For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

AMAN SINHA
Share on Facebook MySpace

AMAN SINHA's Friends

  • अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
  • Samar kabeer
  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
 

AMAN SINHA's Page

Latest Activity

AMAN SINHA posted a blog post

बस बहुत हुआ, अब जाने दो

बस बहुत हुआ, अब जाने दो, साँस जरा तो आने दो,घुटन भरे इस कमरे में, जरा धूप तो छट कर आने दो,बस बहुत हुआ, अब जाने दो।बहुत सुनी कटाक्ष तेरी, बात-बात पर दुत्कार तेरी,शूल के जैसे बोल तेरे, चुन-चुन कर मुझे हटाने दो।खामोशी में है प्यार मेरा, ना मुझ पर कुछ उपकार तेरा,मुझको जो गरजू समझा है, उस भरम को अब मिट जाने दो,बस बहुत हुआ, अब जाने दो।तूने जो बोला मान लिया, देर लगी पर जान लिया,सदा पास रही पर साथ नहीं, अब झूठे बंधन टूट जाने दो।मेरे अपनों को कोसा है, जीभ से दिल को नोंचा है,मेरे जज़्बातों का जो मोल…See More
Aug 8
AMAN SINHA posted a blog post

बात कुछ और निकली है

बात कुछ और सोची थी, बात कुछ और निकली हैमेरे दिलबर के दिल की कहानी कुछ और निकली हैबड़ी फुर्सत से उस रब ने करी थी कारीगरी लेकिनजो बन के है आई वो जवानी कुछ और निकली हैसुनाई थी जो तुमने ही कहानी, फिर से दोहरा दोमेरे वीरान गुलिस्तां में डाली फूलों की लहरा दोतेरे आने से जो खुशबू हवा में घुल सी जाती थीतू है अब भी वही, लेकिन वो खुशबू कुछ और निकली हैखनक थी चूड़ियों में जो, झनक थी पायलों में जोबिना श्रृंगार के लगती थी सादगी, चांद सी थी जोमगर अब दाग जो है लगा उस कोरे से दामन परचुनर धानी सी थी जो तेरी अभी…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता (बिन)"
Jun 2

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
Jun 2
AMAN SINHA posted a blog post

यह धर्म युद्ध है

रण भूमी में अस्त्र को त्यागे अर्जुन निःस्तब्ध सा खडा हुआ बेसुध सा निःसहाय सा केशव के चरणों मे पडा हुआ कहता था ना लड पायेगा, वार एक ना कर पायेगा शत्रु का है भेष भले पर वो अपना है जो अडा हुआ कैसे मैं उनपर प्रहार करूँ, जिनका मैं इतना सम्मान करूँ वे अनुज है मेरे, अग्रज भी हैं, उनपर कैसे मैं आघात करूँ वहाँ प्राण प्रिये पितामह हैं और क्रूर सही पर मामा हैहै पथ से भटके भ्रात मेरे भले आततायी का जामा है है मात प्रिये वो चाची घर पर कैसे उनका आँचल सूना कर दूँ हाँ प्रण लिया पर कैसे मैं रक्त रंजित वो झोली कर…See More
Mar 23
AMAN SINHA posted blog posts
Mar 19
AMAN SINHA posted a blog post

हर बार नई बात निकल आती है

बात यहीं खत्म होती तो और बात थी यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं एक को खींचो तो संग मे दो चार चली आती है खुला है माँझा पड़े है बिखरे कई तार यहाँ खुले छत पर जैसे कोई पडी जाल नजर आती है कही थी जो बात तुमने जो बर्फी में लपेटे हमको परत जो उतरी नीम कि बौछार नजर आती है बड़ा सोचकर पड़ता है नज़र करना लफ्जों को ज़ुबां से फिसलकर जो निकली तो गुनहगार नज़र आती है जिसे होता है ग़ुमा अपने…See More
Feb 26

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on AMAN SINHA's blog post आँख मिचौली
"रचना की विषयवस्तु बहुत रोचक है एक बहुत सुदर बाल रचना बन सकती है यह बस थोड़ा मात्राओं और तुकांत पर ध्यान दीजिये सुन्दर प्रयास है .. बहुत बधाई प्रिय अमन भाई "
Jan 16
AMAN SINHA posted a blog post

