For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222      1222      1222       122

किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात  का दुख
परेशां  हूँ हुआ  है अब तुझे किस बात का दुख

तुम्हें  तो  पड़  गई  हैं  आदतें  सी  रतजगों  की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख

जमाती  सर्दियाँ, फुटपाथ  का  घर, पेट  ख़ाली
उन्हें  सोने  नहीं  देता  कई  हालात  का  दुख

भिंगोते  रात  का आँचल  बशर अपने  ग़मों से
सवेरे फिर बरसता ओस बनकर रात का  दुख

वो  सारी  ज़िन्दगी अपने लहू  से  सींचता 'ब्रज'
समझती क्यों नहीं संतान कोई, तात का  दुख

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 463

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 17, 2022 at 11:09pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मनोज जी...सादर

Comment by मनोज अहसास on January 12, 2022 at 12:13am

सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय

आदरणीय समर साहब की इस्लाह से बहुत कुछ साफ हो ही गया है

हार्दिक बधाई

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2022 at 7:48am

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन।सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 31, 2021 at 6:37pm

आदरणीय समर कबीर जी ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित हमेशा प्रेरणादायी है...हाँ आदरणीय दुःख शब्द पे कुछ दिन पहले शायद आदरणीय नीलेश जी की ग़ज़ल पे चर्चा हुई थी...ध्यान में क्लियर नहीं था...इसलिए प्रयुक्त किया...अभी बदल दूँगा।

मसलात मसअला का बहुवचन ही लिया है..सुना हुआ लगता है इसलिए लेकिन आपने बताया तो कुछ सुधार करता हूँ...बाकी सभी सुधार भी करता हुँ आपके निर्देशानुसार।सादर

Comment by Samar kabeer on December 31, 2021 at 2:31pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'दुःख' शब्द विसर्ग के साथ लिखेंगे तो इसकी मात्रा 3 होगी,इसे 2 पर लेना है तो "दुख" लिखें ।

'किसी की बेरुख़ी  है या तेरे  हालात  का  दुःख'

इस मिसरे में 'तेरे' शब्द की जगह "सनम" शब्द उचित होगा,ग़ौर करें ।

'तुम्हें  तो  पड़  गईं  हैं  आदतें  सीं  रतजगों  की'

इस मिसरे में 'गईं' को "गई" और 'सीं' को "सी" कर लें ।

'उन्हें  सोने  नहीं  देता इन्हीं  मसलात का  दुःख'

इस मिसरे में 'मसलात' शब्द शायद आपने 'मसअला' शब्द के बहुवचन के तौर पर लिया है, अगर ऐसा है तो ये ग़लत शब्द है 'मसअला' शब्द का बहुवचन "मसाइल" या "मसअले" होता है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service