For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122

-------------------------------

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में

वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में

दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से

न हो इतनी बुलंदी बंदगी में

दुआ करना ग़रीबों का भला हो 

भलाई है तुम्हारी भी इसी में

अगर है मोक्ष ही उद्देश्य केवल

नहीं कोई बुराई ख़ुदकुशी में

यही तो इम्तिहान-ए-दोस्ती है

ख़ुशी तेरी भी हो मेरी ख़ुशी में

उतारो ये तुम्हें अंधा करेगी

रहोगे कब तलक तुम केंचुली में

जलें पर ख़ूबसूरत तितलियों के 

न लाना आँच इतनी टकटकी में

सियासत, साँड, पूँजी और शुहदे

मिलें अब ये ही ग़ालिब की गली में

बहुत बीमार हैं वो लोग जिनको

फ़क़त एक जिस्म दिखता षोडशी में

अगरबत्ती हो या सिगरेट दोनों

जगा सकते हैं कैंसर आदमी में

गिरा लेती है चरणों में ख़ुदा को

बड़ी ताकत है ‘सज्जन’ जी मनी में

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 121

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 11, 2025 at 10:25pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2024 at 7:21am

आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 14, 2024 at 2:52pm

जनाब  Samar kabeer साहब,, आप सही कह रहे हैं, एक शब्द या को ये कर देने से शेर की सुंदरता बढ़ रही है। सुझाव  के लिए आभारी हूँ जनाब। बेबह्र  मिसरे की तरफ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया। इसे शीघ्र ही  ठीक करता हूँ। मुहब्बत बनी रहे जनाब। 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 14, 2024 at 2:50pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी

Comment by Samar kabeer on July 13, 2024 at 4:01pm

जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'उतारो या तुम्हें अंधा करेगी'

इस मिसरे में 'या' की जगह "ये" करना उचित होगा ।

'महज एक जिस्म दिखता षोडशी में'

ये मिसरा बह्र में नहीं है, और सहीह शब्द है "मह्ज़" और इसका वज़्न 21 होता है, देखें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2024 at 10:32pm

आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, क्या ही खूब ग़ज़ल कही हैं। एक से बढ़कर एक अशआर हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
12 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जनाब, Gajendra shotriya, आ.' 'मुसाफिर ' साहब को प्रेषित मेरा प्रत्युत्तर आप, कृपया,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
3 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
9 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
9 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service