देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।
हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.
तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे
तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।
दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक
घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।
दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम
पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।
वो समन्दर था , मगर भटका नहीं
हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।
दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब
छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।
सच्चे इक प्यार के मोती के लिये
हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे ।
सोचने ही भर से जिन्दा हूॅ "अजय"
मिल गये तुझसे तो , मर जाएॅगे।
मौलिक वअप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा
Comment
आदरनीय अजय भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।
अच्छी प्रस्तुति है भाई जी ,परन्तु नियम का पालन भी जरुरी है |
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
koshish to karta hoo ...par har baar seekhne se rah jata hoo.....rachna ka sarahne hetu shukriya
आदरणीय अजय जी सुन्दर प्रयास हुआ है यदि रचना के पहले इसका अरकान या बह्र लिख देते तो समझने में और आसानी हो जाती । और यह मंच का नियम भी है ।
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