आँख मिचौली

आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं मैं आऊँ मैं आऊँ मैं आऊँकहाँ है तू पर्दे के पीछे, या जा छुपा पलंग के नीचे कैसे मैं तुझे ढूंढ निकालूँ जाने कहाँ छुप के बैठा है गर तू बाहर ना आया सूरत ना अपनी दिखलाया मैं तुझे मिल पाने में फिर विफल कहीं ना हो जाऊँ मैं आऊँ मैं आऊँ मैं आऊँघर का कोना कोना देखा बाग देखा बगीचा देखा किधर तू छुप के जा बैठा है थक जाऊँ तुझे खोज ना…See More
Jan 7
AMAN SINHA posted a blog post

किसे बताएं

किसे बताए फिक्र किसे है, मेरे रहने की मर जाने की किसे पड़ी यहाँ पर मेरी लिखी बात दोहराने की मेरे खातिर यहाँ भले क्यूँ अपने आँसू बर्बाद करे किसको इतनी मोहब्बत मुझसे जो समय अपना बेकार करे सब अपने है बस अपने हैं, अपने बनकर रह जाएंगे मगर कभी आफनो के खातिर अपने ना हो पाएंगे किससे किसको चाहत इतनी, जो खड़ा रहे बाज़ार में भरी दोपहरी बिन छाया के अपनाने के इंतजार में आज जो मुझको कहने ना दे, गीत मुझे जो गाने न देचाहे मेरे लिखने का हक़ साथ हो मगर लिखने ना दे  मैं ना बोला बात मेरी, तो दीवारें बतियाएंगे मेरे…See More
Dec 31, 2023
AMAN SINHA posted a blog post

सुख या संतोष

दोनों में से क्या तुम्हें चाहिए सुख या के संतोष क्षणभंगुर सा हर्ष चाहिए, या जीवन भर का रोष खुशी का जीवन लम्हो सा है, अब आए अब जाए छोटी सी उदासी मन की पहाड़ हर्ष का ढाए खुशी स्वभाव से चंचल पानी, कल कल बहता जाए कभी यहाँ है कभी वहाँ है स्थिर ना होने पाए खूशी है फूटे गागर जैसा कभी पूरा ना पड़ने पाए जिस गति से पहुंचे हम तक, दो गुनी चाल से जाए जितना पास जगाए हममे अपने आने की राह जाते समय अफसोस सहारे अलविदा हमें कह जाए पर संतोष है पूजी के जैसी हर दिन बढ़ता जाए चाहे समय हो ऊंचा नीचा हर समय काम ये आए संतोष…See More
Nov 9, 2023
Dr. Vijai Shanker commented on AMAN SINHA's blog post किसे अपना कहेंं हम यहाँ
"आदरणीय अमन सिन्हा जी , बहुत ही सार गर्भित , व्यंगात्मक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए ह्रदय से बधाई, सादर ,"
Nov 8, 2023
Sushil Sarna commented on AMAN SINHA's blog post किसे अपना कहेंं हम यहाँ
"वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति सर"
Nov 5, 2023
AMAN SINHA posted a blog post

किसे अपना कहेंं हम यहाँ

किसे अपना कहें हम यहाँ खंजर उसी ने मारी जिसको गले लगाया किससे कहें हाल-ए-दिल यहाँ हर राज उसी ने खोला जिसे हमराज़ बनाया किसे जख्म दिखाये दिल का हार घाव उसी ने कुरेदा जिसको भी मरहम लगाया किसे साथी समझे अपना यहाँ मेरी जमीन उसी ने खींची जिसको कंधे पर बैठाया किसी चुने हमसफर अपना गड्ढा उसी ने खोदा जिसको रास्ता दिखलाया किसे बनाए मीत यहाँ मौके पर पीठ दिखाया जिसपर सबकुछ लुटायाकिससे करें उम्मीद यहाँ निवाला उसी ने छिना जिसको भूखा ना सुलाया कौन रहेगा साथ यहाँहर डोर उसी ने तोरी जिसको माला पहनाया किससे मांगे…See More
Oct 27, 2023
AMAN SINHA posted a blog post

