कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,
तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |
अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है
भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||
रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,
जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |
देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,
तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||
दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे आऊँगा,
अपने चरणों में रहने दे , तेरे ही गुण गाऊँगा |
भेज न मुझको दूर कहीं तू, माता मैं ना जाऊँगा,
दूर गया तो कैसे तुझ सी, माता फिर मैं पाऊँगा ||
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
माँ से बढ़कर कोई नहीं | बेहद सुंदर रचना | हार्दिक बधाई सर |
आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी सादर, प्रस्तुत रचना के भाव आप तक पहुँचे रचना सफल हुई है. आपका कहना उचित है. 'ये ईच्छाएं' के साथ 'थीं ' लिखना पडेगा. असावधानीवश यह त्रुटि हुई है. मैं इसे संशोधित कर लेता हूँ. " तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी" सादर.
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, रचना को सराहने के लिए आपका दिल से आभार. आपका सुझाव उत्तम है. मैंने वहां लिखा था 'ये ईच्छा भी मेरी थी' किन्तु चारों चरणों में आया 'भी' मुझे ठीक नहीं लग रहा था इसलिए बदलाव किया और वहीँ असावधानी हो गई. इस उत्तम सुझाव के लिए भी आपका हार्दिक आभार. सादर.
प्रस्तुत रचना पर उत्साहवर्धन करने के लिए आप सभी गुनीजनों का दिल से आभार आदरणीय भाई रवि शुक्ला जी, आदरणीय सुरेश कुमार जी, आदरणीय भाई शिज्जू 'शकूर' जी, आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, आदरनीय रामबली गुप्ता जी. सादर.
आदरनीय अशोक भाई , पुत्र की भावनायें माता के प्रति मुखर हुई , इस छंद रचना से । बहुत खूब बहुत बधाइयाँ आपको ।
बच्चे माँ-पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कितना कुछ ना चाहते हुए भी कर जाते है.... कैसी असमंजस की घड़ी को व्यक्त किया है आपने ताटंक छंद में आदरणीय अशोक रक्ताले जी ...कि वो न चाहते हुए भी जा रहा है, माँ न चाहते हुए भी भेजे ये उसकी चाह है...
बहुत सुन्दर भाव प्रवण प्रस्तुति
बहुत बहुत बधाई
//तुझको छोड़ कहीं जाऊँ कब , ये ईच्छाएं मेरी थी // ...इस चरण में तो थी थीं हो जाएगा न तब व्याकरणिक और तुकान्त दोनों में ही दोष होगा .....बस यहीं परिवर्तन अपेक्षित है..बकी बहुत खूबसूरत
आ. अशोक रक्ताले सर अच्छी भावपूर्ण रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय अशोक भाईजी
सुंदर शब्द सुंदर भाव से युक्त सुंदर ताटंक छंद , हार्दिक बधाई
//// रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,
जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |
देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,
तुझको छोड़ कहीं जाऊँ कब , ये ईच्छाएं मेरी थी ||///
आदरणीय कुछ बदलाव के साथ इसे इस क्रम में लिखें तो .........
देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,
जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |
रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,
तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं , कब ये इच्छा मेरी थी ||
सादर
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