लगे रहो तुम मेरे प्यारे, पीछे मत हटना अन्ना हज़ारे
सोलह से अनशन ज़रूर करना, अब किसी से ज़रा न डरना
क्योंकि पूरा देश तुम्हारे साथ है
पर ये और बात है,
कि मैं नहीॅं आ पाऊंगा ।
क्योंकि बिजली चोरी करते पकड़ा गया था
ज़ुर्माना भरने अदालत जाऊंगा
मज़बूरी है वर्ना ज़़रूर आता , साथ तुम्हारे नारे लगाता
गली-गली में शोर है, हर एक नेता चोर है ।।
अन्ना, मैं सत्रह को भी नहीं आ पाऊंगा
नया मकान खरीदा है, रजि़स्ट्री कराने जाऊंगा
मैं वहां मौज़ूद रहा तो दो…
Posted on December 29, 2015 at 12:49pm — 2 Comments
मैं खड़ा हूं आपकी अदालत में सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है ।
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है ।
पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं निर्दोष हूं, बेचारा हूं
सच तो ये है कि मैं हत्यारा हूं,
हां मैं हत्यारा हूं
मैं हत्यारा हूं अपने बेटे के मासूम बचपन का
मैं हत्यारा हूं अपनी बेटी के खिलते हुए यौवन का
मैं हत्यारा हूं मां-बाप की बूढ़ी आस का
मैं हत्यारा हूं अपनी पत्नी के कमज़ोर से…
Posted on December 2, 2015 at 10:00am — 13 Comments
दुनिया देती मुझे बधाई, कि मैं कितना संभल गया
मुझे ग्लानि, आंख में पानी, कि मैं इतना बदल गया
एक समय होता था जब मैं,
न्याय की बात पर अड़ जाता था
आग धधकती थी सीने में
हर जुल्मी से भिड़ जाता था
अब रोज़ द्रौपदी होती नंगी, खून ज़रा भी नहीं खौलता
कोई सूरज को भी चांद कहे तो, चुप रहता हूं नहीं बोलता
कहते हैं सब भला हुआ कि अब चुक सा गया हूं मैं
सच तो ये है लेकिन अब, ज़रा थक सा गया हूं मैं .
थक गया हूं झूठे रिश्तों का, बोझ…
ContinuePosted on November 22, 2015 at 10:00am — 11 Comments
ऐसा नहीं कि मुझे कविता, लिखनी नहीं आती
सच तो ये है कविता मुझसे लिखी नहीं जाती .
कविता लिखने की ललक में, ऐसे उठाता हूं मैं पैन
गर्भवती कोई जैसे छुपके, कच्चा आम लपकती है.
पर बेचारा कोरा कागज़, यूं सहमने लगता है
जैसे गुण्डों से घिरी, कोई अबला मिन्नत करती है.
शील-हरण तो रोज़ ही होते, बड़े शहर के चौराहों पर
लेकिन मुहल्ले की गलियों में, मैली आंख भी नहीं सुहाती.
इसीलिए तो कविता मुझसे लिखी नहीं जाती.
चाहूं तो किसी की झील सी आंखों…
Posted on November 13, 2015 at 6:30pm — 14 Comments
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जन्मदिन की हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप नील वशिष्ठ जी।
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आपका अभिनन्दन है.
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