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Ashok Kumar Raktale
  • Male
  • Ujjain,M.P.
  • India
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी देह को, क्या दे राहत छाँव।५।... धूप के पाँव....बहुत सुन्दर प्रयोग   जन-जन तरसे बूँद  को,  अभी दूर बरसात।  जल रक्षण की पर नहीं, नगर…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती  नहीं, माँगे यह  तन नीर।। * माह  मई   तपने   लगा, बरस   रहा   अंगार। रोम-रोम  से  स्वेद  की, फूट   पड़ी   है   धार।। * सूरज   आँखें   फाड़कर, जहाँ  रहा  ललकार। वहीँ  चुनौती  दे  रही,…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत सुन्दर सुझाव आदरणीय सौरभ जी दे चुके हैं. सच है दोहे को प्रभावकारी बनाने के लिए एक बार पढ़कर कुछ परिमार्जन किया ही जा सकता है. सामयिक घटना पर दोहे रचने…"
Tuesday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रदत्त विषयानुसार मैंने युद्ध की अपेक्षा शान्ति को वरीयता दी है. युद्ध के दुष्परिणामों से सभी भलीभांति परिचित हैं. मेरा मानना है युद्ध धरती को मरघट में तब्दील कर सकता है किन्तु सर्वकालिक सुख, चैन, शान्ति नहीं दे सकता है.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"   आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, नाश सृष्टि का इस करना/ इस सृष्टि का नाश करना/...गेयता के लिए शब्दों को मानी परिधि में आगे-पीछे किया है. प्रस्तुत गीत रचना पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"  आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना को प्रदत्त विषयानुरूप पाने के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"युद्ध हो जाता है तब आवश्यक शांति संदेश जब निरर्थक हों.......सत्य कहा है आपने.   आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त विषय  पर बेबाकी से युद्ध और शान्ति का पक्ष रखती सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
May 11
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ये झगड़े फिर बढ़ेंगे ध्यान रखना सुलह तो जंग से भी पुर ख़तर है....वाह ! वाह ! आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी सादर, प्रदत्त विषयानुसार उम्दा ग़ज़ल हुई है आपकी. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
May 11
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शान्ति और युद्ध   कारण और अकारण कितने, युद्धों से इतिहास भरा है। वीरों के खोने का दिल पर, ज़ख्म आज तक बना हरा है। और युद्ध हो एक नया अब, ऐसी कोई चाह नहीं है। युद्ध शान्ति की राह नहीं।   अमन रहेगा जब दुनिया में, उन्नति का तब पथ…"
May 11
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है. इसीलिए  समझदार शासक  बहुत आवश्यक होने पर ही युद्ध का रुख करते हैं. प्रदत्त विषय पर सुन्दर दोहे रचे हैं आपने आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.…"
May 10
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
" आदरणीय सुशील सरना जी सादर, जीवन के सत्य पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सचमुच हर इंसान यहाँ बंजारे समान जीवन व्यतीत करता है और श्मशान ही उसका अंतिम ठौर है. तृतीय दोहे के तीसरे चरण में 'वास्ते' 212 के  लिए…"
May 6
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
May 4
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. उज्वल/उज्ज्वल. सादर "
May 4
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
May 4

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
May 2

Profile Information

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Male
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Ujjain
Native Place
Ujjain
Profession
service
About me
I am a technical person and always talk in right angle.

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मनहरण घनाक्षरी

रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,

छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।

वंश  के  विराट  वृक्ष के  तने  पे  डाल  और,

पात  संग  फूल सा  शृंगार होतीं बेटियाँ।

बाँधती  दिलों  की  डोर, देखती न ओर छोर,

रेशमी  हिसार…

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Posted on April 28, 2025 at 8:19am — 16 Comments

लौट रहे घन

लौट रहे घन

बाँध राखियाँ

धरती के आँगन को

हर इक प्यासे मन को

 

हरी-भरी चूनर में

धरती

मंद-मंद मुस्काये

हरा-भरा खेतों का

सावन

लहराये-इतराये

 

प्रेम प्रकट करने

झुक आयीं

शाखें नील गगन…

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Posted on August 22, 2024 at 6:59pm — 6 Comments

दिल चुरा लिया

२२१ २१२१   १२२१  २१२

  

उसने  सफ़र में उम्र  के  गहना  ही  पा लिया

जिसने तपा के जिस्म  को  सोना बना लिया

 

दो  वक़्त  भी  जिसे  कभी  रोटी  नहीं मिली

उसने भी ज़िन्दगी  का  यहाँ   पे मज़ा लिया

 

कहते हैं लोग उसको  मुहब्बत का बादशाह

जिसने वफ़ा  निभाई  मगर दिल  चुरा लिया

 

उल्फ़त  की  राह  हो  भले  काँटों  भरी बहुत  

चलकर  इसी  पे  हमने  मुक़द्दर  जगा लिया

 

हैरान  कर   गयी  है…

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Posted on August 6, 2024 at 2:30pm — 8 Comments

गीत - पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा

 

रात के हुस्न  पर थी  टँकी चाँदनी

पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा 

चाँद पाने की कोशिश नहीं थी मगर

चाँद छूने को ही मैं मचलता रहा

 

सिक्त आँचल हिलाती रही रात भर

फिर भी गुमसुम हवा ही बही रात भर

कुछ सितारे ही बस झिलमिलाते रहे

धैर्य  की  ही  परीक्षा चली रात भर

 

प्रीति के दर्द को भी दबाये हुए

घूँट आँसू के ही मैं निगलता रहा

 

चाँद आया नहीं देर तक सामने

स्याह बादल लगे चादरें…

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Posted on July 16, 2024 at 5:43pm — 6 Comments

Comment Wall (24 comments)

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At 3:43pm on September 4, 2016, kanta roy said…
सार्थक रचना का सम्मानित होना अच्छा लगता ही है।
"मन उस आँगन ले जाय" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित होने के लिये बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अशोक जी।
At 11:52pm on August 17, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी  गीतिका : मन उस आँगन ले जाय को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 5:31pm on July 23, 2014, seemahari sharma said…
बहुत बहुत आभार आदरणीय अशोक रकताले जी।
At 8:43pm on June 15, 2014, mrs manjari pandey said…
आदरणीय रक्ताले जी बहुत बहुत धन्यवाद। वस्तुतः विषय तो चिंतनीय है ही .
At 5:01pm on July 26, 2013, Dr Ashutosh Vajpeyee said…

ashok ji apne Mujhe aur Om neerav ji ko FB par Block kar diya is baat se ham logon ko ateev kasht hua hai ham dono hi yah jaan lena chahtey hain ki kis apradh ke liye apne hame yah dand diya aur kavita lok group kyon chhoda,,,,uttar ki prateeksha me me vyagra hoon

At 10:35am on June 10, 2013, D P Mathur said…

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले सर हौंसला बढ़ाने के लिए आपका आभार !

At 6:13pm on May 8, 2013, Dr Dilip Mittal said…

आदरणीय इसी तरह आशीर्वाद बनाए रखें 

हार्दिक आभार 
At 7:40pm on May 4, 2013, Dr Dilip Mittal said…

आपके प्रोत्साहन भरे भावों के लिए शुक्रिया 

At 1:51pm on February 27, 2013, Meena Pathak said…

सादर आभार 

At 11:53pm on February 22, 2013, बृजेश नीरज said…

आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!

 
 
 

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