सजनी ने साजन को, खींच लिया पास |
अमराई फूल गई, आया मधुमास ||
धूप खिली निखरी-सी, आयी मुस्कान |
बागों में छेड़ दिया, भँवरों ने तान ||
कलियों के मन जागी, खिलने की आस.........
खिड़की से झाँक रही, जिद्दी है धूप |
रंग बिना लाल हुआ, गोरी का रूप ||
सखियों की सुधियों में, कौंधा परिहास...........
डाली है अल्हड पर , फिरभी है भान |
बौराए महुए के , खींच रही कान ||
महक रहे वन-कानन, महका आवास.........
धरती के आँचल में, सरसों के फूल |
विरहन के नैनों में , चुभते हैं शूल ||
डोल रहा डोल रहा, पल-पल विश्वास..........
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
वाह आदरणीय मधुमास पर क्या खूब सूरत दोहे रचे हैं
आदरणीय सुरेश कुमार जी सादर आपकी मन मुग्ध करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार. सादर नमन.
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,आपके सहयोग के लिए अतिशय आभार. सादर.
सादर धन्यवाद, आदरणीय अशोक भाई जी
जी ! आदरणीय सौरभ जी सादर, आपके सुझावों से सचमुच गीत में निखार आया है ,मैं आपके सुझावों को अपनी रचना में लागू करता हूँ. सादर आभार.
गीत को पसंद कर उत्साहवर्धन करने के लिए दिल से आभार आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी. सादर.
आदरणीय अशोक भाई जी, आप इस रचना का संशोधित स्वरूप प्रतिस्थापित करें, यह आपकी सदाशयता होगी. साथ ही, ऐसा हुआ तो वह मेरे लिए भी सम्मान की बात होगी. मिलजुल कर हमने जो प्रयास किये वो गीत को जैसी बुनावट दे रहा है वही किसी रचनाकर्म पर अपेक्षित है.
हार्दिक आभार आदरणीय
आदरणीय अशोक जी प्रकृति के शानदार चित्रण के साथ विरहनी के वियोग का समायोजन करता शानदार गीत इस गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर, आपसे मिली प्रतिक्रिया सचमुच ही मेरे प्रयास को बहुत बल दे रही है. आपने सच ही कहा है आदरणीय सौरभ जी ने सम्प्रेषणीयता की कमी को देखते हुए जो संशोधन सुझाए हैं वह गीत में जान डाल दे रहे हैं. आपके साथ-साथ ही पुनः आदरणीय सौरभ जी का भी आभार व्यक्त करता हूँ. सादर.
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