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बृजेश कुमार 'ब्रज'
  • Male
  • noida
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बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल-रफ़ूगर
"आदरणीय धामी जी आपका हार्दिक अभिनंदन एवं आभार...सादर"
Feb 15
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

ग़ज़ल-रफ़ूगर

121 22 121 22 121 22 सिलाई मन की उधड़ रही साँवरे रफ़ूगर कि ज़ख्म दिल के तमाम सिल दे अरे रफ़ूगर उदास रू पे न रंग कोई उदास टांको करो न ऐसा मज़ाक तुम मसखरे रफ़ूगर हज़ार ग़म पे छटाक भर की ख़ुशी मिली है तुझे अभी कुछ पता नहीं मद भरे रफ़ूगर कहीं पलक से टपक न जाये हरेक आँसू भला हो तेरा न और दे मशवरे रफ़ूगर यही भरोसा है एक दिन फिर से आ मिलेंगे यहीं कहीं खो गये सभी आसरे रफ़ूगर कि 'ब्रज' इसी इक उधेड़बुन में रहे हमेशा छुपाऊँ कैसे ह्रदय के सब घाव रे रफ़ूगर (मौलिक एवं अप्रकाशित) बृजेश कुमार 'ब्रज'See More
Feb 11
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल-रफ़ूगर
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। भाई समर जी के सुझाव से यह और निखर गयी है।"
Feb 9
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल-रफ़ूगर
"दूसरी बात 'दो' शब्द की जगह "दे" शब्द उचित होगा ,देखिएगा I  दरअसल "साँवरे रफूगर" प्रभु श्री कृष्ण को संबोधन किया है इसलिए मुझे लगा 'दो' सम्मान सूचक है...लेकिन आपके ध्यानाकर्षण से पता चल रहा है…"
Feb 9
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल-रफ़ूगर
"आदरणीय समर कबीर जी आपकी सूक्ष्म विवेचना से ग़ज़ल में निखार ही आएगा...जरूरी सुधार बिल्कुल किये जा सकते हैं...सह्रदय धन्यवाद"
Feb 9
Samar kabeer commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल-रफ़ूगर
"जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I  'सुराख़ दिल के तमाम सिल दो अरे रफ़ूगर'---- इस मिसरे में सहीह शब्द 'सूराख़' २२१ है,दूसरी बात 'दो' शब्द की जगह "दे" शब्द…"
Feb 8
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

ग़ज़ल-रफ़ूगर

121 22 121 22 121 22 सिलाई मन की उधड़ रही साँवरे रफ़ूगर कि ज़ख्म दिल के तमाम सिल दे अरे रफ़ूगर उदास रू पे न रंग कोई उदास टांको करो न ऐसा मज़ाक तुम मसखरे रफ़ूगर हज़ार ग़म पे छटाक भर की ख़ुशी मिली है तुझे अभी कुछ पता नहीं मद भरे रफ़ूगर कहीं पलक से टपक न जाये हरेक आँसू भला हो तेरा न और दे मशवरे रफ़ूगर यही भरोसा है एक दिन फिर से आ मिलेंगे यहीं कहीं खो गये सभी आसरे रफ़ूगर कि 'ब्रज' इसी इक उधेड़बुन में रहे हमेशा छुपाऊँ कैसे ह्रदय के सब घाव रे रफ़ूगर (मौलिक एवं अप्रकाशित) बृजेश कुमार 'ब्रज'See More
Feb 2
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on रामबली गुप्ता's blog post कृष्ण नहीं दरकार है भइया
"आदरणीय गुप्ता जी...अच्छी ग़ज़ल कही है...बधाई"
Jan 30
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post गणतन्त्र के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"वाह उत्तम दोहे आदरणीय धामी जी..."
Jan 30
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on मनोज अहसास's blog post अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास
"अच्छी ग़ज़ल कही भाई मनोज जी...बधाई"
Jan 30
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Usha Awasthi's blog post साक्षात्कार
"सुन्दर सारगर्भित कविता के लिए बधाई आदरणीया..."
Jan 30
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post गीत गा दो  तुम  सुरीला- (गीत -१४)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"वाह आदरणीय धामी जी...बड़ा ही सुंदर गीत हुआ...बधाई"
Jan 30
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on आशीष यादव's blog post तस्वीर: एक मोहक चित्र
"पढ़ने में उत्सुकता पूर्ण लगी आपकी रचना यादव जी...बधाई"
Jan 25
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ- गीत १३(लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"उत्तम सत्य से उत्प्रेरित गीत रचना आदरणीय... बधाई"
Jan 25
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Rachna Bhatia's blog post सदा - क्यों नहीं देते
"सुन्दर ग़ज़ल हुई आदरणीया बधाई"
Jan 25
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post महक उठा है देखो आँगन (गीत-१२)-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत ही सुन्दर और सरस गीत है आदरणीय ..."
Jan 25

