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Sheikh Shahzad Usmani
  • Male
  • SHIVPURI M.P.
  • India
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"आदाब। आपकी पैनी दृष्टि से रचित यह कड़वे सच वाली रचना वाकई कुछ भिन्नता लिये हुए है। हार्दिक बधाई जनाब अजय कुमार 'अजेय' जी। लघुकथा में लघुता, लघु संवाद और सांकेतिकता का बड़ा महत्व होता है। कुछ संवाद बड़े हो गये हैं। जो कम शब्दों में सांकेतिकता…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"यह भी खूब रही। पोल खोल रही। बढ़िया शैली में बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"रचना पटल पर उपस्थिति हेतु धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। अचानक 'म' सूझा और म, मा , माँ आदि के संग  संकेतों में कुछ कहना चाहा। रचना के संबंध में भी मार्गदर्शन चाहूँगा।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"रचना पटल पर त्वरित समय देकर प्रोत्साहक प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया आदरणीय अजय गुप्त 'अजेय' जी।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"'मतलब' और 'मतलबी'! (लघुकथा):  "ज़रा ग़ौर फ़रमाइयेगा जनाब, शब्द 'आरम्भ' में 'म' है और 'समापन' में 'म' है! 'मध्य', 'मध्यांतर' में भी 'म' है, तो 'विराम' में भी 'म' है!""बिल्कुल साहब! आधे 'म' से ' 'म' और 'मा' तक...ग़ज़ब की बात पकड़ी है आपने तो!""तो फ़िर…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज़वीर सिंह जी।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"रचना पटल पर समय देकर अपनी राय से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहेदिल से शुक्रिया जनाब अजय गुप्ता 'अजेय' साहिब।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"रचना पटल आपकी उपस्थिति और यूँ हौसला अफ़जाई हमें निरंतर विधागत लिखने की प्रेरणा देता है।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"शुक्रिया आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। वैसे अभी तक मेरे अनुभव में ऐसा नहीं आया है..कि..//नाम बदलकर, वेश बदलकर  अपनी रोजी निबाहते हैं //.. मेरे अनुभव में इसी सप्ताह रचना अनुसार प्रसंग स्वयं के साथ हुआ है।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani commented on Sushil Sarna's blog post लघुकथा -सीख
"शीर्षक भी कुछ और.बेहतर दिया जा सकता है, ताकि पाठक की जिज्ञासा बढ़ाई जा सके। अथवा शीर्षक भी प्रतीकात्मक और संदेश वाहक हो रचना के प्रवाह संग।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani commented on Sushil Sarna's blog post लघुकथा -सीख
"आदाब। आज़ादी के अमृतमहोत्सव के वातावरण में ऐसा सृजन बहुत महत्वपूर्ण है। बेहतरीन लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई जनाबसुशील सरना साहिब। समापन पंक्ति और अंतिम संवाद रचना को बोधकथा या प्रेरककथा की श्रेणी में ला देता है। यदि इस भाग में कोई परिवर्तन किया जाये या…"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"नमस्कार। आपकी यह अद्भुत मारक क्षमता वाली संकेतात्मक लघुकथा पढ़कर बहुत प्रभावित हुआ। हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी। एक तीर से कई निशाने। पाठक प्रतीकों के अर्थ भिन्न तरह से ले सकेंगे रचना को बहुआयामी साबित करते हुए। वर्तमान में भी…"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"सादर नमस्कार। पीढ़ियों से चली आ रही रिवायत/परम्परा (ज़िद/माँग/भावात्मक शोषण/प्रलोभन/मानसिकता) को तोड़ने की बात उभारती सकारात्मक संदेशवाहक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।  रियायत, रिवायत की रियासत से परे। "
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"कहीं रफ़ू, कहीं थिगड़़े (लघुकथा) : इंजीनियर असलम साहब एक नये ठेले वाले को सब्ज़ी के पैसे ऑनलाइन अदा कर अपने मोबाइल की स्क्रीन पर दिखे उसके नाम को पढ़कर अबकी बार फ़िर से चौंक गये और बोले, "यार, तुम भी वही! .. जितने भी ठेलों वगैरह से कुछ ख़रीदकर जब भी…"
Aug 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-101
"आदाब। हार्दिक बधाई आयोजन की पहली बढ़िया विषयांतर्गत पेशकश हेतु आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। कड़वे सच.. कड़वी ज़िदें और हदें!"
Aug 30

Profile Information

Gender
Male
City State
Shivpuri M.P.
Native Place
Shivpuri
Profession
Radio Announcer
About me
A Private School- teacher, Freelancer and a Casual Radio Announcer. Simlple living, high thinking, fond of reading and writing.

