2122 2122 2122 212
आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है
है सभी में दाग दुनिया को बताता कौन है
काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल
आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है
आंधियाँ तूफान लाते है तबाही हर जगह
दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है
देश में शोषण किसानों का हुआ अब तक बहुत
दाल रोटी दो समय उनको दिलाता कौन है
बात मेठानी सुनो सबकी सदा तुम ध्यान से
भय हमारी जिन्दगी से अब भगाता कौन है
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी
Comment
आद0 दयाराम मैथानी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। आद0 समर साहब की बातों पर ध्यान दीजियेगा। बधाई निवेदित करता हूँ
जनाब दयाराम मेठानी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल'
इस मिसरे के बारे में ये कहना चाहूंगा कि कोई भी मज़हब इंसान को बुराई का रास्ता नहीं दिखाता, इसलिए इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
'काम लोगों का हुआ दंगे कराना आजकल'
' आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है "अब बुझाता' इस मिसरे को यूँ कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा:-
"अब वतन में आग दंगों की बुझाता कौन है'
' दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है'
ये मिसरा लय में नहीं है,क्योंकि आपने 'अंधेरी' शब्द का वज़्न 222 लिया है,जबकि सहीह शब्द है "अँधेरी"122,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'दीप अब तारीक राहों में जलाता कौन है'
आदरणीय फूल सिंह जी, प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय राज नवादवी जी, टिप्पणी कर प्रोत्साह देने के लिए आपका बहु बहुत आभार।
अच्छी ग़ज़ल बन पड़ी है बधाई स्वीकारें
आदरणीय दयाराम मेथानी जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर.
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला। आपने जो सुझाव दिया है उस पर अवश्य विचार करुंगा। यदि आप अपना सुझाव आैर अधिक स्पष्ट करें तो मेरे लिए सहायक होगा। बहुत बहुत धन्यवाद। कृपया भविष्य में भी इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहें। सादर।
आ. भाई दयाराम जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई ।
दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है
यह मिसरा लय में नहीं है देखियेगा ।
शेष शुभ शुभ..
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