Profile Information

Gender
Male
City State
noida
Native Place
jhansi

बृजेश कुमार 'ब्रज''s Blog

ग़ज़ल-रफ़ूगर

121 22 121 22 121 22



सिलाई मन की उधड़ रही साँवरे रफ़ूगर

कि ज़ख्म दिल के तमाम सिल दे अरे रफ़ूगर



उदास रू पे न रंग कोई उदास टांको

करो न ऐसा मज़ाक तुम मसखरे रफ़ूगर



हज़ार ग़म पे छटाक भर की ख़ुशी मिली है

तुझे अभी कुछ पता नहीं मद भरे रफ़ूगर



कहीं पलक से टपक न जाये हरेक आँसू

भला हो तेरा न और दे मशवरे रफ़ूगर



यही भरोसा है एक दिन फिर से आ मिलेंगे

यहीं कहीं खो गये सभी आसरे रफ़ूगर



कि 'ब्रज' इसी इक उधेड़बुन में रहे हमेशा…

Continue

Posted on February 2, 2023 at 9:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल

1222 1222 122
बड़ी दिल-जू रही सूरत हमारी
उदासी खा गई सूरत हमारी

ग़मों को एक चहरा चाहिए था
उन्हें भी भा गई सूरत हमारी

सभी हैरान होकर देखते हैं
लगे सबको नई सूरत हमारी

न जाने कौन शब भर ख़्वाब में था
किसे अच्छी लगी सूरत हमारी

हमारे लब भले चुप हो गये 'ब्रज'
कहे हर अनकही सूरत हमारी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Posted on December 15, 2022 at 6:30pm — 18 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212



आँखों को रतजगे मिले हैं जल भराव भी

उल्फ़त में दुख मिले तो मिले गहरे भाव भी



कानों को आहटें सुने बर्षों गुज़र गये

बुझने लगे हैं आँखों के जलते अलाव भी



कुछ इसलिये खमोशियाँ ये रास आ गईं

दुनिया न जान ले कहीं अंतस के घाव भी



गर डूबना नसीब है तो फ़िक़्र क्यों करूँ

दरिया में अब उतार दी है टूटी नाव भी



वो साथ दे सका न बहुत देर तक मेरा

इक तो हवा ख़िलाफ़ थी उसपे बहाव भी



वो चाँद है,वो चाँद भला किसका हो…

Continue

Posted on November 1, 2022 at 6:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल

121 22 121 22 121 22



हरिक  धड़क पे  तड़प  उठें बद-हवास आँखें

बिछड़ के  मुझसे कहाँ गईं  ग़म-शनास आँखें



कहाँ  गगन  में  छुपे  हुये  हो ओ चाँद जाकर

तमाम  शब  अब  किसे  निहारें  उदास आँखें



बिछड़ के तुझसे सिवाय इसके रहा नहीं कुछ

कि  एक  बिगड़ा हुआ  मुक़द्दर क़यास आँखें



यक़ीन  होता  नहीं  कि  कैसे  चला  गया  वो

दिखा  रही थीं  डगर  उसी की  उजास…

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Posted on October 5, 2022 at 7:00pm — 10 Comments

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At 6:59pm on October 24, 2017, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव said…

स्वागत है आदरणीय ,  आपको मित्र के रूप में पाना मेरा सौभाग्य है .

At 11:43pm on November 17, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका अभिनन्दन है.

ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए

 ग़ज़ल की कक्षा 

 ग़ज़ल की बातें 

 

भारतीय छंद विधान से सम्बंधित जानकारी  यहाँ उपलब्ध है

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