2122 2122 2122
जख्म हम अपने छिपाने में लगे है,
खुद को’ हम पत्थर बनाने में लगे है।
पूछ मत हमको हुआ क्या आजकल ये,
दर्द दिल का हम भुलाने में लगे है।
कौन देता है सहारा अब यहां पर,
बोझ अपना खुद उठाने में लगे है।
दिल जगत का बेरहम चट्टान जैसा,
फिर भी’ पत्थर को मनाने में लगे है।
देश हित की बात ‘‘मेठानी’’ करे क्या,
द्रोहियों को हम बचाने में लगे है।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी
Comment
आदरण समर कबीर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आ. भाई दयाराम जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।
सुन्दर रचना सर
जनाब दयाराम मेठानी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करे ।
प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय दिगंबर नासवा जी।
बहुत प्रभावी शेर हैं मेठानी जी ...
देश प्रेम की भावना और मन के उदगार लिखे हैं आपने ...
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