आंचलिक साहित्य

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छत्तीसगढ के जुन्ना खेल

गिल्ली डंडा खेलबो, चल संगी दइहान ।
गोला घेरा खिच के, पादी लेबो तान ।
पादी लेबो तान, खेलबो सबो थकत ले ।
देबोे संगी दांव, फेर तो हमन सकत ले ।।।
अभी जात हन स्कूल, उड़ावा मत जी खिल्ली ।
पढ़ लिख के हम सांझ, खेलबो फेरे गिल्ली ।।

चलव सहेली खेलबो, जुर मिल फुगड़ी खेल ।
माड़ी मोड़े देख ले, होथे पावे के मेल ।।
होथे पांवे के मेल, करत आघू अउ पाछू ।
सांस भरे के खेल, काम आही ओ आघू ।।
पुरखा के ये खेल, लगय काबर ओ पहेली ।
घर पैठा रेंगान, खेलबो चलव सहेेली ।।

अटकन बटकन गीन ले, सबो पसारे हाथ ।
दही चटाका बोल के, रहिबो संगे साथ ।।
रहिबो संगे साथ, लऊहा लाटा बन के ।
कांटा सूजी छांट, काय लेबे तैं तन के ।।
कांऊ मांऊ बोल, कान धर लव रे झटकन ।
कतका सुघ्घर खेल, हवय गा अटकन बटकन ।।

नेती भवरा गूंथ के, दे ओला तैं फेक ।
घूमे लगाय रट्ट हे, आंखी गड़ाय देख ।।
आंखी गड़ाय देख, खेल जुन्ना कइसे हे ।
लकड़ी काढ़ बनाय, बिही के फर जइसे हे ।।
लगय हाथ के जादू, जेन हर तोरे सेती ।
फरिया डोरी सांट, बनाले तैं हर नेती ।।
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मौलिक अप्रकाशित