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ख़्वाबों को ज़रा आँख के पानी से निकालो
इन बुलबुलों को अश्क-फ़िशानी से निकालो
ईमान की कश्ती पे मुहब्बत की मसर्रत
इस कश्ती को तूफ़ां की रवानी से निकालो
इस रास्ते पे वस्ल की उम्मीद नहीं है
तरकीब कोई राह पुरानी से निकालो
ग़ज़लों को रखो नफ़रती शोलों से बचाकर
अश'आर सभी लफ़्ज़ गिरानी से निकालो
इक रोज़ गुज़र जाऊँगा ज्यूँ वक़्त गुज़रता
भावों में रखो मुझको मआनी से निकालो
ग़र याद उसे करते ही आ जाते हैं आँसू
'ब्रज' इतना बुरा है तो कहानी से निकालो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
मैं पहले ही कह चुका हूँ निर्णय आपका है।
आदरणीय अमीरुद्दीन जी सच कहूँ तो मैं अब भी आपकी बात नहीं समझा..अगर,मगर,गर ये प्रश्नवाचक शब्द हैं.. जैसे हम कहें "अगर ऐसा हुआ" के बाद हमें तो लगाना ही पड़ेगा तभी सम्पूर्ण प्रश्न सामने आएगा।वैसे ही इतना,कितना किसी प्रश्न में प्रयुक्त हों तो उन्हें तो से ही जोड़ना पड़ेगा...
//गर और तो समानार्थी नहीं है शायद...गर मतलब यदि और यदि के साथ तो का इस्तेमाल कर सकते हैं//
जनाब बृजेश जी, लगता है मैं अपनी बात को सही तरीके से पहुँचा नहीं सका हूँ, ये बात सही है कि गर और तो शब्द समानार्थी नहीं हैं... मगर हम इन शब्दों का प्रयोग कैसे कर रहे हैं और इनका प्रभाव क्या दर्शा रहा है, ये बहुत अहम है, मैं चेतन प्रकाश जी के उदाहरण स्वरूप दिये वाक्य पर आपके तर्क से भी सहमत हूँ और आदरणीय समर कबीर जी के कोट किये गये तमाम अशआर पर भी मुत्तफ़िक़ हूँ कि अगर के साथ तो का इस्तेमाल ज़बान के ऐतबार से दुरुस्त है...मगर अगर बात एक वाक्य में पूरी हो रही हो तो, जैसे -
'यदि आज भी बुखार रहता है, तो मैं काॅलेज नहीं जाऊँगा'
इसी तरह आ. समर कबीर जी का कोट किया गया हर एक मिसरा।
मगर आपके मक़्ते के ऊला के शुरूअ में गर आने से वाक्य पूरा नहीं हो रहा है, और सानी मिसरे का 'इतना बुरा है तो' शब्द समूह भी अगर का इम्पैक्ट दे रहा है, शायद मैं अपनी बात पहुँचा सका हूँ।
बाक़ी विवेक और निर्णय आपका है।
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनंदन एवं आभार आदरणीय मेहता जी...
आदरणीय चेतन जी...जैसा कि आपने बताया
'यदि आज भी बुखार रहता है, मैं काॅलेज नहीं जाऊँगा! ' इसमें तो की कमी साफ महसूस हो रही है।दो वाक्यों को जोड़ने के लिए मध्य में एक पुल तो चाहिए न!?
और आदरणीय समर जी ने कुछ उदाहरण के साथ विस्तृत में बताया है कि गर और तो का इस्तेमाल एक साथ किया जा सकता है...सादर
आदरणीय बृजेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बाक़ी आदरणीय समर कबीर जी ने जो सुझाव दिया है, उसपर गौर फरमाइयेगा।सादर।
जनाब चेतन प्रकाश जी ,
जनाब अमीरुद्दीन जी, अव्वल तो ये कि 'गर'(अगर) और 'तो' शब्द के अर्थ अलग-अलग हैं और इनका इस्तेमाल 'ब्रज' जी के मक़्ते में बिल्कुल दुरुस्त है, मैं चंद ऐसे शाइरों के अशआर पेश कर रहा हूँ जो ज़बान पर पूरी दस्तरस रखते हैं I
ग़ालिब के शागिर्द मौलाना अल्ताफ़ हुसैन 'हाली' का ये मतला देखें :-
'वाँँ अगर जाएँ तो लेकर जाएँ क्या
मुँह उसे हम जा के ये दिखलाएँ क्या '
(हाली)
'साए हैं अगर हम तो हो क्यों हम से गुरेज़ाँ
दीवार अगर हैं तो गिरा क्यों नहीं देते '
(अहमद फ़राज़ )
'हम हक़ीक़त हैं तो तस्लीम न करने का सबब
हाँ अगर हर्फ़-ए-ग़लत हैं तो मिटा दो हमको"
(अहसान दानिश)
साहिर का मशहूर गीत :-
'तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी'
उम्मीद है संतुष्ट हुए होंगें ?
आदाब, भाई बृजेश कुमार ब्रज, आप यूँ समझिये, सानी और ऊला दो रस्सी के टुकड़े हैं, आपको उन्हें एक करना है, कितने जोड़ लगाइएगा, बताइये! भाषा शास्त्र और ध्वन्यात्मक विज्ञान Linguistics & Phonetics) ताउम्र विश्व विद्यालय स्तर पर पढ़ाया, आप मेरी अन्यथा न ले! शर्त वाले वाक्य का विन्यास कुछ यूँ होता है, 'यदि आज भी बुखार रहता है, मैं काॅलेज नहीं जाऊँगा! '
आदरणीय चेतन जी जहाँ तक मेरी जानकारी है गर का अर्थ यदि है...और यदि के साथ तो ठीक ही है...
भाई चेतन जी, मैंने ऊला में कुछ मशविरा दिया है, उसके बाद मुझे नहीं लगता कि कोई गुंजाइश है ।
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