सुनो, एक बात कहानी है

सुनो,एक बात कहानी हैगर गलत न समझो तोतो कह कर हल्का हो लूँहाँ अगर तुम्हें भली ना लगेतो कुछ ना कहना और चली जाना तुमपर एक इल्तजा है सुन लो “ना” ना कहनादिल कहीं भारी ना हो जाएबड़ी हिम्मत सेहिम्मत मैंने जुटाई हैतुमसे बात कर पानी की जुगत मैंने लगाई हैपर कहीं इंकार तेरा हो जाएतो फिर कहीं बिन कहे ना रह जाऊँपता हैं मुझको की मैं तेरा प्यार नहींतेरी नज़रों में तो मैं हूँ तेरा प्यार नहींलेकिन क्या करूँ मैं अपने दुश्मन दिल काबिना तेरे कहीं इसको मिलता करार नहींमेरा दिल हीं मेरा दुश्मन ब बैठा हैसमझाया लाख मगर…See More
Oct 8, 2023
AMAN SINHA posted blog posts
Sep 10, 2023

Profile Information

Gender
Male
City State
KOLKATA
Native Place
KOLKATA
Profession
WRITER
About me
NEW WRITER

AMAN SINHA's Blog

बस बहुत हुआ, अब जाने दो

बस बहुत हुआ, अब जाने दो, साँस जरा तो आने दो,

घुटन भरे इस कमरे में, जरा धूप तो छट कर आने दो,

बस बहुत हुआ, अब जाने दो।

बहुत सुनी कटाक्ष तेरी, बात-बात पर दुत्कार तेरी,

शूल के जैसे बोल तेरे, चुन-चुन कर मुझे हटाने दो।

खामोशी में है…

Continue

Posted on August 4, 2024 at 4:10pm

बात कुछ और निकली है

बात कुछ और सोची थी, बात कुछ और निकली है

मेरे दिलबर के दिल की कहानी कुछ और निकली है

बड़ी फुर्सत से उस रब ने करी थी कारीगरी लेकिन

जो बन के है आई वो जवानी कुछ और निकली है

सुनाई थी जो तुमने ही कहानी, फिर से दोहरा दो

मेरे वीरान गुलिस्तां में डाली फूलों की लहरा दो

तेरे आने से जो खुशबू हवा में घुल सी जाती थी

तू है अब भी वही, लेकिन वो खुशबू कुछ और निकली है

खनक थी चूड़ियों में जो, झनक थी पायलों में जो

बिना…

Continue

Posted on July 23, 2024 at 8:03pm

यह धर्म युद्ध है

रण भूमी में अस्त्र को त्यागे अर्जुन निःस्तब्ध सा खडा हुआ 

बेसुध सा निःसहाय सा केशव के चरणों मे पडा हुआ 

कहता था ना लड पायेगा, वार एक ना कर पायेगा 

शत्रु का है भेष भले पर वो अपना है जो अडा हुआ 

कैसे मैं उनपर प्रहार करूँ, जिनका मैं इतना सम्मान…

Continue

Posted on March 23, 2024 at 5:57am — 1 Comment

काश कहीं ऐसा हो जाता

काश कहीं ऐसा हो जाता, 

मैं जगता तू सो जाता 

मेरी हंसी तुझे मिल जाती 

तेरे बदले मैं रो लेता 

काश कहीं ऐसा हो जाता 

तू चलता मैं थक जाता 

पैर तेरे कभी ना रुकते…

Continue

Posted on March 19, 2024 at 6:02am — 1 Comment

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है अब रात भर // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है अब रात भर दीप के भाव जलना है अब रात भर  हर अँधेरा निपट…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीया रचना जी, 8 सुधार बहर में नहीं है। यूँ कर सकते हैं.....  "बदल दो तुम नज़रीये ख़याल…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"1212 1122 1212 22 "बदल दो तुम नज़रिये ख़्यालात अपने सभी".... ये मिसरा बेबह्र…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। सुझाव के बाद यह और अच्छी हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"कोई चीज़ नहीं करते हैं, साथ ही मेरा यह भी मानना है कि आश्वस्त होने के लिए 100 प्रतिशत आश्वस्त होना…"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service