लौट रहे घन
बाँध राखियाँ
धरती के आँगन को
हर इक प्यासे मन को
हरी-भरी चूनर में
धरती
मंद-मंद मुस्काये
हरा-भरा खेतों का
सावन
लहराये-इतराये
प्रेम प्रकट करने
झुक आयीं
शाखें नील गगन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on August 22, 2024 at 6:59pm — 6 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
उसने सफ़र में उम्र के गहना ही पा लिया
जिसने तपा के जिस्म को सोना बना लिया
दो वक़्त भी जिसे कभी रोटी नहीं मिली
उसने भी ज़िन्दगी का यहाँ पे मज़ा लिया
कहते हैं लोग उसको मुहब्बत का बादशाह
जिसने वफ़ा निभाई मगर दिल चुरा लिया
उल्फ़त की राह हो भले काँटों भरी बहुत
चलकर इसी पे हमने मुक़द्दर जगा लिया
हैरान कर गयी है…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2024 at 2:30pm — 8 Comments
रात के हुस्न पर थी टँकी चाँदनी
पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा
चाँद पाने की कोशिश नहीं थी मगर
चाँद छूने को ही मैं मचलता रहा
सिक्त आँचल हिलाती रही रात भर
फिर भी गुमसुम हवा ही बही रात भर
कुछ सितारे ही बस झिलमिलाते रहे
धैर्य की ही परीक्षा चली रात भर
प्रीति के दर्द को भी दबाये हुए
घूँट आँसू के ही मैं निगलता रहा
चाँद आया नहीं देर तक सामने
स्याह बादल लगे चादरें…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 16, 2024 at 5:43pm — 6 Comments
2122 1212 112/22
*
ज़ीस्त का जो सफ़र ठहर जाए
आरज़ू आरज़ू बिख़र जाए
बेक़रारी रहे न कुछ बाक़ी
फ़िक्र का दौर ही गुज़र जाए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on June 25, 2024 at 3:30pm — 2 Comments
तारकोल से लगा चिपकने
चप्पल का तल्ला
बिगड़े हैं सुर मौसम के अब
कहे स्वेद की गंगा
फागुन में घर बाहर तड़पे
हर कोई सरनंगा
दोपहरी में जेठ न तपता
ऐसे सौर तपाए
अपनी पीड़ा किसे बताए
नया-नया कल्ला
पेड़ों को सिरहाना देती
खुद उसकी ही छाया
श्वानो जैसी उस पर पसरे
आकर मानव काया
जो पेड़ों को काटे ठलुआ
बढ़कर धूप उगाए
अपनी गलती से वह भी तो
झाड़ रहा…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on March 28, 2024 at 10:41pm — 5 Comments
गहरे तल पर ठहरे तम-सा,
ठहरा यह जीवन।
*
मौन तोड़ती एक न आहट,
घूरे बस निर्जन।
कौन रुका इस सूने पथ पर,
जो होगी खनखन।
घर आँगन दालानों की भी,
छाँव नहीं कोई।
दूर-दूर तक वीराना है,
गाँव नहीं कोई।
चले हवाएँ गला काटतीं,
सर्द बहुत अगहन।
*
कहीं चढ़ाई साँस फुलाए
कहीं ढाल फिसलन।
क़दम-क़दम पर भटकाने को,
ख़ड़ी एक उलझन।
लम्बा रस्ता पार न होता,
कितना चल आये।
चार क़दम पर…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2023 at 10:00pm — 4 Comments
22 22 22 22 22 2
मोद-सुमन जो नित्य हृदय के पास रहे
सौरभ का भी जीवन में आवास रहे
मार्ग भले ही छोटा या फिर लम्बा हो
पैरों पर प्रति पल अपने विश्वास रहे…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 28, 2022 at 7:30pm — 12 Comments
गीत
*
कच्चे रास्तों गडारों से,
गाड़ी निकल रही है।
*
जा रहे हैं किधर कोई,
बूझता ही नहीं।
फूट रहे हैं सर क्योंकर,…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 23, 2022 at 10:30am — 8 Comments
गुनगुन करता गीत नया है,
क़दम बढ़ाता मीत नया है
*
दर्द दिखा हर ओर भरा है,
अचरज है हर पोर भरा है,
शब्दों में खामोशी जितनी,
भीतर उतना शोर भरा है।
कानों ने…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2022 at 10:30pm — 7 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2021 at 8:00pm — 9 Comments
221 1222 221 1222
उसकी ये अदा आदत इन्कार पुराना है
बेचैन नहीं करता ये प्यार पुराना है ।
ये हुस्न नया पाया उसने है सताने को
ये जिस्म तमन्नाएं इसरार पुराना है ।…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on June 4, 2020 at 10:30pm — 11 Comments
उठाओ नजर रहगुज़र देख लो ।
यहाँ जिन्दगी का सफ़र देख लो ।
नियम कायदे तो बने हैं कई
मगर भंग हैं सब जिधर देख लो ।
न भय है न चिंता न है शर्म ही
बना है बशर जानवर देख लो ।
कहीं लूट है तो कहीं क़त्ल है
किसी भी नगर की ख़बर देख लो ।
गले मिल रहे दोस्त खंजर लिए
बदलते समय का असर देख लो ।
करें फ़िक्र उनकी जो हैं नापसंद
सियासत का है ये हुनर देख लो ।
बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2019 at 10:00pm — 7 Comments
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
गुपचुप उसपर मन आया है
