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अजय गुप्ता 'अजेय
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  • Karnal
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कैलेंडर

नौ तारीख तक कैलेंडर न आने से असुविधा होती है। यदि पहले से निर्धारित हो और 1-2 तारीख तक कैलेंडर आ जाए तो आसानी हो जाये।उम्मीद है आयोजक इस और ध्यान देंगेContinue

Started Apr 9, 2018

 

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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत आभार साहिब"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"जी जनाब शकूर साहब। बहुत धन्यवाद"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"ग़ज़ल पर अपनी राय और सुझाव रखने के लिये शुक्रिया आदरणीय समर साहब।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत आभार भाई अमित जी"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"विस्तृत राय और इस्लाह के लिए दिल से शुक्रिया आदरणीय अशोक जी। आप के सुझावों को अम्लीज़ामा पहना कर ग़ज़ल को संशोधित करने का प्रयास करता हूँ। धन्यवाद सहित।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत आभार भाई ज़ैफ़ जी"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत शुक्रिया आदरणीय ऋचा जी"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"शुक्रिया आदरणीय रवि जी। आपने ग़ज़ल पर प्रस्तुत होकर हौसला बढ़ा दिया। आपके सुझाव हमेशा याद रखूँगा"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत बहुत आभार नीलेश भाईसाब"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आप सब बड़े शायरों और उस्तादों की ग़ज़ल पर हम क्या प्रतिक्रिया दें। बस यही है कि हमारा सौभाग्य है जो आप सब का लिखा पढ़ने को आप सब की सलाह अपने लिखे पर मिल जाती है। मन ख़ुश हो जाता है आप सब को पढ़कर।"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत सुन्दर और मेयारी ग़ज़ल कही है भाई गजेंद्र जी। बहुत दाद"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"अहा। अहा। अहा। एक-एक शेर ग़ज़ब और बेमिसाल। आदरणीय अशोक जी आप ने तो मुशायरा लूट लिया। मन आनंद से भर गया। वाह"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"ख़्वाब आँखों में रोज़ जलते हैं अश्क फिर भी नहीं पिघलते हैं मैं नहीं आपका दिया खाता आप मेहनत पे मेरी पलते हैं कैसे दिखता उन्हें, मैं पैदल था वो बड़ी गाड़ियों में चलते हैं रब्त कुछ कम ही है पसीने से धूप में कम ही वो निकलते हैं कोई कमज़ोर सामने हो…"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"वाह वाह नूर जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है । गिरह एकदम अलहदा लगाई ।"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बढ़िया उम्दा ग़ज़ल हुई है अजय जी  । बहुत बधाई"
Friday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय नादिर भाई बढ़िया गजल कही आपने। बहुत बहुत बधाई"
Friday

Profile Information

Gender
Male
City State
Karnal (Haryana)
Native Place
Karnal
Profession
Business
About me
ग़ज़ल, कविता, लघुकथा लेखन में रूचि, 6 स्वतंत्र काव्य संग्रह प्रकाशित, 3 ऑनलाइन पुस्तकें प्रकाशित. एक काव्य संग्रह हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित. parivartaaajkal.com पर 'अजय की कलम' के शीर्षक से नियमित कॉलम

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अजय गुप्ता 'अजेय's Blog

ग़ज़ल (आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की)

कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की 

आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की

हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत

ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की

गोलियों की ही धमक है हर दिशा में

और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!

भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में

कोई बातें कर रहा है सादगी की

इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस

चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की

बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत

आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी…

Continue

Posted on October 7, 2020 at 5:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल (और कितनी देर तक सोयेंगें हम)

पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम

और कितनी देर तक सोयेंगें हम।

रात काली तो कभी की जा चुकी

अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।

जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें 

रोशनी के बीज फिर बोयेंगे…

Continue

Posted on September 19, 2020 at 11:20pm — 16 Comments

एक ग़ज़ल (वैलेंटाइन डे स्पेशल)

एक ग़ज़ल।

**********

बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ

बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ

शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में

भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ

प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं

आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ

पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए

लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ

परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये

कैसे पहचानेंगे…

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Posted on February 14, 2019 at 1:54pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल (हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया)

हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया

लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया

कहने में तो है अच्छा हमराही पर

सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया

सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में

आड़ में मेरी धूप से बचता है साया

असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर

अँधियारे में तुमने देखा…

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Posted on February 7, 2019 at 12:38pm — 3 Comments

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At 7:49pm on September 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय अजय गुप्ता जी आदाब बहुत बहुत शुक्रिया हौसला बढ़ाने का ग़ज़ल पसंद आयी तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आपका
At 7:46pm on August 31, 2019, dandpani nahak said…
बहुत बहुत धन्यवाद् भाई साहब अजय गुप्ता जी समय निकाल कर आपने जो मेरा हौसला बढ़ाया है बहुत शुक्रगुज़ार हूँ
At 12:56pm on May 26, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय अजय गुप्ता जी आदाब आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी उसे सराहा उसके लिए बहुत शुक्रिया
At 12:18pm on November 23, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका अभिनन्दन है.

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"आपका दिली आभार आदरणीय उस्मानी जी। कथोपकथन स्पष्टता इंगित करने में समर्थ हैं।"
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"आपका दिली आभार आदरणीय उस्मानी जी।"
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