तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.
वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.
कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.
मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीया रेखा जी. :)
कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.,सुंदर अभिव्यक्ति राज जी ,बधाई
आदर्णीय योगराज सर, आप की बात बिल्कुल सही है. अगली बार से मैं ज़रूर प्रयास करूँगा. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, :)
श्रीमान बागी साब, त्रुटि पर नज़र डालने के लिए बहुत शुक्रिया.सराहना करने के लिए आपका आभार . :)
आदर्णीय सौरभ सर, आपकी बात का स्वागत है. मैं ज़रूर कोशिश करूँगा कि इस बात का ध्यान रखूँ.
आपका आभार. :)
इस कविता के लिये बधाई. राजभाई, इस रचना के शिल्प पर आपको बहुत कुछ कहा जा चुका है. आप उनपर अमल करें. अपने इस गुण को व्यवस्थित करें. शिल्पप्रबुद्ध पाठ पाठकों के साथ-साथ आपको भी सरस लगेगा.
शुभेच्छाएँ
कोमल भावों से सजी यह काव्य अभिव्यक्ति दिल को सुकून देने वाले है, थोड़ी सी गेयता और बढ़ जाये तो सोने पर सुहागा हो जाये. बहरहाल मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें राज भाई.
राज तोमर जी, प्रयास अच्छा है, भाव भी अच्छे हैं, गेयता जो गीत हेतु अनिवार्य अंग है उसमे कमी है जिसे भाई संदीप ने इंगित भी किया है | मुझे लगता है कि कृन्दन शब्द कि जगह क्रंदन होना चाहिए |
इस अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ. - वाह क्या बात है वैसे सुर कभी पुराना नहीं होता मन्त्र मुग्ध
भाई संदीप जी.
मुझे इतना सम्मान देने की ज़रूरत नहीं. मैं इसका पात्र नहीं हूँ.:)
बड़ी खुशी हुई आपने इतने गौर से पढ़ा. और इसमें दिल दुखने जैसी बात कहाँ.
आपकी समालोचना बहुत सही है लेकिन मुक्तक में अर्थ बदल जाएगा . जो मैंने कहने की कोशिश की है और
जो आप कहना चाह रहे हैं थोड़ा भिन्न हो जाएगा. :)
जीवन की रीत नहीं मैं जीवन रूपी रीत की बात कर रहा हूँ.
ऐसे और जैसे की तुकबंदी अच्छी लग रही है.लेकिन अर्थ बदल रहा है. हाँ, अंतिम दो पंक्तियों में आपका सुझाव बहुत ही अच्छा है.
आपका आभारी हूँ कि आपने ऐसा अमूल्य सुझाव और अपना वक्त दिया. भविष्य में भी यही आकांक्षा है आपसे. :)
आदरणीय तोमर साहब सादर
बहुत ही भावात्मक गीत लिखने का प्रयास किया है इसके लिए आपको बधाई
कुछ जगह मुझे लगा की कुछ रिक्त है अर्थात गीत को यदि उन रिक्त स्थानों की पूर्ती करते तो और मधुर और गेय बनाया जा सकता था
जैसे
तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन "की" रीत सजाता हूँ.
वो वल्लरियों से पल ऐसे
तेरी सुध से महके हों जैसे
फिर से सिंचित उर में करके
मन को फिर से समझाता हूँ.
ये मेरे विचार हैं कोई तनकीद नहीं बस एक मित्र को मित्र की सलाह
और ये जरुरी भी नहीं के आप इससे सहमत हों
यदि आपका दिल दुखा हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ स्नेह बनाये रखिये
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