लघुकथा की कक्षा

समूह का उद्देश्य : लघुकथा विधा और उसकी बारीकियों पर चर्चा.

समूह प्रबंधक : श्री योगराज प्रभाकर


प्रधान संपादक

लघुकथा लेखन प्रक्रिया

एक लघुकथाकार जब अपने इर्द गिर्द घटित घटनाओं के नेपथ्य में विसंगतियों या असंवेदनशीलता को अंदर तक महसूस करता है तब लघुकथा लिखने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान वह उस घटना का हर संभव कोण से विश्लेषण करता है। किन्तु यह भी सत्य है की हर एक घटना लघुकथा में ढाले जाने योग्य नहीं होती। यहाँ स्मरण रखने योग्य बात यह है कि जिस घटना के पीछे कथा-तत्व छुपा हुआ नहीं होता, उससे खबर या रिपोर्ट तो बन सकती है, लघुकथा हरगिज़ नहीं। कोई घटना जब कथानक का रूप ले ले, ऐसे में लघुकथाकार का यह परम कर्यव्य हो जाता है कि वह इसकी गहराई तक जाये और कथानक को कथ्य और तथ्य की कसौटी पर तब तक परखता रहे जब तक एक लघुकथा की साफ़ साफ़ प्रतिच्छाया स्वयं उसके सामने प्रकट न हो जाए।
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भावनाओं में बहकर तत्क्षण लिखी हुई लघुकथा एक अपक्व एवं अप्रौढ़ व्याख्यान से अधिक कुछ नहीं हो सकती। यहाँ तक कि कोई सत्य घटना पर आधारित रचना भी तब तक पूर्ण लघुकथा नहीं बन सकती, जब तक उसके पीछे के सच और तथ्यों से रचनाकार अनभिज्ञ रहता है। इसी अनभिज्ञता के कारण रचनाकार एक अपूर्ण लघुकथा लिख बैठता है, जो कभी भी चिरायु नहीं हो सकती। किसी घटना को ज्यों का त्यों लिख देना सपाट बयानी कहलाता है। एक गंभीर रचनाकार उस घटना को लघुकथा में ढालते हुए अपनी कल्पना और रचनाशीलता का पुट देता है, तब कही जाकर यह सपाट बयानी एक साहित्यिक कृति में परिवर्तित हो पाती है। 
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    Mamta

    माफ कीजिएगा अभी -अभी सदस्यों की सूची पर नजर डाली तो स्वयं को उसमें शामिल पाया। माफी चाहती हूँ!
    सादर ममता
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      Sheikh Shahzad Usmani

      लघुकथा सृजन संदर्भ में आपके आलेख व अधोलिखित टिप्पणियों को पढ़कर विधा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई है।तहे दिल से कक्षा संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी के प्रति बहुत आभार व्यक्त करता हूँ। आप सभी वरिष्ठजन के मार्गदर्शन में लघुकथा विधा समझने के नर्सरी स्तर पर रहते हुए लेखन कर्म करते समय ऐसा लगा कि यहाँ चर्चा का विषय - "मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया" भी हो तो हम वरिष्ठ लघुकथाकारों के अनुभव भी जान सकेंगे। हमें कुछ सवालों के उत्तर इस माध्यम से भी मिल सकेंगे। कुछ बिंदुओं पर रोशनी चाहूँगा :
      1- मुझे विषय और कथानक कैसे सूझा। 2- कच्चा सांचा कितने समय में कैसे तैयार किया। 3- क्या? क्यों कहना है के जवाब के बाद कैसे कहना है के उत्तर में कैसे निर्णय लिया कि कच्चे सांचे को विवरणात्मक
      या संवाद या मिली-जुली शैली में पक्का रूप देना है? 4- पक्की रचना लिखते लिखते ही पंचलाइन सूझ गई थी या पंचलाइन तय करके ही पक्की रचना लिखने बैठे? 5- यदि अंतिम पंक्ति लिखने पर भी कथा को पंचलाइन नहीं मिल पायी तो क्या किया? कितने समय बाद पंचलाइन कैसे सूझी? [सभी सवालों के जवाब वरिष्ठ सुधी लघुकथाकारों की उत्कृष्ट कृतियों के अध्ययन से ही व गुरूजन से चर्चा करके ही मिलेंगे, लेकिन हर रचना के साथ हर रचनाकार के अनुभव भिन्न हो सकते हैं] 6- पक्की रचना को फाइनल रूप कैसे दिया लघुकथा सम्मत शिल्प के साथ?
      ......ऐसे तमाम सवालों के उत्तर से भी हमें मार्गदर्शन मिलेगा, ऐसा विश्वास है। सादर
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      Sheikh Shahzad Usmani

      सादर नमस्कार। मुझे कई बार लघुकथा हेतु ऐसे कथानक सूझते हैं कि उन्हें विवरणात्मक शैली में मुझे लिखना सुविधाजनक रहता है। विवरणात्मक शैली में लघुकथा लिखते समय उसे क़िस्सागोई और रिपोर्ट बनने से रोकने हेतु किन बातों का ध्यान रखना होगा? ओबीओ गोष्ठी विषय- षड्यंत्र- के संदर्भ में? क्या उसमें एक-दो संवाद भी डाले जायें या फ्लैशबैक तकनीक का प्रयोग किया जाए। शब्द संख्या भी 300 से अधिक हो जाती है।कृपया मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा।
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