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बात कुछ और निकली है

बात कुछ और सोची थी, बात कुछ और निकली है
मेरे दिलबर के दिल की कहानी कुछ और निकली है

बड़ी फुर्सत से उस रब ने करी थी कारीगरी लेकिन
जो बन के है आई वो जवानी कुछ और निकली है

सुनाई थी जो तुमने ही कहानी, फिर से दोहरा दो
मेरे वीरान गुलिस्तां में डाली फूलों की लहरा दो

तेरे आने से जो खुशबू हवा में घुल सी जाती थी
तू है अब भी वही, लेकिन वो खुशबू कुछ और निकली है

खनक थी चूड़ियों में जो, झनक थी पायलों में जो
बिना श्रृंगार के लगती थी सादगी, चांद सी थी जो

मगर अब दाग जो है लगा उस कोरे से दामन पर
चुनर धानी सी थी जो तेरी अभी कुछ और निकली है

ये तेरा ही तो कहना था कि तू एक दिन छोड़ जाएगी
रहूंगा मैं बिलखता एक दिन और तू दिल तोड़ जाएगी

यही एक सच हुआ साबित, बाकी सब कुछ कहानी थी
तू झूठी ही रही हरदम, बस इस दफा कुछ और निकली है

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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