Sheikh Shahzad Usmani's Blog

मुंगेरीलाल के वैक्सीन सपने (कहानी) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी :

मुंगेरीलाल और कोरोनाकाल... सबके बहुत बुरे हालचाल! लॉकडाउन पर लॉकडाउन... घर में क़ैद सब जॉब डाउन, रोज़गार डाउन! बेचारे मुंगेरीलाल ने अपनी कम्पनी की नौकरी छोड़कर बड़ी मुसीबत कर ली थी सात साल पहले। उनका काम और रुझान दिलचस्प और संतोषजनक था, फ़िर भी सपनों और दिवास्वप्नों में खोये रहने और बड़ी-बड़ी बातें फैंकने के कारण दफ़्तर, घर, बाज़ार और ससुराल सभी जगह लोग उनका मज़ाक उड़ा-उड़ा कर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। उन सबकी बातों को मुंगेरीलाल कभी हल्के में, तो कभी बहुत गंभीरता से ले लेते थे।

एक बार…

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Posted on November 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments

गार्गी की बार्बी (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो…

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Posted on November 10, 2020 at 8:30am — 4 Comments

दिल के हाल सुने दिलवाला (लघुकथा)

"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"



"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"



अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।



"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…

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Posted on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments

हिताय और सुखाय (संस्मरण)

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Posted on November 23, 2019 at 1:00pm — 7 Comments

Comment Wall (13 comments)

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At 12:50am on October 5, 2018, mirza javed baig said…

आली जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब, 

मुझे अपनी दोस्तों की फ़ेहरिस्त में जोड़ने का शुक्रिया 

At 6:43am on July 2, 2018, राज़ नवादवी said…

"आदरणीय Sheikh Usmani साहब, तरही मुशायरे में मेरी ग़ज़ल में शिरकत का दिल से शुक्रिया. समयाभाव था, कमेंट बॉक्स बंद हो चुका है. इसलिए यहाँ से आभार प्रकट कर रहूँ हूँ.सादर "

At 11:59am on April 12, 2018, MD SHAFIQUE ASHRAF said…

जी बहूत  बहुत शुक्रिया जनाब ... नया हूँ .... थोड़ा सीखने का मौका दीजिये  

At 10:23am on January 8, 2017, Dr Ashutosh Mishra said…
आदरणीय शेख भाई जी आपके मित्रों की सूची में खुद को शामिल पाकर मैं सुखद अनुभूति कर रहा हूँ आपकी लघु कथाएं इस मंच पर मेरे बिशेष आकर्षण का केंद्र है आपकी हर लघु कथा मैं पढता हूँ आपकी कलम सृजन के नए आयाम स्थापित करती रहे ऐसी अपनी शुभकामनाओं के साथ सादर
At 8:23pm on August 5, 2016, pratibha pande said…

आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ  आदरणीय उस्मानी जी  ,आपका रचनाकर्म हर दिन नई बुलंदियां छुएँ ,ये कामना करती हूँ 

At 7:30am on June 20, 2016, सुरेश कुमार 'कल्याण' said…
श्रद्धेय शेख शहजाद उस्मानी साहब ये सब तो आप जैसे मित्रों के सहयोग से ही हुआ है और आशा करता हूं कि भविष्य में भी मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे। हृदय की गहराईयों से धन्यवाद ।
At 8:42am on May 24, 2016, महिमा वर्मा said…

आभार आपका आ.शेख उस्मानी सर जी,अभी जानकारी  पूरी नहीं है ,तो आपको जवाब देने में देर हो गई.पुनः आभार आपका .

At 2:11pm on May 1, 2016, pratibha pande said…

मित्रता के लिए आभार 

At 8:41am on November 18, 2015, pratibha pande said…

हार्दिक आभार आपका आदरणीय 

At 9:27am on November 4, 2015, kanta roy said…

देखी वफ़ा-ए-फ़ुरसत-ए-रंज-ओ-निशात-ए-दहर

ख़मियाज़ा यक दराज़ी-ए-उमर-ए-ख़ुमार था---- 

मिर्ज़ा ग़ालिब साहब का ये शेर आज आपके लिए
असीम शुभकामनाएँ आपको आदरणीय शहजाद जी।

 

 
 
 

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२२२२ २२२२ २२२२ २**पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा…See More
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।"
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