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बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122

सिर्फ उसकी याद आयी मैं नहीं हूँ
या'नी मेरे साथ में भी मैं नहीं हूँ

वो जमीं पे चाँद जैसी और उसकी
कू-ब-कू है रौशनाई मैं नहीं हूँ

गीत उसका राग उसके बज़्म उसकी
वो ग़ज़ल में भी समाई मैं नहीं हूँ

वो नहीं तस्वीर मेरी अय मुसव्विर
और जो तुमने बनायी मैं नहीं हूँ

जिस छुअन का हो रहा अहसास तुमको
वो हवा की है रवानी मैं नहीं हूँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by Saurabh Pandey on February 15, 2024 at 12:07am

रोचक रदीफ लेकर निभाना चाहा है आपने बृजेश जी. कुछॆक मिसरा-ए-सानी को छोड़ दें तो आप सफल भी रहे हैं। 
हार्दिक बधाइयाँ  

Comment by Aazi Tamaam on January 18, 2024 at 6:21am

जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आ बधाई

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