For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 41

कल से आगे ..............

सुमाली ठीक एक वर्ष बाद वहीं पहुँच गया जहाँ उसने रावण को छोड़ा था। उसके साथ मारीच और वजमुष्टि भी थे। रावण उस कुटिया में नहीं था। उन्होंने चारों ओर खोजा, थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी कुटिया के बाहर बैठा रावण उन्हें दिख गया। वहाँ पहुँचते ही वे चैंक कर रह गये। रावण की गोद में एक छोटी से कन्या थी जो उसकी छाती में दूध खोजने की व्यर्थ प्रयास कर रही थी। सामने एक चिता जल रही थी। रावण का मुँह उतरा हुआ था जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। बाल बिखरे हुये, आँखें लाल जैसे कई दिनों से सोया ही न हो। बस शून्य नजरों से शून्य में ताक रहा था।
‘‘पुत्र ! पुत्र ! क्या हुआ ? क्या है यह सब ?’’ सुमाली ने उसे झकझोरा।
रावण पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। वह वैसे ही शून्य में ताकता रहा। तो सुमाली ने उसे और जोर से झकझोरा -
‘‘क्या बात है बेटा ? कुछ तो उत्तर दो।’’
इस बार रावण ने चेहरा घुमाकर उसकी ओर देखा पर बोला कुछ नहीं बस ताकता रहा जैसे पहचान ही न रहा हो।
सुमाली ने फिर झकझोरा फिर वज्रमुष्टि से बोला -
‘‘वज्रमुष्टि देखो कहीं से जल लेकर आओ।’’
सुमाली रावण को चैतन्य करने का प्रयास करने लगा तब तक वज्रमुष्टि कुटिया से एक पात्र में जल लेकर आ गया। सुमाली ने पूरा पात्र रावण के सिर पर उलट दिया।
रावण एक दम चैंक कर खड़ा हो गया। कन्या को सुमाली ने धीरे से उसके हाथों से निकाल लिया, वह बरबस रो उठी। सुमाली ने उसे मारीच के हाथ में पकड़ा दिया। रावण उसे देख कर अजीब से स्वर में कह उठा -
‘‘मातामह !’’
सुमाली ने उसे सीने से लगा लिया। उसके उलझे बालों को सहलाता हुआ बोला -
‘‘क्या हुआ है पुत्र ? कुछ बताओ तो सही !’’
‘‘वह चली गयी मातामह !’’ रावण ने वैसे ही स्वर में उत्तर दिया।
रावण की स्थिति देख कर सबकी आँखें गीली हो गयी थीं।
‘‘कौन चली गयी ? यह चिता किसकी है ?’’
‘‘वे...वेद...वेदवती चली गयी, उसीकी चिता है यह ...’’ रावण ने चिता की ओर हाथ उठाते हुये कहा। फिर हठाथ झटके से उसका हाथ गिर गया। उसकी आँखों से बहकर आँसू कपोलों को गीला करने लगे।
‘‘और यह कन्या किसकी है ?’’
रावण को एकदम जैसे होश आया। उसने पहले अपने हाथों की ओर देखा फिर चैक कर चारों ओर देखने लगा। मारीच के हाथों में कन्या देख कर उसने झपट कर उससे ले ली।
‘‘यह कन्या किस की है पुत्र ?’’
‘‘हमारी मातामह ! मेरी और वेदवती की !’’
