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Patiala, Punjab
India
आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर साहिब जन्मदिन की सालगिरह पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
Nov 18, 2018
आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवम शुभ कामनांयें।
Nov 18, 2019
ओ बी ओ महोत्सव अंक ११९ के लिए
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-119 विषय - "वो भी क्या दिन थे"स्वरचित - मौलिक - अप्रकाशित अतुकांत आधुनिक कविता विषय - वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे , महज १३ साल का ही तो था मैं जिन्दगी की पहली कक्षा ठीक से खड़े होने का ढंग
सीख रहा था आठवीं की परीक्षा
और शारीरिक परिवर्तन
विज्ञान की कार्यशाला
वनस्पति विज्ञान पादप
संकलन हेतु पर्वतीय प्रदेश
का भ्रमण
चेहरे पर मासूमियत
स्त्री पुरुष के अंतर
ज्ञान का कोतुहल
तिसपर संगीता जैसे
सहपाठी का सानिध्य
न जाने वो भी क्या दिन थे
सब कुछ सुहाना था
घर में मन कहाँ लगता था
माँ पापा से आँखे मिलाते
एक झिझक , जैसे कोई
अपराध करते हुए
रंगे हाँथ पकडे जाने का डर
सभी कुछ उलटा पुल्टा
लेकिन मन था के
अपनी ही बांचे जा रहा था
सुनता कहाँ था
बेर बेर उसी पगडण्डी पर
लाके पटक देता था
मुहं मांगी मुराद बन गया
तिस पर संगीता जैसे
सुभह शाम सब कुछ
जल्दी जल्दी बीत रहा था
मैं भीतर भीतर रीत रहा था
मास्टर जी ने बारह टोलियाँ
बनाई एक लड़का एक लड़की
एक टोली मेरी और संगीता की
उस दिन न जाने जो भी मांगता
भोले बाबा ने वही दे देना था
हमारी टोली को सबसे अच्छे
संकलन का सम्मान मिला
संगीता की विदुषितत्व
का परिणाम मुझे भी मिला
हम दोनों को एक दुसरे
का साथ समझ उसदिन
के एक एक पल में
सौगात स्वरूप मिली न जाने वो भी क्या दिन थे
असला में नारीत्व की
महिमा को सही से
मैंने उसी दिन जाना था
Sep 12, 2020
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Sheikh Shahzad Usmani
आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर साहिब जन्मदिन की सालगिरह पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
Nov 18, 2018
TEJ VEER SINGH
आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवम शुभ कामनांयें।
Nov 18, 2019
DR ARUN KUMAR SHASTRI
ओ बी ओ महोत्सव अंक ११९ के लिए
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-119
विषय - "वो भी क्या दिन थे"
स्वरचित - मौलिक - अप्रकाशित
अतुकांत आधुनिक कविता
विषय - वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे ,
महज १३ साल
का ही तो था मैं
जिन्दगी की पहली कक्षा
ठीक से खड़े
होने का ढंग
सीख रहा था
आठवीं की परीक्षा
और शारीरिक परिवर्तन
विज्ञान की कार्यशाला
वनस्पति विज्ञान पादप
संकलन हेतु
पर्वतीय प्रदेश
का भ्रमण
चेहरे पर मासूमियत
स्त्री पुरुष के अंतर
ज्ञान का कोतुहल
तिसपर संगीता जैसे
सहपाठी का सानिध्य
न जाने वो भी क्या दिन थे
सब कुछ सुहाना था
घर में मन कहाँ लगता था
माँ पापा से आँखे मिलाते
एक झिझक , जैसे कोई
अपराध करते हुए
रंगे हाँथ पकडे जाने का डर
सभी कुछ उलटा पुल्टा
लेकिन मन था के
अपनी ही बांचे जा रहा था
सुनता कहाँ था
बेर बेर उसी पगडण्डी पर
लाके पटक देता था
वनस्पति विज्ञान पादप
संकलन हेतु
पर्वतीय प्रदेश
का भ्रमण
मुहं मांगी मुराद बन गया
तिस पर संगीता जैसे
सहपाठी का सानिध्य
न जाने वो भी क्या दिन थे
सब कुछ सुहाना था
सुभह शाम सब कुछ
जल्दी जल्दी बीत रहा था
मैं भीतर भीतर रीत रहा था
मास्टर जी ने बारह टोलियाँ
बनाई एक लड़का एक लड़की
एक टोली मेरी और संगीता की
उस दिन न जाने जो भी मांगता
भोले बाबा ने वही दे देना था
हमारी टोली को सबसे अच्छे
संकलन का सम्मान मिला
संगीता की विदुषितत्व
का परिणाम मुझे भी मिला
हम दोनों को एक दुसरे
का साथ समझ उसदिन
के एक एक पल में
सौगात स्वरूप मिली
न जाने वो भी क्या दिन थे
सब कुछ सुहाना था
असला में नारीत्व की
महिमा को सही से
मैंने उसी दिन जाना था
Sep 12, 2020