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मिलेगा और मिल कर रो पड़ेगा
मुझे देखेगा तो घर रो पड़ेगा
न जाने क्यों कहाँ खोया रहा हूँ
मेरी आहट पे ही दर रो पड़ेगा
मुझे वो भूल जाने के लिये ही
करेगा याद अक़्सर रो पड़ेगा
हँसी मुस्कान होंठों पे सजाकर
कोई इंसान अंदर रो पड़ेगा
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन जी ग़ज़ल पे शिरकत और हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
आदरणीय नीलेश जी...ग़ज़ल को बारीक नजर से परखने के लिए आपका हार्दिक आभार...मतले को लेकर आपका सुझाव बहुत ही खूब है...और आपके कहे अनुसार बाकी मिसरे मांजने की कोशिश करूँगा...स्नेह बनाये रखें...
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं। गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें। सादर।
आ. ब्रज जी
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है.
मतले के मिसरे आपस में बदल कर देखें
मिलेगा और मिल कर रो पड़ेगा
मुझे देखेगा तो घर रो पड़ेगा... इससे बात थोड़ी लेट खुलती है और शेर चौंकाने वाला हो जाता है..
इस ग़ज़ल के कई मिसरे बहुत बारीक सी फाइन ट्यूनिंग चाहते हैं.. थोडा और समय दीजिये रचना को ताकि यह और निखर सके.
..
वो मुझ को भूल जाने ही की ज़िद में ..
करेगा याद अक्सर रो पड़ेगा .. ऐसे छोटे छोटे परिवर्तन ग़ज़ल रंग को और बढ़ाएंगे..
सादर
आदरणीय समर कबीर जी...रचना पटल पे आपका स्वागत संग आभार व्यक्त करता हूँ...दूसरे शे'र में कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ और विराम चिन्ह वाली आपकी सलाह का आगे ध्यान रखूँगा... सादर
जनाब बृजेश कुमार `ब्रज` जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I
`न जाने क्यों?कहाँ खोया रहा हूँ?
मेरी आहट सुनी, दर रो पड़ेगा`
इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, देखिएगा I
एक बात ये ध्यान में रखें कि ग़ज़ल में विराम चिन्हों का प्रयोग उचित नहीं होता I
आदरणीय धामी जी...धन्यवाद स्नेह बनाये रखें...
ग़ज़ल पे आपकी हौसलाफजाई का शुक्रिया आदरणीय वर्मा जी...सदर
आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
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