‘‘ओह ! अच्छा चलो कुछ विश्राम कर लो।’’
‘‘नहीं ! अब कुछ नहीं बचा।’’
‘‘लाओ कन्या मुझे दे दो।’’ उसने रोती हुई कन्या को उससे लेने का प्रयास करते हुये कहा।
रावण ने थोड़ा हिचक दिखाई पर सुमाली ने उसके हाथ से कन्या ले ही ली। फिर वह उसे जबरदस्ती खींच कर कुटिया में ले आया और लिटा दिया। यह वेदवती की कुटिया थी। फिर वज्रमुष्टि और मारीच को वन में जाकर कुछ फल आदि ले आने को कहकर स्वयं पुष्पक की ओर चला गया।
लौट कर आकर उसने कोई वटी एक पत्थर पर घिसी और पानी में मिला कर रावण को देते हुये बोला -
‘‘लो इसे पी लो।’’
रावण ने कोई प्रश्न नहीं किया, चुपचाप पात्र हाथ में ले कर पीने लगा।
थोड़ी देर वह प्रतीक्षा करता रहा। रावण अब भी वैसे ही शून्य में ताक रहा था। सुमाली जैसे अपने आप से ही बोला ‘‘इतने समय में तो असर हो जाना चाहिये था।’’
फिर उसने एक बार और वह वटी जल में मिलाकर रावण को पिलाई। थोड़ी देर में रावण की आँखें मुँदने लगीं।
इसी बीच मारीच और वज्रमुष्टि फल लेकर आ गये। मारीच एक हिरन का बच्चा भी बगल में दबाये था।
‘‘यह अच्छा किया मारीच। रावण तो अभी बहुत देर सोयेगा। सोयेगा तभी कुछ स्वस्थ होगा। ऐसा करो एक जना देखो बाहर गाय बँधी है, थोड़ा सा दूध यदि हो सके तो निकाल लाओ। कन्या को आवश्यकता प्रतीत होती है। और फिर भोजन की व्यवस्था करो।’’
दोनों अपने-अपने काम में लग गये और सुमाली कन्या को चुप कराने का प्रयत्न करने लगा। तभी मारीच दूध लेकर आ गया। सुमाली ने थोड़ा सा पानी और थोड़ा सा दूध मिलाया फिर मारीच से बोला -
‘‘देखो पुष्पक में चालक कक्ष में रुई होगी थोड़ी सी ले आओ।’’
रुई की सहायता से वह धीरे-धीरे पूरे धैर्य से दूध कन्या के मुख में टपकाने लगा। थोड़ी देर में वह सो गयी। सुमाली ने उसे धीरे से चटाई पर लिटा दिया। इससे निवृत्त होकर वह मारीच की ओर घूमा और बोला -
तसल्ली से भूनो मृग-शावक को। आनन्द आ जायेगा इसे खाने में।

शाम हो गयी थी रावण को जागते-जागते। अब वह कुछ स्वस्थ प्रतीत होता था।
सुमाली ने धीरे से मेघनाद के किस्से छेड़ दिये - उसकी शैनानियाँ, उसकी तोतली भाषा, उसकी डगमग चाल और वह किस तेजी से प्रगति कर रहा है। पुत्र के किस्सों ने रावण को उस विषाद से बाहर निकालने में काफी सहायता की। तब सुमाली उचित अवसर जान कर कहा -
‘‘और पुत्र यहाँ क्या-क्या गतिविधियाँ-उपलब्धियाँ रहीं तुम्हारी ?’’
मेघनाद की बातों से बाहर आते ही रावण फिर से अन्यमनस्क सा हो गया। सुमाली ने पुनः उसे सम्हालने का प्रयास किया - ‘‘रावण को तो त्रिलोक विजय करना है, यदि ऐसे वह अवसाद में जायेगा तो कैसे कर पायेगा ? स्वयं को सम्हालो, अभी तो ऐसे जाने कितने अवसर आयेंगे जब तुम्हें अपनों को खोना पड़ेगा। एक दिन तुम्हारा यह मातामह भी विदा होगा इस संसार से, यदि ऐसे अवसरों पर तुम धैर्य खोने लगोगे तो क्या होगा लंका का ? क्या होगा लंका के निवासियों का ? सम्राट् को अपने परिवार से भी पहले अपने नागरिकों का ध्यान रखना पड़ता है।’’
‘‘क्या बताऊँ मातामह ? प्रयास तो कर रहा हूँ स्वस्थ होने का किंतु मेरा वश नहीं है अपनी भावनाओं पर !’’ अचानक जैसे उसे याद आ गया - ‘‘वह ... वह कहाँ है ?’’
