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किसे बताए फिक्र किसे है, मेरे रहने की मर जाने की 

किसे पड़ी यहाँ पर मेरी लिखी बात दोहराने की 

मेरे खातिर यहाँ भले क्यूँ अपने आँसू बर्बाद करे 

किसको इतनी मोहब्बत मुझसे जो समय अपना बेकार करे 

सब अपने है बस अपने हैं, अपने बनकर रह जाएंगे 

मगर कभी आफनो के खातिर अपने ना हो पाएंगे 

किससे किसको चाहत इतनी, जो खड़ा रहे बाज़ार में 

भरी दोपहरी बिन छाया के अपनाने के इंतजार में 

आज जो मुझको कहने ना दे, गीत मुझे जो गाने न दे

चाहे मेरे लिखने का हक़ साथ हो मगर लिखने ना दे  

मैं ना बोला बात मेरी, तो दीवारें बतियाएंगे 

मेरे लिखे नज़्मों को वो रोज़ रोज़ दोहराएंगे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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