s Blog

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112



मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

मगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना है



मैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई दे

मुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना है



नज़ारा कोई दिखा दे ये शब तो वक्त कटे

इसी के साथ सहर होने तक ठहरना है



न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे

कोई ये काश बता दे कहाँ उतरना है



ये…

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Posted on May 1, 2025 at 12:20pm — 13 Comments

ग़ज़ल: आईना सामने रखा

2112 1212 2112 1212

आइना सामने रखा तुमने कमाल कर दिया

हो गए ला-जवाब वो ऐसा सवाल कर दिया

उनको गुरूर था बहुत जीत पे अपनी कल तलक

ख़ौफ़-ए-शिकस्त ने उन्हें आज निढाल कर दिया

तेज़ हवा ने यक-ब-यक जिस्म से खींच ली कबा

खुल गए ज़ख्म दुनिया को वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया

ज़ोर चला है वक़्त पर कब किसी का बताइए

शम्स को भी तो वक्त ने पल में हिलाल कर दिया

जड़ दिए एक एक कर मेरे हुरूफ़ में गुहर 

सागर-ए-इश्क़ ने मुझे…

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Posted on July 13, 2023 at 9:21am — 4 Comments

ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं(ग़ज़ल)

2122 2122 2122 212

ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं

अपनी सांसों से मेरी फिर गुफ़्तगू होती नहीं

गर तड़प होती न मेरे दिल में तुझको पाने की

मेरी आँखों में, मेरे ख्वाबों में तू होती नहीं

उम्र गुज़री है यहाँ तक के सफ़र में, दोस्तो!

पर ये वो मंज़िल है, जिसकी जुस्तजू होती नहीं

ये जहाँ गिनता है बस कुर्बानियों की दास्ताँ

जाँ लुटाये बिन मुहब्बत सुर्ख-रू होती नहीं

दोस्तों के दिल मुनव्वर जो नहीं होते 'शकूर'

रौशनी भी…

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Posted on July 13, 2020 at 1:09pm — 9 Comments

एक ग़ज़ल - शिज्जु शकूर

221 2121 1221 212

बे-ख़्वाब आँखों में दबे लम्हात से अलग
गुज़री है ज़िन्दगानी अलामात से अलग

दस्तार रह गई है रवाजों के दरमियाँ
पर इश्क़ खो गया है रिवायात से अलग

जीने की चाह में हुआ बंजारा आदमी
बस घूमता दिखे है मक़ामात से अलग

किस रिश्ते की दुहाई दूँ अहल ए जहाँ को मैं
है क्या यहाँ पे कहिये फ़सादात से अलग

वो वक़्त और ही था कि मौसम बदलते थे
मौसम रहा न अब कोई बरसात से अलग

-मौलिक व अप्रकाशित

Posted on November 12, 2018 at 1:26pm — 13 Comments

Comment Wall (31 comments)

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At 6:39am on July 2, 2018, राज़ नवादवी said…

आदरणीय शिज्जू शुकुर साहब, तरही मुशायरे में मेरी ग़ज़ल में शिरकत का दिल से शुक्रिया. समयाभाव था, कमेंट बॉक्स बंद हो चुका है. इसलिए यहाँ से आभार प्रकट कर रहूँ हूँ.सादर 

At 10:50pm on April 18, 2016, RATNA PRIYA PANDEY said…
धन्यवाद सर
At 7:06pm on January 3, 2016, Sushil Sarna said…

नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।

सुशील सरना

At 9:27pm on April 19, 2015, Mala Jha said…
सप्रेम धन्यवाद महोदय मुझे OBO जैसे प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए।बहुत बहुत आभार आपका।
At 9:48am on December 31, 2014, Rahul Dangi Panchal said…
आदरणीय शिज्जू "शकूर" जी आपका स्वागत है ! और धन्यवाद भी कि आपने मुझ कम बुद्धि को भी अपनी दोस्ती के काबिल समझा! सादर!
At 9:42pm on June 18, 2014, Sushil Sarna said…

aadrneey Shijju Shakoor saahib aapke margdarshan ka main aabhaaree hoon....koshish kroonga ki bataaee bahar pr aage badh skoon....tahe dil se shukriya

At 7:39pm on June 17, 2014, Sushil Sarna said…

हा हा हा …… बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जु शकूर जी आपने हमारी रचना को कविता का दर्जा तो दिया। .... काश हमें भी ग़ज़ल लिखने का अंदाज़ आ जाए ? सर मेरी कोशिश तो ग़ज़ल लिखने की थी मगर बह्र में उलझता चला गया कभी ११२ कभी ११२१ करता फिर जब उलझन से छुटकारा न मिला तो रचना बना कर डाल दिया। आप की ज़र्रा नवाज़ी होगी अगर मेहरबानी करके इसी की नीचे लिखी चंद पंक्तियों की बह्र बना कर मुझ नौसिखिये को ग़ज़ल का हुनर सिखाएंगे। तकलीफ के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ। शुक्रिया

अपनी हर सांस में...तुझे करीब पाता हूँ
तुझे हर ख्याल में अपना हबीब पाता हूँ
बिन तेरे ज़िंदगी की हर मसर्रत है झूठी
राहे वफ़ा में तुझे अपना नसीब पाता हूँ

At 3:39pm on June 3, 2014, Sushil Sarna said…

aadrbeey Shajju jee, namaskaar-kya apko aik takleef de sakta hoon ? aapkee kripa hogee yadi mujhe thoda sa trhee gazal kya hotee hai, btaayenge. gazal to samajh rhaa hoon pr trhee gazal smajh naheen aa rhee.aapke amuly smay men se kuch smay maang rhaa hoon, please dont mind. 

sushil sarna

At 10:59am on June 3, 2014, RACHNA JAIN said…

आपकी सभी रचनाएँ बहुत खूब हैं सर .... फिर भी, आपकी सलाह पर अमल करेंगे ... शुक्रिया !!

At 10:25am on June 3, 2014, RACHNA JAIN said…

बहुत खूब लिखा सर आपने... बधाई ...!!

 
 
 

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