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कल से आगे ..........
‘‘दोनों बाहर आओ जरा। कुछ वार्ता करनी है।’’ रावण के सो जाने पर सुमाली ने वजृमुष्टि और मारीच से कहा।
दोनों कुटिया से निकल आये। जो मंथन सुमाली के मस्तिष्क में चल रहा था वहीं इनके मस्तिष्कों में भी चल रहा था। रावण की मनस्थिति लंका के सर्वनाश की द्योतक थी। रावण की अनुपस्थिति में विष्णु के लिये उन्हें पुनः समाप्त करना बच्चों का खेल ही था। विष्णु के लिये उन पर आक्रमण करने के लिये कुबेर के साथ किया घात ही पर्याप्त कारण था। और देखो तो विष्णु की टाँग यहाँ भी अड़ी थी।…
Posted on August 4, 2016 at 9:14am
कल से आगे ..............
सुमाली ठीक एक वर्ष बाद वहीं पहुँच गया जहाँ उसने रावण को छोड़ा था। उसके साथ मारीच और वजमुष्टि भी थे। रावण उस कुटिया में नहीं था। उन्होंने चारों ओर खोजा, थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी कुटिया के बाहर बैठा रावण उन्हें दिख गया। वहाँ पहुँचते ही वे चैंक कर रह गये। रावण की गोद में एक छोटी से कन्या थी जो उसकी छाती में दूध खोजने की व्यर्थ प्रयास कर रही थी। सामने एक चिता जल रही थी। रावण का मुँह उतरा हुआ था जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। बाल बिखरे हुये, आँखें लाल जैसे कई…
ContinuePosted on August 3, 2016 at 10:07am
कल से आगे ...........
‘‘इतनी देर लगा दी आने में ! जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती।’’ यह चन्द्रनखा थी। उसका यौवन उसके भीतर हिलोरें मार रहा था। अब वह कोई कुछ वर्ष पहले वाली अल्हढ़ बालिका नहीं रही थी, पूर्णयौवना हो गयी थी। भाइयों का अंकुश उस पर था नहीं। एक भाई वर्षों से लंका से दूर था, दूसरा महाआलसी, सदैव नशे की सनक में रहता था और तीसरे को अपने धर्म-कर्म और राज-काज से ही अवकाश नहीं था। भाभियों को उसकी गतिविधियों का पता ही नहीं चलता था, चलता भी तो वह उनका अंकुश मानने को तत्पर ही कहाँ…
ContinuePosted on August 2, 2016 at 9:43am — 2 Comments
पूर्व से आगे .........
उसी दिन से जिस दिन वेद ने पिता ने मंगला के महामात्य जाबालि के यहाँ पढ़ने जाने की बात की थी घर में उथल-पुथल मची हुई थी। जैसा अपेक्षित था वैसा ही हुआ था, बल्कि उससे भी बुरा। उसी क्षण से अम्मा ने मंगला के हाथ पीले करने की अनिवार्यता की घोषणा कर दी थी। मंगला, वेद और उनकी भाभी तीनों ही डाँट-फटकार की आशा कर रहे थे। उनके हृदयों में कहीं एक आशा की किरण भी साँस ले रही थी कि शायद बाबा अम्मा को भी राजी कर ही लें। बाबा नाराज तो हुये थे किंतु यह समझाये जाने पर कि यह…
Posted on August 1, 2016 at 8:39am
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सुलभ जी
सर्वश्रेष्ठ लेखन हेतु आपको बधाई i आपकी कलम ऐसे ही उर्ज्वस्वित बनी रहे i सादर i
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी "ग़ज़ल" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
सदस्य टीम प्रबंधनRana Pratap Singh said…
सुलभ जी आपके गीत बहुत सुन्दर होते हैं| और भी गीतों की प्रतीक्षा है|
आदरणीय सुलभ जी ओबीओ पर आपका हार्दिक स्वागत है!