Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2023 at 6:40pm — 2 Comments
212 212 212 212
मैं उसी मोड़ पर सोचता रह गया
वो गया याद का सिलसिला रह गया
उसके होंठो पे कुछ बात सी रह गयी
मेरे मन में भी कुछ अनकहा रह गया
देख कर सब मुझे बात करने लगे
हाय क्या शख़्स था और क्या रह गया
आज फिर आँखों में है नमी अज़नबी
आज फिर आइना ताकता रह गया
मिट गया प्यार मायूस नाकाम हो
प्यार का दर्द लेकिन बचा रह गया
कहकहों से भरी चाँद की महफ़िलें
इक चकोरा उसे टेरता रह गया
दोस्त दामन बचाकर बिछड़ते…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 21, 2023 at 8:00am — 2 Comments
121 22 121 22 121 22
सिलाई मन की उधड़ रही साँवरे रफ़ूगर
कि ज़ख्म दिल के तमाम सिल दे अरे रफ़ूगर
उदास रू पे न रंग कोई उदास टांको
करो न ऐसा मज़ाक तुम मसखरे रफ़ूगर
हज़ार ग़म पे छटाक भर की ख़ुशी मिली है
तुझे अभी कुछ पता नहीं मद भरे रफ़ूगर
कहीं पलक से टपक न जाये हरेक आँसू
भला हो तेरा न और दे मशविरे रफ़ूगर
यही भरोसा है एक दिन फिर से आ मिलेंगे
यहीं कहीं खो गये सभी आसरे रफ़ूगर
कि 'ब्रज' इसी इक उधेड़बुन में रहे हमेशा…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2023 at 9:30pm — 5 Comments
1222 1222 122
बड़ी दिल-जू रही सूरत हमारी
उदासी खा गई सूरत हमारी
ग़मों को एक चहरा चाहिए था
उन्हें भी भा गई सूरत हमारी
सभी हैरान होकर देखते हैं
लगे सबको नई सूरत हमारी
न जाने कौन शब भर ख़्वाब में था
किसे अच्छी लगी सूरत हमारी
हमारे लब भले चुप हो गये 'ब्रज'
कहे हर अनकही सूरत हमारी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 15, 2022 at 6:30pm — 18 Comments
221 2121 1221 212
आँखों को रतजगे मिले हैं जल भराव भी
उल्फ़त में दुख मिले तो मिले गहरे भाव भी
कानों को आहटें सुने बर्षों गुज़र गये
बुझने लगे हैं आँखों के जलते अलाव भी
कुछ इसलिये खमोशियाँ ये रास आ गईं
दुनिया न जान ले कहीं अंतस के घाव भी
गर डूबना नसीब है तो फ़िक़्र क्यों करूँ
दरिया में अब उतार दी है टूटी नाव भी
वो साथ दे सका न बहुत देर तक मेरा
इक तो हवा ख़िलाफ़ थी उसपे बहाव भी
वो चाँद है,वो चाँद भला किसका हो…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 6:30pm — 16 Comments
121 22 121 22 121 22
हरिक धड़क पे तड़प उठें बद-हवास आँखें
बिछड़ के मुझसे कहाँ गईं ग़म-शनास आँखें
कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद जाकर
तमाम शब अब किसे निहारें उदास आँखें
बिछड़ के तुझसे सिवाय इसके रहा नहीं कुछ
कि एक बिगड़ा हुआ मुक़द्दर क़यास आँखें
यक़ीन होता नहीं कि कैसे चला गया वो
दिखा रही थीं डगर उसी की उजास…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2022 at 7:00pm — 10 Comments
221 1221 1221 122
ख़्वाबों को ज़रा आँख के पानी से निकालो
इन बुलबुलों को अश्क-फ़िशानी से निकालो
ईमान की कश्ती पे मुहब्बत की मसर्रत
इस कश्ती को तूफ़ां की रवानी से निकालो
इस रास्ते पे वस्ल की उम्मीद नहीं है
तरकीब कोई राह पुरानी से निकालो
ग़ज़लों को रखो नफ़रती शोलों से बचाकर
अश'आर सभी लफ़्ज़ गिरानी से निकालो
इक रोज़ गुज़र जाऊँगा ज्यूँ वक़्त गुज़रता
भावों में रखो…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 12, 2022 at 2:30pm — 18 Comments
122 122 122 122
हक़ीक़त जुदा थी कहानी अलग है
सुनो ख़्वाब से ज़िंदगानी अलग है
ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे
मग़र आँख से बहता पानी अलग है
है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती
यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है
मियां शायरी को ज़रा मांजियेगा
कहे ऊला कुछ और सानी अलग है
पढ़ें गौर से जल्दबाजी न …
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2022 at 8:30am — 10 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 14, 2022 at 8:59am — 8 Comments
2122 2122 2122 212
नफ़रतों की आग भड़की भाईचारा जल उठा
ख़ौफ़ इतना है कि दरिया का किनारा जल उठा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 22, 2022 at 8:24pm — 2 Comments
1222 1222 1222 122
किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुख
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
उन्हें सोने नहीं देता कई हालात का दुख
भिंगोते रात का आँचल बशर अपने ग़मों से…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2021 at 11:00am — 5 Comments
2122 1212 22
बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे ज़िन्दगी बना बैठा
एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा
धूप अपने शबाब पर आई
और साया भी दूर जा बैठा
ख़त्म कैसे भला अँधेरा हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा
फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा
'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने चाँद अनमना बैठा
(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2021 at 12:30pm — 10 Comments
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जरा सा मसअला है ये नहीं तकरार के क़ाबिल
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल
न ये संसार है मेरे किसी भी काम का हमदम
नहीं हूँ मैं किसी भी तौर से संसार के क़ाबिल
न मेरी पीर है ऐसी जिसे दिल में रखे कोई
न मेरी भावनायें हैं किसी आभार के क़ाबिल
ये मुमकिन है ज़माने में हंसी तुझसे ज़ियादा हों
सिवा तेरे नहीं कोई मेरे अश'आर के क़ाबिल
मेरे आँसू तुम्हारी आँखों से बहते तो अच्छा…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 25, 2021 at 12:00pm — 14 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 7, 2021 at 4:00pm — 8 Comments
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मिलेगा और मिल कर रो पड़ेगा
मुझे देखेगा तो घर रो पड़ेगा
न जाने क्यों कहाँ खोया रहा हूँ
मेरी आहट पे ही दर रो पड़ेगा
मुझे वो भूल जाने के लिये ही
करेगा याद अक़्सर रो पड़ेगा
हँसी मुस्कान होंठों पे सजाकर
कोई इंसान अंदर रो पड़ेगा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2021 at 3:00pm — 10 Comments
बह्र-ए-मीर
मुद्दत से वीरान पड़े इस उजड़े खंडर की
अब कौन करे परवाह जहाँ में दीदा-ए-तर की
गलियों में सन्नाटा पसरा शमशानों में शोर
आँखों को उम्मीद नहीं थी ऐसे मंज़र की
पास तुम्हारे बढ़ने लगता है जब कोलाहल
याद बड़ी तब आती है अपने सूने घर की
मिलकर मंज़िल पा लेंगे कब ऐसा बोला था
लेकिन तैयारी करते दोनों एक सफ़र की
अक्सर दरवाजे पे आ 'ब्रज' ने राह निहारी
इक दिन तो चिट्ठी आयेगी मेरे दिलबर की
अन्दर के खालीपन से डर डर के घबरा के
'ब्रज' आया…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:06pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
छुड़ाया चाँद ने दामन अँधेरी रात में आख़िर
परेशां हूँ कमी क्या है मेरे ज़ज़्बात में आख़िर
उसे कुछ कह नहीं सकता मगर चुप भी रहूँ कैसे
करूँ तो क्या करूँ उलझे हुए हालात में आख़िर
भुलाना चाहता तो हूँ मगर मजबूरियाँ भी हैं
उसी की बात आ जाती मेरी हर बात में आख़िर
सुनो अय आँसुओं बेवक़्त का ढलना नहीं अच्छा
जलूँगा कब तलक मैं इस क़दर बरसात में आख़िर
मुख़ातिब हैं सभी मुझसे कि आगे…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 17, 2021 at 2:20pm — 6 Comments
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अगर कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना
मेरी उदासी मुझे अकेला न छोड़ देना
बिना तुम्हारे ये ज़िन्दगी अब कटेगी कैसे
जो तू नहीं तो नफ़स की डोरी भी तोड़ देना
जरा सी कोई रहे हरारत न जान बाकी
कि जाते जाते बदन हमारा निचोड़ देना
कभी हमारे ग़मों पे तुझको दुलार आये
वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना
तेरे ग़मो का उसे न होगा पता, है मुमकिन
मगर सिरा 'ब्रज' उदासियों का न जोड़…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2021 at 10:30am — 11 Comments
1222 1222 1222 122
ग़मों की दिन-ब-दिन क़िस्मत सँवरती जा रही है
उदासी इस क़दर मुझमें उतरती जा रही है
अभी तो वक़्त है पतझर के आने में,हवा क्यों
चली ऐसी कि मन वीरान करती जा रही है
बहारों ने चमन लूटा मगर बाद-ए-सबा ये
खिज़ाओं पे हरिक इलज़ाम धरती जा रही है
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 19, 2021 at 10:30am — 14 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
ज़िन्दगी में सिर्फ़ ग़म हैं और तुम हो
आज फिर से आँखें नम हैं और तुम हो
लग रहा है अब मिलन संभव नहीं है
वक़्त से लाचार हम हैं और तुम हो
रात चुप, है चाँद तन्हा, साँस मद्धम
इश्क़ में लाखों सितम हैं और तुम हो
दिल की बस्ती में अकेला तो नहीं हूँ
नींद से बोझिल क़दम हैं और तुम हो
क्या बताऊँ किसलिये है 'ब्रज' परेशां
वस्ल के आसार कम हैं और तुम हो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:30pm — 11 Comments
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