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जिन्दगी अब सरल हो रही है
बात हर इक गजल हो रही है
दलदली हो चुकी है जमीं पर,
हर कली अब कमल हो रही है
तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें
नीति बेशक सफल हो रही है
आ रहा है कहीं से उजाला
रौशनी आजकल हो रही है
मखमली हो रही हैं हवाएं
मेंढकी भी विकल हो रही है
है दरोगा बड़ा लालची वो
धारणा अब अटल हो रही है
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय अशोक जी इस खूबसूरत ग़ज़ल पर मुबारकबाद स्वीकार करें !!
साभार !!
आदरणीय अशोक जी , क्या बात है , बहुत बढि़या गज़ल कही है , सभी अशआर क़ाबिले दाद हैं । मुबारकबाद कुबूल करें । बाकी के पांच शेर के मुकाबले एक शेर तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित कर रहा है रोशनी आजकल हो रही है इस शेर में बाकी शेर की तरह अर्थ का विस्तार हमें नहीं लगा । अन्यथा नहीं लीजियेगा । आप गाने में भी सुरीले है उज्जैन में पता चला था इस गजल को आपसे सुनना और भी अच्छा अनुभव होगा । सादर ।
आदरणीय अशोक भाई , क्या बात है , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर क़ाबिले दाद हैं । मुबारकबाद कुब्प्प्ल कीजिये ।
आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी सादर, प्रस्तुत गजल पर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया. सादर.
सादर आभार आदरणीय समर कबीर साहब, मैं आपके द्वारा इंगित शैर हटा लेता हूँ और एक बदलाव कर पुनः संशोधित गजल पोस्ट करता हूँ. आपका दिल से शुक्रिया. सादर.
आदरणीय अशोक जी इस उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार. सादर. अच्छी सलाह है आपकी मैं आदरणीय समर साहब के विचारों को जान लूँ, फिर बदलाव करता हूँ. सादर.
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