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Dayaram Methani
  • Male
  • Bhilwara - rajsthan
  • India
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  • Pratibha Pandey
  • अजय गुप्ता 'अजेय
  • Samar kabeer
 

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, आपकी टिप्पणी एवं मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार। सुधार का प्रयास करुंगा। सादर।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ग़ज़ल ठोकरें खाकर नई अब राह चलना चाहिएआदमी को कर्म के सांचे में ढलना चाहिए। —मेहनतकश की सदा होगी भरी झोली यहाँ,अब पसीने की महक तन पर उबलना चाहिए। —भूख के आगे सभी रिश्ते हो जाते गौण है,दाल रोटी के लिए सबको सँभलना चाहिए।—आदमी को…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए खेद है। लेखन में कसावट ही लघु कथा को महत्व प्रदान करती है। प्रयास करुंगा कि भविष्य में बेहतर लेखन हो। सादर।"
Jun 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। संतोष कुमार पढ़ने लिखने में होशियार तो था ही वह खेलकूद में भी भाग लेने में आगे रहता था। तेज साईकिल चलाना उसका शौक था वह उस पर…"
Jun 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय अजय गुप्ता जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय पूनम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पोस्ट पर आपकी टिप्पणी व सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Jun 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय तिलकराज जी, पोस्ट पर आपकी टिप्पणी व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। मतले में सुधार के लिए कुछ इशारा कर दें तो बेहतर होगा। सादर।"
Jun 28

Profile Information

Gender
Male
City State
BHILWARA
Native Place
BHILWARA
Profession
journlist and writer
About me
I like to read and write kavita, gazal, short stories and artical.

Dayaram Methani's Blog

गज़ल

गज़ल

2122 2122 2122 212

आजकल हर बात पर लड़ने लगा है आदमी,

क्रोध के साये तले पलने लगा है आदमी।

चाह झूठी शान की अब बढ़ गई है बहुत ही,

इस लिये बेचैन सा रहने लगा है आदमी।

आग हिंसा की बहुत झुलसा रही है देश को,

खूब धोखा दल बदल करने लगा है आदमी।

धन कमाया पर बचाया कुछ नहीं अपने लिये,

अब बुढ़ापे में छटपटाने लगा है आदमी।

जिन्दगी भर झगड़ने से क्या मिला इंसान को,

देख ’’मेठानी‘‘ बहुत रोने लगा है आदमी।

मौलिक…

Continue

Posted on January 30, 2022 at 12:16pm — 2 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2



ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ

नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ

तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में

पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ

ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से

हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ

राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा

ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ

साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा

अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ

- दयाराम मेठानी…

Continue

Posted on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

 2122 2122 2122 212

नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है

सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है

संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं

वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है

जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया

यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है

दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं

बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है

हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां

आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…

Continue

Posted on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments

गज़ल सीख लो

2122 2122 212

दर्द को दिल में दबाना सीख लो

ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो

आंख से आंसू बहाना छोड़िये

हर मुसीबत को भगाना सीख लो

ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से

खेल में खुद को जिताना सीख लो

फूल को दुनिया मसल कर फैंकती

खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो

छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी

कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो

थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी

दिन पुराने अब भुलाना सीख लो

कौन…

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Posted on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments

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