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दोहे
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मुख सा सम्मुख और के, रखिए शब्द सँवार
सुन्दर शब्दों के बिना, कहते लोग गँवार।१।
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युद्ध शब्द से जन्मते, और शब्द से शान्ति
महिमा अद्भुत शब्द की, जिससे होती क्रांति।२।
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कोई शब्दों में भरे, अद्भुत सहज मिठास I
कोई रीता रख उन्हें, देता अनबुझ प्यास।३।
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कोई सज्जन कह गया, बात बड़ी गम्भीर।
जीवन घायल मत करो, शब्दों को कर तीर।४।
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कोई छाया दे सदा, कर शब्दों को पेड़।
कोई शब्दों से यहाँ , बखिया देत…
Posted on July 6, 2022 at 5:30am
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ
ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।
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कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा
इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।
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कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में
ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।
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नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का
बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।
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कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी
यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Posted on July 5, 2022 at 2:19pm — 1 Comment
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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जब कोई दीवानगी ही आप ने पाली नहीं
जान लो ये जिन्दगी भी जिन्दगी सोची नहीं।।
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पात टूटे दूब सूखी ठूठ जैसे हैं विटप
शेष धरती का कहीं भी रंग अब धानी नहीं।।
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भर रहे हैं सब हवा में आग जब देखो सनम
फूल होगा याद में बस गन्ध तो होगी नहीं।।
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तैरती है प्यास आँखों में सभी के रक्त की
हो गये हैं लोग दानव पी रहे पानी नहीं।।
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राजशाही साम्यवादी लोकशाही दौर सब
भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी…
Posted on July 4, 2022 at 7:22pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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पानी नहीं नदी से जिन्हें रेत चाहिए
रचने को सेज अन्न का हर खेत चाहिए।२।
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औषध नहीं पहाड़ से पत्थर खदान कर
कंक्रीट के नगर को वो समवेत चाहिए।२।
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दो पल के सुख दे छीनले पूरी सदी को जो
सब को विकास नाम का वो प्रेत चाहिए।३।
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छाया से पेड़ की नहीं लकड़ी से प्यार है
कुर्सी को जंगलों की सभी बेत चाहिए।४।
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धरती को नोच चाँद को रौंदा उन्हें यहाँ
रीती नदी में नीर का संकेत चाहिए।५।
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वैभव नगर का साथ में…
Posted on July 3, 2022 at 6:40am
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
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