2122 2122 2122 212
नफ़रतों की आग भड़की भाईचारा जल उठा
ख़ौफ़ इतना है कि दरिया का किनारा जल उठा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 22, 2022 at 8:24pm — 2 Comments
1222 1222 1222 122
किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुख
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
उन्हें सोने नहीं देता कई हालात का दुख
भिंगोते रात का आँचल बशर अपने ग़मों से…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2021 at 11:00am — 5 Comments
2122 1212 22
बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे ज़िन्दगी बना बैठा
एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा
धूप अपने शबाब पर आई
और साया भी दूर जा बैठा
ख़त्म कैसे भला अँधेरा हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा
फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा
'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने चाँद अनमना बैठा
(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2021 at 12:30pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
जरा सा मसअला है ये नहीं तकरार के क़ाबिल
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल
न ये संसार है मेरे किसी भी काम का हमदम
नहीं हूँ मैं किसी भी तौर से संसार के क़ाबिल
न मेरी पीर है ऐसी जिसे दिल में रखे कोई
न मेरी भावनायें हैं किसी आभार के क़ाबिल
ये मुमकिन है ज़माने में हंसी तुझसे ज़ियादा हों
सिवा तेरे नहीं कोई मेरे अश'आर के क़ाबिल
मेरे आँसू तुम्हारी आँखों से बहते तो अच्छा…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 25, 2021 at 12:00pm — 14 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 7, 2021 at 4:00pm — 8 Comments
1222 1222 122
मिलेगा और मिल कर रो पड़ेगा
मुझे देखेगा तो घर रो पड़ेगा
न जाने क्यों कहाँ खोया रहा हूँ
मेरी आहट पे ही दर रो पड़ेगा
मुझे वो भूल जाने के लिये ही
करेगा याद अक़्सर रो पड़ेगा
हँसी मुस्कान होंठों पे सजाकर
कोई इंसान अंदर रो पड़ेगा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2021 at 3:00pm — 10 Comments
बह्र-ए-मीर
मुद्दत से वीरान पड़े इस उजड़े खंडर की
अब कौन करे परवाह जहाँ में दीदा-ए-तर की
गलियों में सन्नाटा पसरा शमशानों में शोर
आँखों को उम्मीद नहीं थी ऐसे मंज़र की
पास तुम्हारे बढ़ने लगता है जब कोलाहल
याद बड़ी तब आती है अपने सूने घर की
मिलकर मंज़िल पा लेंगे कब ऐसा बोला था
लेकिन तैयारी करते दोनों एक सफ़र की
अक्सर दरवाजे पे आ 'ब्रज' ने राह निहारी
इक दिन तो चिट्ठी आयेगी मेरे दिलबर की
अन्दर के खालीपन से डर डर के घबरा के
'ब्रज' आया…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:06pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
छुड़ाया चाँद ने दामन अँधेरी रात में आख़िर
परेशां हूँ कमी क्या है मेरे ज़ज़्बात में आख़िर
उसे कुछ कह नहीं सकता मगर चुप भी रहूँ कैसे
करूँ तो क्या करूँ उलझे हुए हालात में आख़िर
भुलाना चाहता तो हूँ मगर मजबूरियाँ भी हैं
उसी की बात आ जाती मेरी हर बात में आख़िर
सुनो अय आँसुओं बेवक़्त का ढलना नहीं अच्छा
जलूँगा कब तलक मैं इस क़दर बरसात में आख़िर
मुख़ातिब हैं सभी मुझसे कि आगे…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 17, 2021 at 2:20pm — 6 Comments
121 22 121 22 121 22
अगर कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना
मेरी उदासी मुझे अकेला न छोड़ देना
बिना तुम्हारे ये ज़िन्दगी अब कटेगी कैसे
जो तू नहीं तो नफ़स की डोरी भी तोड़ देना
जरा सी कोई रहे हरारत न जान बाकी
कि जाते जाते बदन हमारा निचोड़ देना
कभी हमारे ग़मों पे तुझको दुलार आये
वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना
तेरे ग़मो का उसे न होगा पता, है मुमकिन
मगर सिरा 'ब्रज' उदासियों का न जोड़…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2021 at 10:30am — 11 Comments
1222 1222 1222 122
ग़मों की दिन-ब-दिन क़िस्मत सँवरती जा रही है
उदासी इस क़दर मुझमें उतरती जा रही है
अभी तो वक़्त है पतझर के आने में,हवा क्यों
चली ऐसी कि मन वीरान करती जा रही है
बहारों ने चमन लूटा मगर बाद-ए-सबा ये
खिज़ाओं पे हरिक इलज़ाम धरती जा रही है
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 19, 2021 at 10:30am — 14 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
ज़िन्दगी में सिर्फ़ ग़म हैं और तुम हो
आज फिर से आँखें नम हैं और तुम हो
लग रहा है अब मिलन संभव नहीं है
वक़्त से लाचार हम हैं और तुम हो
रात चुप, है चाँद तन्हा, साँस मद्धम
इश्क़ में लाखों सितम हैं और तुम हो
दिल की बस्ती में अकेला तो नहीं हूँ
नींद से बोझिल क़दम हैं और तुम हो
क्या बताऊँ किसलिये है 'ब्रज' परेशां
वस्ल के आसार कम हैं और तुम हो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:30pm — 11 Comments
विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
ह्रदय बसाये देवी सीता
वन वन भटकें राम
लोचन लोचन अश्रु बावरे
बहते हैं अविराम
सुन चन्दा तू नीलगगन से
देख रहा संसार
किस नगरी में किस कानन में
खोया जीवन सार
हे नदिया हे गगन,समीरा
ओ दिनकर ओ धूप
तृण तृण से यूँ हाथ जोड़कर
पूछ रहे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 10, 2020 at 7:00pm — 8 Comments
2122 2122 2122 2
चुप रहीं आँखें सजल ने कुछ नहीं बोला
इसलिए मनवा विकल ने कुछ नहीं बोला
भाव जितने हैं सभी को लिख दिया हमदम
क्या कहूँ! तुमसे ग़ज़ल ने कुछ नहीं बोला?
