गज़ल
2122 2122 2122 212
आजकल हर बात पर लड़ने लगा है आदमी,
क्रोध के साये तले पलने लगा है आदमी।
चाह झूठी शान की अब बढ़ गई है बहुत ही,
इस लिये बेचैन सा रहने लगा है आदमी।
आग हिंसा की बहुत झुलसा रही है देश को,
खूब धोखा दल बदल करने लगा है आदमी।
धन कमाया पर बचाया कुछ नहीं अपने लिये,
अब बुढ़ापे में छटपटाने लगा है आदमी।
जिन्दगी भर झगड़ने से क्या मिला इंसान को,
देख ’’मेठानी‘‘ बहुत रोने लगा है आदमी।
मौलिक…
ContinueAdded by Dayaram Methani on January 30, 2022 at 12:16pm — 2 Comments
2122 2122 2122 2
ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ
नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ
तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में
पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ
ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से
हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ
राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा
ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ
साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा
अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ
- दयाराम मेठानी…
Added by Dayaram Methani on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है
सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है
संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं
वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है
जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया
यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है
दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं
बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है
हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां
आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…
Added by Dayaram Methani on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments
2122 2122 212
दर्द को दिल में दबाना सीख लो
ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो
आंख से आंसू बहाना छोड़िये
हर मुसीबत को भगाना सीख लो
ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से
खेल में खुद को जिताना सीख लो
फूल को दुनिया मसल कर फैंकती
खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो
छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी
कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो
थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी
दिन पुराने अब भुलाना सीख लो
कौन…
ContinueAdded by Dayaram Methani on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments
मापनी: 2122 2122 2122 212
झूठ का व्यापार बढ़ता जा रहा है आजकल,
और हर इक पर नशा ये छा रहा है आजकल
है लड़ाई का नजारा हर तरफ देखें जिधर,
आदमी ही आदमी को खा रहा है आजकल
इस प्रगति के नाम पर ही मिट रहे संस्कार सब
झूठ को हर आदमी अपना रहा है आजकल
बाँटकर भगवान को नेता खुशी से झूमकर
काबा’ तेरा काशी’ मेरी गा रहा है आजकल
जाग ‘मेठानी’ बचायें आग से अपना चमन
नित नया जालिम जलाने आ रहा है…
Added by Dayaram Methani on April 8, 2019 at 2:01pm — 7 Comments
ग़ज़ल
मापनी: 2122 2122 2122 212
आंख से आंसू कभी यों ही बहाया ना करो
दर्द दिल का भी जमाने को बताया ना करो
हर किसी को मुफ्त में कोई खुशी मिलती नहीं
मेहनत से आप अपना जी चुराया ना करो
जिन्दगी ले जब परीक्षा हौसलों से काम लो
आपदा के सामने खुद को झुकाया ना करो
हैं सफलता और नाकामी समय का खेल ही
लक्ष्य से अपनी नजर को तो हटाया ना करो
जीत लेंगे जिन्दगी की जंग ’मेठानी‘ सुनो
तुम निराशा को कभी मन में बसाया ना…
Added by Dayaram Methani on March 15, 2019 at 1:14pm — 5 Comments
2122 2122 2122
जख्म हम अपने छिपाने में लगे है,
खुद को’ हम पत्थर बनाने में लगे है।
पूछ मत हमको हुआ क्या आजकल ये,
दर्द दिल का हम भुलाने में लगे है।
कौन देता है सहारा अब यहां पर,
बोझ अपना खुद उठाने में लगे है।
दिल जगत का बेरहम चट्टान जैसा,
फिर भी’ पत्थर को मनाने में लगे है।
देश हित की बात ‘‘मेठानी’’ करे क्या,
द्रोहियों को हम बचाने में लगे है।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम…
Added by Dayaram Methani on February 19, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
2122 2122 2122
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गांव भी अब तो शहर बनने लगा है
प्यार औ सद्भाव भी घटने लगा है
खुल गई है खूब शिक्षा की दुकानें
ज्ञान भी अब दाम पर बिकने लगा है
हो गये है लोग बैरी अब यहां भी
खून सड़कों पर बहुत बहने लगा है
गांव के हर मोड़ पर टकराव है अब
खेत औ खलियान तक जलने लगा है
सोच ’‘मेठानी‘’ हुआ है, क्या यहां पर
जो कभी बोया वही उगने लगा है
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on January 23, 2019 at 12:00pm — 21 Comments
गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)
नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है
खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है
हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है
धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है
जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है
शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on December 18, 2018 at 1:51pm — 5 Comments
2122 2122 2122 212
आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है
है सभी में दाग दुनिया को बताता कौन है
काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल
आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है
आंधियाँ तूफान लाते है तबाही हर जगह
दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है
देश में शोषण किसानों का हुआ अब तक बहुत
दाल रोटी दो समय उनको दिलाता कौन है
बात मेठानी सुनो सबकी सदा तुम ध्यान से
भय हमारी जिन्दगी से अब भगाता कौन है
( मौलिक…
ContinueAdded by Dayaram Methani on December 12, 2018 at 10:00pm — 8 Comments
2122 2122 2122 2122
हैं जो अफसानें पुराने, सब भुलाना चाहता हूँ
इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ
देश में अपने सदा सद्भाव फैलाएँ सभी जन
अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ
दिल सभी का हो सदा निर्मल नदी-जैसा धरा पर
अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ
धन कमाऊँगा मगर धोखा न सीखूँगा किसी से
हर कदम अपना पसीना ही बहाना चाहता हूँ
है ये तेरा, है ये मेरा की लड़ाई खत्म हो अब
और खुशियाँ संग सबके…
Added by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 12:30pm — 6 Comments
ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
याद करे दुनिया तुझे ऐसी निशानी छोड़ जा,
जोश भर दे जो सभी में वो जवानी छोड़ जा।
नाम पर तेरे कभी कोई उदासी हो नहीं,
प्यार से भरपूर कुछ यादें सुहानी छोड़ जा।
देश की खातिर लुटाओ जान अपनी शान से,
हर किसी की आँख में दो बूँद पानी छोड़ जा।
हो भरोसा हर किसी को तेरी बातों पर सदा,
देश हित की प्रेरणा दे वो बयानी छोड़ जा।
मौत आतीे है सभी को देख ‘‘मेठानी’’ यहां,
गर्व हो अपनाें को कुछ ऐसी…
Added by Dayaram Methani on January 16, 2015 at 9:55am — 16 Comments
चार मुक्तक
1.
झुकाना पड़े सिर मां को ऐसा कारोबार मत कीजिये,
अपने लहू से जिसने पाला उसे लाचार मत कीजिये,
कर सको तो करो ऐसा काम जगत में कि गर्व हो तुम पर,
कोख मां की हो जाये लज्जित ऐसा व्यवहार मत कीजिये,
2.
बरस बीत जाते है किसी के दिल में जगह पाने में,
एक गलत फहमी देर नहीं लगाती साथ छुड़ाने में,
बहुत नाजुक होती है मानवीय रिश्तों की डोर यहां,
नफरत में देर नहीं लगाते लोग पत्थर उठाने में।
3.
हर बात की अपनी करामात होती है,
कभी ये हंसाती तो…
Added by Dayaram Methani on December 2, 2013 at 11:09pm — 8 Comments
1.
जो चाहते हो सब मिलेगा, कोशिश करके तो देख,
अंधेरा मिट जायेगा, एक दीप जला करके तो देख,
आंसू बहाने से कभी मंजिल नहीं है मिला करती,
तू मझधार में अपनी नाव कभी उतार करके तो देख।
2..
करके अहसान किसी पर जताया मत कीजिये,
अपने काम को दुनिया में गिनाया मत कीजिये,
मेरे बिना चलेगा नहीं यहां किसी का काम,
ऐसे विचार दिल में कभी लाया मत कीजिये।
3.
आओ अब अंधविश्वासों को भुला कर देखते है,
इस धरा पर प्रेम की गंगा बहा कर देखते…
Added by Dayaram Methani on October 17, 2013 at 12:00am — 13 Comments
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