आदरणीय आज़र साहिब
आपका आदेश सर माथे पर, मैं ऐसे सब साहिबान को बाकायदा ज़ाती तौर पर गुज़ारिश करूँगा कि वो मुशायरे में शरीक हों ! लेकिन उस से भी पहले मैं आपसे इल्तेजा करता हूँ कि आप ज़हमत-ए-कलाम मंज़ूर फरमा कर हम सब को ज़रूर नवाजें ! एक गुज़ारिश और (हाथ जोड़ कर), आप बराए करम "प्रणाम" जैसे लफ्ज़ लफ्ज़ मेरे लिए इस्तेमाल न करें ! आप उम्र में मुझ से बड़े, और तजुर्बे में मुझ से बहुत ही बड़े हैं, तो कृपया मुझे आशीर्वाद का ही मुकाम दें !
आदरणीय "आज़र" साहिब,
OBO लाइव तरही मुशायरा अपने नाम के अनुसार ही लाइव होता है, Reply Box खुलते ही सभी सदस्य स्वतंत्र होते है अपनी ग़ज़ल को पोस्ट करने के लिये, मुशायरे मे शिरकत करने हेतु अपनी ग़ज़ल को किसी को भेजने की आवश्यकता नहीं है सदस्य स्वयम पोस्ट कर दे, हां यह सुविधा जरूर है कि यदि किसी कारण वश ऐसा न कर सकने की स्थिति मे एडमिन को ग़ज़ल भेजी जा सकती हैं जिसे एडमिन द्वारा गज़लकार के नाम से पोस्ट कर दिया जायेगा |
बताना चाहता हूँ कि मिसरा ए तरह मेरी ही सोच की उपज है | मुशायरे के लिए समसामयिक विषय का चुनाव करते वक्त मुझे यह मिसरा ठीक लगा| अब आप साहित्य के साथ खिलवाड़ की बात शीघ्राति शीघ्र स्पष्ट कर दें|
मैं आपकी बात से इत्तफाक रखता हूँ कि उर्दू अदबी दुनिया में तरही मुशायरे के दौरान मिसरा किसी जाने माने शायर के कलाम से ही उठाने की परम्परा रही है ! लेकिन श्री राणा प्रताप जी द्वारा दिया गया मिसरा क्योंकि बिना किसी Mala fide Intensions के सहवन ही दिया गया है तो मेरे निजी विचार में यह हर प्रकार से दोषमुक्त माना जाना चाहिए ! श्री राणा प्रताप सिंह जी एक बहुत ही प्रतिभावान युवा शायर हैं जो कि महफ़िल के अदब-ओ-आदाब से बखूबी वाकिफ हैं, मैं नहीं मान सकता कि खुद अपना रचित मिसरा देने के पीछे उनका कोई निजी स्वार्थ निहित रहा होगा !
अब रही बात परम्परा की, तो अगर कोई नवीनता किसी असूल का उल्लंघन नहीं करती तो उसको अपनाने में क्या हर्ज़ है ? क्या आज अदब की हर बानगी में नये नये प्रयोग नहीं किए जा रहे हैं ? यहाँ ओबीओ में हम खुद ऐसी नवीनता के हक में हैं ! और क्या मालूम कि कुछ अरसे के बाद श्री राणा प्रताप सिंह जी भी उस मुकाम पर पहुँच जाएँ जहाँ कि उनके कलाम से दुनिया तरही मिसरा उठाने लग जाए !
आप ने आगे फ़रमाया है कि किसी एक मिसरे में दो बार हाइफ़न प्रयोग उचित नहीं माना जाता है, मेरी अदना सी जानकारी से मुताबिक इल्म-ए-अरूज़ में कलाम के हरेक ऐब को एक ख़ास नाम से याद किया गया है ! यदि आप उस नाम के हवाले से मौजूदा तरही मिसरे में दो से ज्यादा हाइफ़न होने के ऐब का खुलासा कर सकें तो फन-ए-ग़ज़ल से तालिबिल्मों का बहुत ही भला होगा !