जिस किनारे बैठ के पहरों तुम्हें सोचूँ
उस जलाशय के कमल ने कुछ नहीं बोला?
एक पत्थर झील में फेंका कि जुम्बिश हो
झील के खामोश जल ने कुछ नहीं बोला
साथ 'ब्रज' के रात भर पल पल रहे जलते
जुगनुओं के नेक दल ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 19, 2020 at 9:00pm — 6 Comments
मुफाईलुन*4
खरीदूँ कौन सी सब्जी बड़े लगते झमेले हैं
कहीं लौकी कहीं कद्दू कहीं कटहल के ठेले हैं
इधर भिन्डी बड़ी शर्मो हया से मुस्कुराती है
अजब नखरे टमाटर के पड़ोसी कच्चे केले हैं
तुनक में मिर्च बोली आ तुझे जलवा दिखाती हूँ
कहे धनिया हमें भी साथ ले लो हम अकेले हैं
शकरकंदी,चुकंदर ने सजाई नाज से महफ़िल
सुनाया राग आलू ने मगन बैगन,करेले हैं
घड़ी भर को जरा पहलु में लहसुन,प्याज आ बैठो
जुदाई में तुम्हारी 'ब्रज' ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2020 at 8:00pm — 7 Comments
सभी पंक्तियाँ 16-16 मात्राभार के क्रम में
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
रोज सवेरे से सिर धुनते
शाम ढले तक याद संभाली
एक सिरा न हाथ में आया
टुकड़े टुकड़े रात खंगाली
आँगन ढूढ़ा कमरा ढूढ़ा
ढूढ़ लिए दालान अटारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
देख पपीहे की अकुलाहट
आसमान में बादल आये
बुलबुल छेड़े खूब तराना
भँवरे फूलों पे मंडराये
तू भी कोयल बड़ी…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
बह्र-ए-मीर
पतझर में भी गीत बसंती गाऊँ तो
जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो
अंदर का अँधियारा क्या छट जायेगा
कोशिश करके बाहर दीप जलाऊँ तो
शायद लौट चले आएं रूठे पलछिन
फूलों से जो उनकी राह सजाऊँ तो
कार्य हमारे भी सारे सध जायेंगे
सुविधा शुल्क लिये ये हाथ बढ़ाऊँ तो
जग सारा देखेगा 'ब्रज' के पांव फटे
जो चादर के बाहर पग फैलाऊँ तो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 14, 2020 at 10:00pm — 14 Comments
लंबे अंतराल के बाद एक ग़ज़ल के साथ
2122 1212 22
चाँद के चर्चे आसमानों में
और मेरे सभी फसानों में
अय हवा बख्श दे अभी ये लौ
हैं अँधेरे गरीबखानों में
हम सुख़नवर से पीर ज़िंदा है
दर्द का मोल क्या दुकानों में
आँखों में आँसुओं का डेरा है
ख्वाब हैं क़ैद मर्तबानों में
पंछियों के लिए सदा रखना
कोई उम्मीद आबदानों में
दिल जला 'ब्रज' जरा सुकूँ आये
रौशनी भी रहे मकानों में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 8, 2020 at 3:16pm — 2 Comments
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
निगाह में उदासियां छुपा हुआ अज़ाब था
डरावनी सी रात थी बड़ा अजीब ख्वाब था
दिखी नहीं कली कहीं ख़ुशी से कोई झूमती
लबों लबों कराह और आँख आँख आब था
चमन में छा रही थीं बेशुमार बदहवासियां
न टेसुओं पे नूर था न सुर्खरू गुलाब था
मिला न साथ दे सका जो चाहिए मिला नहीं
थी चार दिन की ज़िंदगानी दर्द बेहिसाब था
फ़ुज़ूल थे सवाल और चीखना फ़ुज़ूल…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2019 at 12:30pm — 8 Comments
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
ये वक़्त के फ़साने सब पैतरे हैं छल के
तुम भी बिखर न जाना यूँ मेरे साथ चल के
उस डायरी में तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा
कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के
ये याद भी नही है शोला थ याकि शबनम
हालाँकि उस बला ने देखा तो था मचल के
अब क्या तुम्हें बताएं किस बात का गुमां है
कल रात चाँद मेरी छत पे गया टहल के
किस बात से…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 1, 2019 at 12:00pm — 8 Comments
मंच को प्रणाम करते हुए ग़ज़ल की कोशिश
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन
लालफीताशाही कितनी मिन्नतों को खा गई
ये व्यवस्था ढेर सारे मरहलों को खा गई
ये कहा था साहिबों ने घर नये देंगे बना
साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई
अब तरक़्क़ी की बयारें इस क़दर काबिज़ हुईं
पेड़ तो काटे जड़ों से कोपलों को खा गई
कुछ गवाही दे रही है मयक़दे की रहगुज़र
मयकशी हँसते हुये कितने घरों को खा गई
भूख से बेहाल…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 19, 2019 at 2:29pm — 10 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2022 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |