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भजो राम को या भजो श्याम को या, भजो नित्य ही मित्र माँ बाप को |
चुनों धर्म का मार्ग सच्चा हमेशा , बढ़ावा न देना कभी पाप को,
सिखाना सभी को सिखाना स्वतः को, भुलाना यहाँ व्यर्थ संताप को,
नई ये हवाएं कहें क्या सुनो तो, सुनो थाप को वक्त की चाप को ||
तजो लाज सारी करो कर्म अच्छे, रहोगे जहां में तभी शान से |
न लेना किसी का न देना किसी का, जिलाता यही मार्ग सम्मान से,
बिना कर्म पाते सभी दुःख देखो, नहीं शान्ति पाते मिले दान से,
इसे सीख जानो इसे ज्ञान मानो, मिला हो भले एक अन्जान से ||
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरनीय अशोक भाई , बहुत सुन्दर संदेश देते , इस प्रवाह मय सवैयों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी सादर, आप भी वागीश्वरी सवैये पर प्रयास करना चाहते हैं जानकर प्रसन्नता हुई है. आपको छंद अच्छे लगे इसके लिए आपका दिल से आभार. सादर.
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको प्रस्तुत छंद पसंद आये मेरी रचना को मान मिला. सादर आभार.
आदरणीय रामबली गुप्ता जी सादर, आपको छंद अच्छे लगे इसके लिए दिल से आभार. आपके द्वारा प्रथम छंद में आये 'या' को पुनरुक्ति दोष की तरह देखा जा रहा है जबकि मुझे वह इसतरह तो कतई नहीं लग रहा है. "न लेना किसी का न देना किसी का" यह उक्ति समाज से सम्बन्ध तोड़ लेने के लिए प्रयुक्त नहीं होती यह लेन-देन की बुराई की ओर इंगित करती है. फिरभी यह मेरा छंद पर प्रयास ही है आपने छंद को जिस गहनता से पढ़ा है मैं उसके लिए आपका पुनः आभारी हूँ और आगे अवश्य ही आपके विचारों का ध्यान में रखूंगा. सादर.
प्रस्तुत सवैया छंदों को सराहने के लिए दिल से आभार आदरणीय सुशील सरना साहब.सादर.
आदरणीय अशोक रक्ताले जी सादर,
दोनो ही वागीश्वरी सवैये सुंदर रचे है आपका प्रयास सचमुच सराहनीय है.जो मुझे भी इस विधा को समझने और लेखन कार्य के लिये उत्प्रेरित कर राहा है. अतएव आपका मन से आभार तथा इस प्रस्तुति हेतु सादर बधाई
आदरणीय रक्ताले साहिब इस दिलकश सवैये की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
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