आपको मिसरों में कोमा(,) तो दिख गया पर उसका मकसद नहीं दिखाई दिया| जनाब अगर आप गौर से देखें तो मूलतः जो मिसरा दिया गया है वहां पर कोई भी panctuation का निशान है ही नहीं और उसके बाद जो मिसरे में कोमे का निशान है वह अरकान के बीच में स्पेस देने के लिए रखा गया है जिससे की कोई नया व्यक्ति भी अरकान को समझ सके, ठीक उसके नीचे अरकान को लिख कर बात को और भी स्पष्ट किया गया है|
मै अदब की university तो गया नहीं हूँ पर हां इतना अवश्य जानता हूँ कि महफ़िल में किससे किस तरह से पेश आना चाहिए|
आपने मेरी दरख्वास्त कबूल फरमा कर जवाब दिया, आपका दिल से मशकूर हूँ ! यह हाईफन वाली बात अभी भी मुझे परेशान कर रही है ! वजाहत के लिए मैं अज़ीम शु'अरा के चाँद आशार बतौर हवाला पेश करना चाहूँगा जहाँ दो से ज्यादा दफा हाईफन इस्तेमाल किए गए हैं :
//जनाब फ़िराक गोरखपुरी//
निगाहे-चश्मे-सियह कर रहा है शरहे-गुनाह न छेड़ ऐसे में बहसे-जवाज़ो-गै़रे-जवाज़
//जनाब दाग देहलवी साहिब
हुस्न-ए-अदा भी खूबी-ए-सीरत में चाहिए, यह बढ़ती दौलत, ऐसी ही दौलत में चाहिए।
आज़र जी नमस्ते,
मैंने ग़ज़ल की पाठशाला पर एक प्रश्न पूछा था फिर देखा की आप यहाँ उपस्थित हैं तो उस प्रश्n को यहाँ दोहरा रहा हूँ
ग़ज़ल की पाठशाला में आज़र जी का अंतिम पाठ (अंक ९) दिनांक October 29, २०१० को प्रकाशित हुआ है और उसके बाद पाठ प्रकाशित न होने पाने की कोई सूचना नहीं दी गई है
मैं ये जानना चाहता हूँ की क्या आज़र जी ने यहाँ लिखना बंद कर दिया है ?
श्रीमान venus keshari जी ने यही सवाल गज़लशाला मे भी उठाई है , यदि आप इनके सवाल का जबाब वहा ही दे तो सभी को ज्ञात होगा कि आप द्वारा अगला पाठ क्यू नहीं लगाया जा रहा है , बकौल आपका पहला अंक आपने लिखा है कि आपने एडमिन OBO के अनुरोध पर गज़लशाला शुरू कर रहे है , आपकी बातों से ऐसा लगता है कि कुछ गलतफहमियां है , यदि ऐसा है तो आपको एडमिन से कहना चाहिये, आपके कहे अनुसार मैने पूरा गज़लशाला पुनः पढ़ा किन्तु मुझे कुछ खास समझ मे नहीं आया कि आप का इशारा किधर है , OBO आप का अपना परिवार है जो कुछ कहना है खुल कर कहे | परिवार मे नोक झोक चलता रहता है , आपके अगले पाठ का इन्तजार हम सब को आज भी है , मैं आज तक यह समझ रहा था कि किसी खास व्यस्तता के कारण नया पाठ नहीं आ रहा है |
मैंने सारे पाठ ध्यान पूर्वक पढ़े कुछ जगह कुछ बात खटकी तो जरूर है मगर वो ग़ज़ल के भाव को ले कर हैं या फिर अशुद्धि को लेकर हैं अगर आप आदेश करें तो मैं इस सन्दर्भ में आपसे कुछ बात पूछूंगा
जहाँ तक बात है व्यक्तिगत आक्षेप की तो, मुझे कहीं नहीं दिखा की किसी ने गलत भावना से "किसी पर भी" कोई आरोप लगाया हो या किसी की भावना को ठेस पहुचने की कोशिश की हो
और अब यह बात "एडमिन" नवीन जी के कमेन्ट से भी पता चल रही है फिर मैं तो कल आज ही इस मंच से जुड़ा हूँ
बस आपसे निवेदन है की चीजों को सकारात्मक पहलू से लें, मैं आज मंच से नया जुडा और एक प्रश्न पूछ लिया की क्या अब नई पोस्ट नहीं लिख रहे हैं ?
