भोजपुरी साहित्य

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गजल (भोजपुरी) // -सौरभ

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रटौले रटल बा नियम का ह, मत का ?
बुझाइल कबो ना सही का, गलत का !

सियासत के सोझगर गनितओ बुझाई
गुना-भाग छोड़ीं, बताईं जुगत का ?

गुनत जा रहल बा, पटाइल उपासे-
कमाई जे हासिल, त आखिर बचत का ?

धुआँ बा, कुहा बा, रुखाइल घर-आङन
सुखाइल इनारा त ढेंकुल, जगत का ?

चकाचौंध देखी, लहालोट होखी..
मताइल अगर ना.. भला ऊ भगत का ?

करब गाल रउआ, हँसब देइ ताली                              [ गाल - बेईमानी
जबाबी मिली तब पुछाई सखत का !

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सौरभ

(मौलिक आ अप्रकाशित)

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    सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    अनन्य भाई पंकज कुमार मिश्रा जी, आपकी उत्साहवर्द्धक टिप्पणी पर समयानुसार धन्यवाद ज्ञापित न कर पाया इसका मुझे हार्दिक खेद है. मैं इधर न केवल दौरे पर था, बल्कि, वित्तीय वर्ष के समापन माह होने कारण अत्यंत व्यस्त भी हूँ. 

    लेकिन, भाई आपकी दृष्टि इस रचना पर पडी, यही इस रचना का सौभाग्य है. 

    हार्दिक धन्यवाद 

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      लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

      आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । भाषा के लिहाज से गजल को समझने में थोड़ी सी दिक्कत तो हुई पर मन प्रफुल्लित हो गया । इस स्थानीय भाषा की बेहतरीन गजल के लिए ढेरों बधाइयाँ ।

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        Aazi Tamaam

        • सादर प्रणाम आदरणीय जनाब सोरभ पांडेय जी
        • बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है
        • ऊपर से भोजपुरी भाषा का तड़का मज़ा आ गया
        • धन्यवाद