सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।
रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।
*
वह रिश्ते ही सच कहूँ, पाते लम्बी आयु
जहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।
*
तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोर
यह टूटा तो हो गया, हर रिश्ता कमजोर।।
*
करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।
ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का आकाश।।
*
रिश्तों में सब ढूँढते, केवल स्वार्थ जुगाड़।
शेष बची है अब कहाँ, अपनेपन की आड़।।
*
सुख में सब वाचाल हैं, दुख में बेढब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2025 at 8:50pm — No Comments
ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब चाहो तब प्यार से, खोल सके तारीख।१।
*
मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे केवल टूटती, अपनेपन की डोर।२।
*
दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।
*
छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।
*
रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।
*
बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2025 at 11:31pm — 2 Comments
अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
*
रहा झूठ से कौन है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
*
होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता अल्प ही, पर जीता भरपूर।३।
*
जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
*
होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
*
भोला देता ताव है, करके ऊँची मूँछ
धूर्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 4 Comments
दोहा दसक -वाणी
**************
वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात
वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।
*
वाणी में संयम नहीं, अब तो संत कुसंत
जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।
*
वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव
वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।
*
वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान
वो तो करती नित्य ही, रिश्तों पर संधान।४।
*
सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह
देह न मन में नित बसे, वाणी करती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 1 Comment
यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
*
देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न
वह उनको साकार कर, पा लेता है रत्न।२।
*
जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता वह नहीं, बन जाता है भव्य।३।
*
स्वप्न बने उद्देश्य जब, करना पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
*
निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे सबसे अधिक, सपनों से अनुराग।५।
*
सपने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 1 Comment
१२२/१२२/१२२/१२२
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कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना
जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।
*
हमेशा दवा ही नहीं काम आती
कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।
*
कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में
कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।
*
तलाशे बहुत वट सदा काटने को
कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।
*
हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत
कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।
*
मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर
हमें फर्क किससे क़सर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — No Comments
शंका-दोहा अष्टक
***
शंका दुख को जन्म दे, शंका मतकर व्यर्थ।
घर-बाहर इससे सदा, होता सकल अनर्थ।१।
*
आसपास जब-जब बढ़े, शंकाओं के शूल।
असमय जाते सूख तब, सुख के सारे फूल।२।
*
शंका नामक रोग से, तन-मन जल भंगार।
औषध पाया खोज कब, इस का ये संसार।३।
*
लघुतम रहे विवाद को, शंका नित दे तूल।
संतों को असहज रहे, दुर्जन को अनुकूल।४।
*
शंका उस मन जन्म ले, जिसमें रहता खोट।
सदा रक्तरंजित रहे, इससे पाकर चोट।५।
*
शंका बैरी चैन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:40am — No Comments
जन्म दिवस गणतंत्र का, मना रहे हम आज
रखने को सौगंध खा, संविधान की लाज।।
*
नाम रखा गणतंत्र गह, राजतंत्र की रीत
कैसे हो गण का भला, ऐसे में कह मीत।।
*
संविधान की पीठ ने, रचे बहुत से स्वप्न
गण तक पहुँचे वो नहीं, तंत्र कर गया दफ्न।।
*
पथ में बिखरे शूल सब, यदि ले तंत्र समेट
जनसेवक से हो नहीं, जनता का आखेट।
*
आठ दशक से जप रहे, गण हैं जिसका मंत्र
देता रोक स्वराज वह, क्यों पगपग पर तंत्र।।
*
गण की गण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:30am — No Comments
पूछ सुख का पता फिर नए साल में
एक निर्धन चला फिर नए साल में।१।
*
फिर वही रोग संकट वही दुश्मनी
क्या हुआ है नया फिर नए साल में।२।
*
बात यूँ तो विगत भी रही अनसुनी
किसने माना कहा फिर नए साल में।३।
*
लोग नफरत पहन दौड़ते जा रहे
जब वही है हवा फिर नए साल में।४।
*
मैं न स्वागत न तू दोस्ती कर रहा
कौन सीखा बता फिर नए साल में।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2025 at 7:45am — No Comments
चाहे करता भाग्य ही, जीवन भर संयोग
उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।
*
सद्कर्मों की चाल से, माता देकर त्राण
गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।
*
कर्म भाग्य दोनों रहें, जब बन पूरक रोज
पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।
*
सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान
उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।
*
गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क
या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।
*