‘‘वह क्या सो रही है !’’ सुमाली समझ गया कि वह कन्या को पूछ रहा है, उसीकी ओर इशारा करते हुये उसने उत्तर दिया - ‘‘कितनी शांत है देखो, कितनी सुन्दर ! ... अच्छा इसकी माता के बारे में बताओ।’’
‘‘क्या बताऊँ मातामह ? वह तो चली गई मुझे छोड़ कर - अपराध बोध को उम्र भर झेलने के लिये।’’
‘‘पूरी कहानी बताओ अपने मातामह को, उससे तुम्हारे मस्तिष्क का बोझ भी कम होगा। फिर हम दोनों मिलकर तय करेंगे कि आगे क्या किया जाये। सम्राट् अपनी जिम्मेवारियों से कभी विरत नहीं रह सकता।’’
रावण कुछ देर सोचता रहा फिर उसने धीरे-धीरे वेदवती से परिचय से लेकर उस रात प्रथम मिलन तक सब कुछ बता डाला। वह फिर शांत हो गया जैसे स्मृतियों में खो गया हो।
‘‘फिर ? ... फिर क्या हुआ ? उसकी मृत्यु कैसे हुई ?’’
‘‘क्यों याद दिलाते हैं उस घड़ी की मातामह ?’’
‘‘बताओ तो पुत्र ! दुःख कह देने से हल्का हो जाता है।’’
‘‘वह सदैव कहती थी कि वह विष्णु की वाग्दत्ता है। उसके पिता कहते थे कि उसका विवाह मात्र विष्णु से ही हो सकता है। इसीलिये वह विष्णु की आराधना कर रही थी - तपस्या कर रही थी।’’
‘‘फिर ?’’
‘‘उस दिन जो हुआ उससे उसे लगा कि वह अपने पिता की अपराधी हो गयी है, वह विष्णु की भी अपराधी हो गयी है। वह अत्यंत व्यथित थी। वह तो उसी दिन चिता में प्रवेश करने को उद्यत हो गयी थी। कहने लगी कि उसकी तपस्या फलवती अवश्य होगी, वह नहीं तो उसकी बेटी विष्णु को प्राप्त करेगी। बड़ी कठिनाई से उसे रोक पाया मैं। फिर पता चला है कि वह गर्भवती हो गयी है तो मैंने कहा कि इस समय उसके चिता में प्रवेश करने से एक अजन्मी नन्हीं सी जान की अकारण हत्या हो जायेगी। उसने बात मान ली। वह इस कन्या के जन्म की प्रतीक्षा करने लगी। किंतु उस दिन के बाद से वह मुझसे दूर-दूर रहने लगी थी। वह प्यार मुझे करती थी, इसे छिपाती भी नहीं थी किंतु उसके मन में यह बात बैठ गयी थी कि वह विष्णु के सिवा और किसी का वरण नहीं कर सकती। मेरे साथ रमण कर उसने अपने पिता और विष्णु से विश्वासघात किया है। और एक बात जानते हैं आप मातामह ?’’
‘‘क्या ? मुझे तुम बताओगे तभी तो जानूँगा मैं ?’’
‘‘तमान देव, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य उसका हाथ माँगने उसके पिता के पास आते थे किंतु वे सबको मना कर देते थे। ऐसे ही किसी व्यक्ति ने उनकी सोते समय हत्या कर दी थी। पिता की मृत्यु के बाद उसकी माता उसी चिता में उनके साथ सती हो गयी थी। उसे लगता था कि उसने अपने पिता के बलिदान के साथ विश्वासघात किया है।’’
‘‘ओह ! फिर ?’’
‘‘फिर यह कन्या हुई। कितनी सुन्दर है न मातामह, बिलकुल अपनी माँ जैसी ! बस कन्या को जन्म देकर, उसे एक बार अपना दूध पिला कर फिर वह कैसे भी नहीं रुकी। मैं रोता रहा, यह सद्यजाता कन्या रोती रही किंतु उसने चितारोहण कर लिया। मुझे रोते देख कर वह भी रोने लगी। बोली - मत रोओ रावण, क्या मुझे रोते हुये विदा करोगे ? ऐसे विदा करोगे मुझे तो मैं मृत्यु के बाद भी तुम्हें कैसे भूल पाऊँगी ? बस यही उसके आखिरी शब्द थे। उसके बाद तो बस राख ही शेष बची थी।’’
रावण के आँसू उसके सारे चेहरे को भिगो गये थे। सुमाली की आँखें भी गीली हो गयी थीं किंतु वह दृढ़ था। उसे रावण को इस मनस्थिति से बाहर निकालना ही था।
उसने रात्रि में रावण को एक बार और औषधि पिला दी। थोड़ी देर में वह सो गया।

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service