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व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं व विवशताओं के कारण पूर्व की भाँति न तो लिख पा रहा हूँ और न ही प्रतिक्रिया ही प्रकट कर पा रहा हूँ किन्तु ओबीओ पर पोस्ट रचनायें प्रतिदिन नियमित तौर पर पढ़ रहा हूँ. हाँ ! मासिक आयोजनों में सक्रिय रहने की यथा शक्ति कोशिश अवश्य कर रहा हूँ.
पहले हर सदस्य हर विधा पर प्रयासरत दिखता था.इन्हीं विविध विधाओं के कारण जहाँ यह मंच बहुरंगी छटा बिखेरता था वहीं मुझ जैसे रचनाकार ने भी कविता, गीत, छन्द, गज़ल, बाल गीत, आंचलिक गीत, लघु कथा जैसी विभिन्न विधाओं पर रचना कर पाने का गौरव प्राप्त किया.
इन रचनाओं की शुरुवात हुई सहज त्रुटियों के साथ फिर मंच के परस्पर सीखने-सिखाने के विशिष्ट तत्व के कारण वे परिमार्जित होती गईं."बहुत अच्छा" का गर्व तो नहीं किन्तु "कुछ अच्छा" के आत्म विश्वास ने मुझे अपने अंचल में भी पहचान दिलाई.
आज इस मंच पर न जाने क्यों मुझे एकरसता नजर आ रही है. जो जिस विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है. पहले सा बहुरंगी वातावरण न जाने क्यों मुझे नहीं दिखाई दे रहा है.
हो सकता है मेरा भ्रम हो. "सुझाव व शिकायत" के माध्यम से आप सुधि पाठकों से अनुरोध कर रहा हूँ कि अपने विचार प्रकट कर मेरे भ्रम का निवारण करने में मेरी सहायता करेंगे.
Dr Ashutosh Mishra
आदरणीय निगम सर ..आपने बहुत ही सार्थक प्रश्न किया है ..यह बात मुझ पर भी लागू हो रही है ..मैंने ग़ज़ल लिखना की कोशिस इस मंच से आदरणीय सौरभ सर , आदरणीय वीनस जी आदरणीय बागी जी आदरणीय योगराज जी जैसे बिद्वत जनो के स्नेहिल मार्गदर्शन के साथ शुरू की ..आज भी प्रयास रत हूँ ..यह प्रश्न मैंने व्यक्तिगत रूप से किया था लेकिन मैं भी सिर्फ ग़ज़ल तक सीमित रहा ..बाकी बिधाओं में लिखना मुझे सहज नई लगा लेकिन आदरणीय मिथिलेश जी की इस बात से सहमत हूँ की लिख न सको तो पाठक बन जाओ ताकि साहित्य जिसके उन्नयन का सपना ध्यान में रखकर आदरणीय बागी जी ने इस मंच की स्थापना की है, साकार हो सके ..मैं बाकी बिधाओं पे बतौर पाठक अपनी उपस्थित दर्ज करने का भरसक प्रयास करूंगा ..यह हम सबकी साझा जिम्मेवारी है लिखने वालों को हौसला मिलना जरूरी है ..इसके लिए प्रतिक्रियाओं का होना भी जरूरी है ..मैं सिर्फ ग़ज़ल तक सीमित हूँ ,,बाकी मंचीय रचनाएँ करता हूँ उन्हें साझा करने की हिम्मत नहीं कर पाता पर ..सौरभ सर , योगराज सर बागी सर वीनस जी नूरजी गिरिराज भाईसाब , कबीर जी की प्रतिक्रिया जब तक रचना पर न हो तब तक रचनायें पढने में मजा नाही आता ..इन बिद्वत जनो की प्रतिक्रिया और स्नेहिल स्वभाव , और सबको सिखाने का जज्वा इस मंच की जान है ..इनसे जो सीखने को मिलता है वो किताबो से नहीं सीखा जा सकता है ..इस चितन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..भविष्य में अपनी गलतियाँ सुधरने के वादे के साथ ....सादर
Jul 1, 2015
maharshi tripathi
आ. arun kumar nigam जी ,,आपकी बात शत प्रतिशत सही है ,,,लगभग हर रचना पर सभी गुनीजनों की टिपण्णी की बात मैं आ.गिरिराज सर जी से पहले भी कर चुका हूँ ,उन्होंने उस वक़्त भी इस पर चिंता जतायी थी ,,परन्तु आपने इस मुद्दे को सब के बीच लाकर सही प्रयास किया है ,,शायद अब इस समस्या का निवारण संभव हो ,,,मेरी खुद यही इच्छा है की लगभग हर पाठक सभी रचनाओ को समय दें खास्कर् आ.बागी सर,योगराज सर और अन्य गुणीजन ,,,आप सभी की प्रतिक्रिया पाकर कुछ सीखने की प्रवित्ति और जागृत होती है ,अगर आप सभी की प्रतिक्रिया पोस्ट पर नही आती तो रचना में फीकापन सा लगता है ,,मुझे मालूम है ,,ये सभी के लिए आसान नही पर जहाँ तक हो सके ,इस पर विचार अवश्य करिएँ ,,,,और रही बात नयी विधा सीखने की तो शायद कोई किसी को जबरदस्ती प्रेरित नही कर सकता ये लेखकों के रूचि पर निर्भर है ,,,शायद मेरी विचार से सभी सहमत न हों पर ,,मुझे यही लग रहा है |
Jul 1, 2015
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
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सधन्यवाद
Jul 2, 2015