गर्भ काल सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2025 at 1:30pm — No Comments
बेटी को बेटी रखो, करके इतना पुष्ट
भीतर पौरुष देखकर, डर जाये हर दुष्ट।१।
*
बेटा बेटा कह नहीं, बेटी ही नित बोल
बेटा कहके कर नहीं, कम बेटी का मोल।२।
*
करती दो घर एक है, बेटी पीहर छोड़
कहे पराई पर उसे, जग की रीत निगोड़।३।
*
कर मत कच्ची नींव पर, बेटी का निर्माण
होता नहीं समाज का, ऐसे जग में त्राण।४।
*
बेटी को मत दीजिए, अबला है की सीख
कर्म उसी के गेह से, रहे चाँद तक चीख।५।
*
बेटों को भी दीजिए, कुछ ऐसे सँस्कार
बेटी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2025 at 1:27pm — No Comments
नाम भले पहचान है, किन्तु बड़ा है कर्म
है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।
*
महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर
नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।
*
नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास
पुण्य कर्म आशीष को, गंगा माई पास।३।
*
केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास
सूरज जैसा कर्म ही, देता नाम उजास।४।
*
दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव
किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।
*
लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2025 at 5:40pm — No Comments
शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान
आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।
*
मौसम का क्या हाल है, पर्वत पूछे नित्य
ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।
*
धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन है चहुँ ओर
गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।
*
चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद
तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।
*
फैला चादर धुन्ध की, हो मौसम गम्भीर
कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।
*
पीते गटगट चाय सब, पहने मोजे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2025 at 2:23pm — No Comments
212 /212/ 212 /212
*
बच पवन से सँभलना नये साल में
हमको दीपक सा जलना नये साल में।१।
*
मेट अन्याय और कालिमा चाहिए
न्याय विश्वास फलना नये साल में।२।
*
छोड़ना है हमें देश हित में सहज
नफरतों से उबलना नये साल में।३।
*
सिर्फ रिश्तों की खातिर भुला द्वेष को
मन से मन तक टहलना नये साल में।४।
*
होगा उन्नत बहुत देश अपना तभी
सब जिएँ छोड़ छलना नये साल में।५।
*
कर रहा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2024 at 8:56am — No Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
*
जो चले कर्म में सिलसिला राम का
लौट आये सनम काफ़िला राम का।१।
*
एक विनती करें भोले शंकर से हम
देश ही क्या जगत हो जिला राम का।२।
*
धन्य जीवन हमारा भी होता बहुत
देख लेते अगर मुख खिला राम का।३।
*
जो भी वंचित सदा दुख रहे भोगते
हैं सुखी साथ जिनको मिला राम का।४।
*
दोष मढ़ते बहुत वो अधम राम पर
भेद पाये नहीं जो किला राम का।५।
*
राम पाना कठिन शेष जीवन में पर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 29, 2024 at 2:00pm — No Comments
२१२२/२१२२/२
*
जिन्दगी भर बे-पता रहना
हर जुबा पर हाँ लिखा रहना।१।
*
हर तरफ मौसम विषम होंगे
बस कुटज सा तू जगा रहना।२।
*
सन्त बिच्छू की कथा कहती
जात में अपनी बना रहना।३।
*
झूठ चाहे चल रहा जग भर
सत्य मन तू बोलता रहना।४।
*
माँ पिता के छिन गये साये
सीख उससे बे-ख़ुदा रहना।५।
*
धीरता कुछ सीख धरती से
हर समय क्या जलजला रहना।६।
*
क्या है करना बेबफा जग…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2024 at 2:00pm — No Comments
तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।
बिना राम के नाम के, कुन्दन-हीरा काँच।१।
*
तपते दुख की धूप में, जब जीवन के पाँव।
तन-मन तब शीतल करे, राम नाम की छाँव।२।
*
राम नाम की नित सुधा, पीते हैं जो लोग।
सन्तापित होते नहीं, चाहे दुख का योग।३।
*
चाहे दाता राम पर, मिलता सब कर कर्म।
जो समझा इस बात को, करता नहीं अधर्म।४।
*
राम नाम का मर्म जो, समझ हुआ निष्काम।
उसको लगती भोर सी, ढलती जीवन शाम।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2024 at 10:57pm — 2 Comments
क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।
राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।
*
जो आगन को लड़ रहे, भाई से हर शाम
कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम।।
*
सूपनखा की कट गयी, लछमन हाथों नाक
बनी रही फिर भी वही, तीन पात का ढाक।।
*
जनमर्यादा को करे, कौन राम सा त्याग
ढूँढा करते किन्तु सब, राम काज में दाग।।
*
दण्ड लखन को मृत्यु का, सीता को वनवास
सहा न क्या-क्या राम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2024 at 8:57am — No Comments
कितना भी दुविधा का क्षण हो
मन में केवल रामायण हो।।
*
बनना जितना राम असम्भव
उससे बढ़कर भरत कठिन है।
जीवन में चहुँ ओर मंथरा
जब उकसाती हर पलछिन है।।
कलयुग के सिर दोष न मढ़ना
देख स्वयम् को निज दर्पण हो।।
*
इच्छाओं के कुरुक्षेत्र में
भीष्म सरीखा जब हो घायल।
और ज्ञान के नभ मण्डल में
शंकाओं के छायें बादल।।
पर तुम विचलित कभी न होना
आस-पास कितना भी रण हो।।
*
गोवर्धन नित पड़े …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2024 at 12:21pm — 4 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
कह रही है बहुत ये हवा आग से
तिश्नगी हर नगर की बुझा आग से।१।
*
जागते लोग बाधा सियासत कहे
चैन की नींद सब को सुला आग से।२।
*
ईश औषध बना बोल देते रहे
लोग चलने लगे विष बना आग से।३।
*
दूर से हाथ जोड़ो कि सपनों छिपा
जब पड़े आप का वास्ता आग से।४।
*
जल गये हाथ बच्चे के बूढ़ा कहे
खुश हुआ दोस्ती कर युवा आग से।५।
*
भूप अंधा हुआ आग हाथों में ले
झोपड़ी को भुला खेलता आग से।६।
*
इश्क…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2024 at 4:10am — No Comments
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