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मोद-सुमन जो नित्य हृदय के पास रहे
सौरभ का भी जीवन में आवास रहे
मार्ग भले ही छोटा या फिर लम्बा हो
पैरों पर प्रति पल अपने विश्वास रहे
सौहार्द रखे आँगन यदि बारहमासा
मुखड़ा कोई एक न मित्र उदास रहे
उर्वरता न कभी खोये मिटटी अपनी
इतना केवल सबका नित्य प्रयास रहे
नित्य नया यदि ऋतुएँ पुष्प खिलाए तो
और अधिक जीवन की मन में आस रहे
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मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार जी प्रस्तुत ग़ज़ल पर उत्साहवर्धन के लिए आपका अतिशय आभार. सादर
आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब सादर, 'बारहमासा' शब्द को किसी क्रिया विशेष से जोड़कर देखा जाना उचित नहीं है. बारहमासा एक विशेषण अवश्य है. /खिलाएँ/ जी ! यह त्रुटि अवश्य रह गई है. प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय महेंद्र कुमार जी प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर
हिंदी शब्दों को पिरोते हुए अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय...
'सौहार्द रखे आँगन यदि बारहमासा' इस ऊला मिसरे में आया शब्द "बारहमासा" का अर्थ शब्दकोश में - विरह प्रधान लोकगीत; वह पद्य या गीत जिसमें बारह महीनों की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहिणी के मुँह से कराया गया हो; वर्ष भर के बारह मास में नायक-नायिका की श्रृंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं के चित्रण। बताया गया है, इन अर्थों में ऊला मिसरे का सानी मिसरे के साथ रब्त नहीं है, क्या इस मिसरे को यूँ किया जा सकता है? -
'यदि सौहार्द रहे मन आँगन जीवन में'
आख़िरी शे'र में 'खिलाएं' में टंकण त्रुटि हो गयी है... देखियेगा।
अच्छी ग़ज़ल है कही है आपने आदरणीय अशोक रक्ताले जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत प्रयास पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर
जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब, हिन्दी शब्दों में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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