चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................
जब छा जाएँगे रिश्तों के निपट अंधेरे
और थकन की धूल पाँव से सर तक बोलेगी
थकते थकते जब इक दिन चुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................
जब जब बोले हैं , बोले हैं खामोशी से हम
और प्रति-उत्तर भी पाए हैं , वैसे ही हमने
मिलते मिलते मौन कहीं जब थक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................
सीधी सरल बात भी गीत , ग़ज़ल या छन्द लगे जब
और लगे ये भाव कि जैसे कोई ख़ुश्बू हो आसपास
छलते -पलते जीवन में जब ऐसे तुक आएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................
प्यास बुझाते रहे मगर हम , सागर से
और मिटाते रहे भीड़ से अपनी तन्हाई
बढ़ते -चढ़ते खुद से जब हम इक दिन झुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................
मौलिक अप्रकाशित अजय कुमार शर्मा
Comment
आदरणीय अजय शर्मा जी,
सुंदर भाव .बधाई.
आदरनीय! अजय कुमार शर्मा सर! आप जब भी अपनी रचनाओ के साथ आते है,कमाल आते है,हर बार नयापन होता है,और लाजव़ाब कहन होता है,काश समय मुझे भी आप सा धैर्य सिखा दे!! इस रचना पर तहेदिल से बहुत बहुत बधाई!
बहुत- 2 बढि़या... बधाई आपको
आदरणीय अजय भाई , भाव पूर्ण , सुन्दर गीत रचना के लिये आपको बधाई ॥
आ० अजय शर्मा जी
भाव की दृष्टि से अच्छी रचना है . सादर.
आपके गीतो मे भावुकता और शैली में कुमार विश्वास और विष्णु सक्सेना जी वाला प्रभाव नजर आता है |वस्तुतः आपकी रचनाएँ मंचीय कविताओं वाली अनुभूति कराती हैं |अगर आपने कहीं video अपलोड किया है तो लिंक दें |
बहुत सुन्दर मनभावन गीत .. बधाई |
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