लगता है सावन आया है
महका है हर कोना-कोना
अम्बर से चन्दन आया है
देखो नभ पर छाये बादल
दूल्हा ज्यों बनठन आया है
भीग रही है प्यासी धरती
ज्यों बीता यौवन आया है
रह-रह नाच रही हैं बूँदें
राधा का मोहन आया है
झूला झूल रही हैं सखियाँ
सज रक्षा बंधन आया है
कागज़ की नैया ले आओ
याद मुझे बचपन आया…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 30, 2018 at 9:00am — 9 Comments
जीवन विषम अबोध , जानकर ना डर मानव |
प्राप्त प्रथम कर ज्ञान, ज्ञान बिन पार न हो भव ||
अंतर तल अँधियार , दूर कर रोशन हो मग |
हो जगमग हर पंथ , पंथ अति रोशन हो जग ||
श्रेष्ठ जटिल हर कर्म, है मनुज उन्नति दायक |
भूल बिसर मत कृत्य, सत्य हर भूपति नायक ||
भूमि सतह पर स्वर्ग, कर्म बिन हो कब संभव |
जीवन पथ पर कर्म , धर्म सम भूल न मानव ||
मानव परहित कार्य , हैं न बस दाहकता दुख |
कष्ट सहन कर लाख, एक यदि जीवन का सुख…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2017 at 1:30pm — 2 Comments
सजनी ने साजन को, खींच लिया पास |
अमराई फूल गई, आया मधुमास ||
धूप खिली निखरी-सी, आयी मुस्कान |
बागों में छेड़ दिया, भँवरों ने तान ||
कलियों के मन जागी, खिलने की आस.........
खिड़की से झाँक रही, जिद्दी है धूप |
रंग बिना लाल हुआ, गोरी का रूप ||
सखियों की सुधियों में, कौंधा परिहास...........
डाली है अल्हड पर , फिरभी है भान |
बौराए महुए के , खींच रही कान ||
महक रहे वन-कानन, महका…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on February 2, 2017 at 11:00pm — 21 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२
भजो राम को या भजो श्याम को या, भजो नित्य ही मित्र माँ बाप को |
चुनों धर्म का मार्ग सच्चा हमेशा , बढ़ावा न देना कभी पाप को,
सिखाना सभी को सिखाना स्वतः को, भुलाना यहाँ व्यर्थ संताप को,
नई ये हवाएं कहें क्या सुनो तो, सुनो थाप को वक्त की चाप को ||
तजो लाज सारी करो कर्म अच्छे, रहोगे जहां में तभी शान से |
न लेना किसी का न देना किसी का, जिलाता यही मार्ग सम्मान से,
बिना कर्म पाते सभी दुःख देखो,…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 5, 2016 at 10:53pm — 9 Comments
कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,
तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |
अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है
भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||
रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,
जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |
देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,
तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||
दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 17, 2016 at 9:30pm — 13 Comments
212 212 212 2
जिन्दगी अब सरल हो रही है
बात हर इक गजल हो रही है
दलदली हो चुकी है जमीं पर,
हर कली अब कमल हो रही है
तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें
नीति बेशक सफल हो रही है
आ रहा है कहीं से उजाला
रौशनी आजकल हो रही है
मखमली हो रही हैं हवाएं
मेंढकी भी विकल हो रही है
है दरोगा बड़ा लालची वो
धारणा अब अटल हो रही है
मौलिक/अप्रकाशित.
Added by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2016 at 11:00pm — 15 Comments
आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए
अधरों पर छायी मस्ती ये क्यूँ अपनापन ले जाए
भिगो रहा है बरस-बरस कर मेघ नशीला ये काला
कहीं न ये यौवन की खुश्बू मन का चन्दन ले जाए
कड़क-गरज डरपाती बिजली पल-पल नभ में दौड़ रही
कहीं न ये चितवन के सपने संचित कुंदन ले जाए
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए
पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 1:00pm — 28 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
जब छीनने छुडाने के साधन नए मिले
हर मोड़ पर कई-कई सज्जन नए मिले
कुछ दूर तक गई भी न थी राह मुड़ गई
जिस राह पर फूलों भरे गुलशन नए मिले
काँटों से खेलता रहा कैसा जुनून था
उफ़! दोस्तों की शक्ल में दुश्मन नए मिले
जितने भी काटता गया जीवन के फंद वो
उतने ही जिंदगी उसे बंधन नए मिले
अपनों से दूर कर न दे उनका मिज़ाज भी
गलियों से अब जो गाँव की आँगन नए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 2:00pm — 19 Comments
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