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रात के हुस्न पर थी टँकी चाँदनी
पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा
चाँद पाने की कोशिश नहीं थी मगर
चाँद छूने को ही मैं मचलता रहा
सिक्त आँचल हिलाती रही रात भर
फिर भी गुमसुम हवा ही बही रात भर
कुछ सितारे ही बस झिलमिलाते रहे
धैर्य की ही परीक्षा चली रात भर
प्रीति के दर्द को भी दबाये हुए
घूँट आँसू के ही मैं निगलता रहा
चाँद आया नहीं देर तक सामने
स्याह बादल लगे चादरें…
ContinuePosted on July 16, 2024 at 5:43pm — 4 Comments
2122 1212 112/22
*
ज़ीस्त का जो सफ़र ठहर जाए
आरज़ू आरज़ू बिख़र जाए
बेक़रारी रहे न कुछ बाक़ी
फ़िक्र का दौर ही गुज़र जाए…
ContinuePosted on June 25, 2024 at 3:30pm — 2 Comments
तारकोल से लगा चिपकने
चप्पल का तल्ला
बिगड़े हैं सुर मौसम के अब
कहे स्वेद की गंगा
फागुन में घर बाहर तड़पे
हर कोई सरनंगा
दोपहरी में जेठ न तपता
ऐसे सौर तपाए
अपनी पीड़ा किसे बताए
नया-नया कल्ला
पेड़ों को सिरहाना देती
खुद उसकी ही छाया
श्वानो जैसी उस पर पसरे
आकर मानव काया
जो पेड़ों को काटे ठलुआ
बढ़कर धूप उगाए
अपनी गलती से वह भी तो
झाड़ रहा…
ContinuePosted on March 28, 2024 at 10:41pm — 5 Comments
गहरे तल पर ठहरे तम-सा,
ठहरा यह जीवन।
*
मौन तोड़ती एक न आहट,
घूरे बस निर्जन।
कौन रुका इस सूने पथ पर,
जो होगी खनखन।
घर आँगन दालानों की भी,
छाँव नहीं कोई।
दूर-दूर तक वीराना है,
गाँव नहीं कोई।
चले हवाएँ गला काटतीं,
सर्द बहुत अगहन।
*
कहीं चढ़ाई साँस फुलाए
कहीं ढाल फिसलन।
क़दम-क़दम पर भटकाने को,
ख़ड़ी एक उलझन।
लम्बा रस्ता पार न होता,
कितना चल आये।
चार क़दम पर…
ContinuePosted on December 25, 2023 at 10:00pm — 4 Comments
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी गीतिका : मन उस आँगन ले जाय को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
ashok ji apne Mujhe aur Om neerav ji ko FB par Block kar diya is baat se ham logon ko ateev kasht hua hai ham dono hi yah jaan lena chahtey hain ki kis apradh ke liye apne hame yah dand diya aur kavita lok group kyon chhoda,,,,uttar ki prateeksha me me vyagra hoon
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले सर हौंसला बढ़ाने के लिए आपका आभार !
आदरणीय इसी तरह आशीर्वाद बनाए रखें
आपके प्रोत्साहन भरे भावों के लिए शुक्रिया
सादर आभार
आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!
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