For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चार मुक्तक
1.
झुकाना पड़े सिर मां को ऐसा कारोबार मत कीजिये,
अपने लहू से जिसने पाला उसे लाचार मत कीजिये,
कर सको तो करो ऐसा काम जगत में कि गर्व हो तुम पर,
कोख मां की हो जाये लज्जित ऐसा व्यवहार मत कीजिये,

2.
बरस बीत जाते है किसी के दिल में जगह पाने में,
एक गलत फहमी देर नहीं लगाती साथ छुड़ाने में,
बहुत नाजुक होती है मानवीय रिश्तों की डोर यहां,
नफरत में देर नहीं लगाते लोग पत्थर उठाने में।

3.
हर बात की अपनी करामात होती है,
कभी ये हंसाती तो कभी रुलाती है,
बात कीजिये हमेशा संभल संभल कर,
चुभ जाये तो ये घाव गहरा करती है।

4.
भरी हो जेबें तो जगमग दिवाली सी लगती है जिन्दगी,
पैसा न हो पास तो खाली खाली सी लगती है जिन्दगी,
भूख और बदहाली का जीवन भी कोई जीवन है भला,
जीवन में मिले प्यार तो मस्त प्याली सी लगती है जिन्दगी।
- दयाराम मेठानी
(मौलिक / अप्रकाशित)

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 8:57am

हर बात की अपनी करामात होती है,
कभी ये हंसाती तो कभी रुलाती है, 
बात कीजिये हमेशा संभल संभल कर,
चुभ जाये तो ये घाव गहरा करती है।.....शानदार मुक्तक ..ढेरों बधाई स्वीकार करें 

Comment by ram shiromani pathak on December 5, 2013 at 12:32am

 सुन्दर  मुक्तक !!!!हार्दिक बधाई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 2:19pm

आदरणीय दयाराम सर बढ़िया मुक्तक हैं बधाई स्वीकारें

Comment by Dayaram Methani on December 4, 2013 at 2:06pm

आदरणीय विजय मिश्र जी, शिज्जू शकूर जी, केडिया चिराग जी एवं गिरिराज भंडारी जीं आप सबकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला। बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

- दयाराम मेठानी

Comment by विजय मिश्र on December 4, 2013 at 12:42pm
"कर सको तो करो ऐसा काम जगत में कि गर्व हो तुम पर,
कोख मां की हो जाये लज्जित ऐसा व्यवहार मत कीजिये, "
-- ये पंक्तियाँ मुझे बहुत खास लगीं , पूरी रचना बहुत सीख भरी है और आज के परिप्रेक्ष्य में अनिवार्य है इन सोचों का प्रस्फुटन | साधुवाद दयारामजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 3, 2013 at 11:24pm

//बरस बीत जाते है किसी के दिल में जगह पाने में,
एक गलत फहमी देर नहीं लगाती साथ छुड़ाने में,
बहुत नाजुक होती है मानवीय रिश्तों की डोर यहां,
नफरत में देर नहीं लगाते लोग पत्थर उठाने में।// बहुत बढ़िया आदरणीय दयाराम सर सार्थक मुक्तक है

Comment by Kedia Chhirag on December 3, 2013 at 4:12pm

लाजबाब ..लाजबाब ...ऐसी अद्भुत रचनायें नए कवियों को हमेशा लिखने को प्रेरित करेंगी .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:04pm

आदरणीय दयाराम भाई , सुन्दर , सार्थक मुक्तक के लिये आपको बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
13 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
20 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service