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स्वागत संग आभार आदरणीय धामी जी...
आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय मेथानी जी आपके सुंदर और मनोहारी शब्दों के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन और आभार...स्नेह बनाये रखें।
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, बहुत सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने। कुछ पंक्तियां तो बहुत सुंदर है। मसलन ..... याद मीठी है बड़ी और हैं खारे आँसू और की ख़ता दिल ने बहे दर्द के मारे आँसू। इसी प्रकार अन्य पंक्तियां भी बहुत अच्छी लगी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय अमीरुद्दीन जी ग़ज़ल पे आपकी शिरकत और हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया..
सातवें शे'र का भाव नहीं समझ सका हूँ। शेष शुभ-शुभ
सब कल्पनाओं का खेल है आदरणीय...विरह में तपता हुआ एक व्यक्ति को हर चीज व्याकुल जैसी भी प्रतीत होती है।कई बार वो अपने आसुओं में सब कुछ डुबो देने की बात करता है...कई बार विरहानल मे जला देने की...ऐसे ही हर तड़पती शय की प्यास बुझे..आगे आपकी राय महत्पूर्ण है...सादर
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
याद मीठी है बड़ी और हैं खारे आँसू.. इस मिसरे के लिए विशेष दाद लीजिये
बधाई
आदरणीय नीलेश जी आपके शब्द पारितोषिक हैं मेरे लिए..इस काफ़िये और रदीफ़ पे बड़ी ही प्यारी ग़ज़लें पढ़ी हैं बस उन्हीं का अनुसरण करने की कोशिश है।सादर
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।
'ढल गये आँख से चुपचाप हमारे आँसू' (आँखों कर लें)
सातवें शे'र का भाव नहीं समझ सका हूँ। शेष शुभ-शुभ।
आ. बृजेश ब्रज जी,
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
याद मीठी है बड़ी और हैं खारे आँसू.. इस मिसरे के लिए विशेष दाद लीजिये
बधाई
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