और आप मुझसे कह रहे हैं जा कर "एडमिन" से पूछो मुझसे क्या पूछते हो ?
मैंने भी इस बाबत कई वरिष्ठ फनकारों से बात की है और उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है कि ग़ज़ल के विधान में इस प्रकार का कोई ऐब नहीं होता है| अपने भी जो उत्तर दिए हैं वह भी दिग्भ्रमित करने वाले है, न तो अपने इस दोष का नाम ही बताया और न ही कोई सन्दर्भ दिया| अलबत्ता मै सन्दर्भ के साथ चंद अशआर पेश कर रहा हूँ |
१. "ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों
दाग देहलवी
१. न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में कोई ग़ैर- ग़ैर होता कोई यार- यार होता
२. आती है बात बात मुझे याद बार बार कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..
मीर तकी 'मीर'
१. याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया
२. पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है
शिकायत जैसी कोई बात नहीं .. हाँ सुझाव ठीक है ....क्योंकि ओ.बी.ओ. किसी को उसके घर बुलाने नहीं गया और न ही यहाँ हाजिरी लगाना नियमतः ज़रुरी है .. अपनी मर्जी है ... जहां अपने बराबर के लोग मिलते हैं उठना बैठना अच्छा लगता है .... और वो भी जब तक मन लगे ... इससे अपनी प्रतिभा निखरती है नए आयाम अपनी अनुभूति कराते हैं | एक बात बेशक सच की ओ.बी.ओ. एक सशक्त सार्थक और हस्तक्षेप करने में सक्षम मंच बनने की ओर अग्रसर है | मेरी इस साहित्यिक "अवसर" को शुभकामनाएं !!!
कृपया जानकार शायरों का एक पैनल बना कर उसे ये अधिकार दिया जाये की वो तरही की सूचना और शुरुआत के बीच के एक निर्धारित समय के मध्य सुधार को प्राप्त ग़ज़लों को एक नज़र देख लें इससे छोटी मोटी त्रुटियाँ और " अ-गज़लें " सरेआम प्रसारित होने से बच जायेंगी और एक अनुशासन भी बनेगा | तब भी ये अनिवार्य न हो, जो अपनी गज़लें सुधार को भेजना चाहे वही भेजें और उस्ताद भी पूरी तरह से उस गज़ल को ख़ारिज करने या नकारने को स्वतंत्र हों | कम से कम मेरे लिये ये हो जाये तो अच्छा हो | कुछ बहरें ऐसी हैं जिनमे मैं लिखने से बचता हूँ इस बार की तरही -०७ भी ऐसी ही थी | मैं तो खुद अपने को हास्यास्पद पा रहा था | कई बार ऐसा लगा जैसे मेरी ओ.बी.ओ. पर प्रासंगिता ही नहीं रही | बेशक संजय जी , नवीन जी , राणा जी , बागी जी ,वेनस जी , राकेश जी ........ बड़े शायर होंगे पर क्या उनका ये फ़र्ज़ नहीं बनता की औरों को भी आगे बढ़ाएं....??????
मुझे तो शौक़ ने नहीं मजबूरियों ने ही हमेशा लिखने को मजबूर किया है गज़ल नहीं तो कविता और लेख ही सही पर लिखे -कहे -बोले बिना रह सकूं मैं वो जीव नहीं ....| हालात तकलीफ देतें हैं ... बगावत शायद मेरी खूबी भी है और विवशता भी ...|
आदरणीय अरुण जी सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत धन्यवाद , आप सदैव ही OBO परिवार की समृधि और सुधार की दिशा मे सोचते रहते है और बहुमूल्य सुधार देते है | सबसे पहले मैं बताना चाहता हूँ कि ओपन बुक्स ऑनलाइन अपने नाम के मुताबिक़ ही ओपन मंच देने का पक्षधर है | तरही मुशायरे को हम लोगो ने लाइव कार्यक्रम कि तरह चलाते है , जो वेब साईट कि दुनिया मे अकेला ऐसा कार्यक्रम है ( जितना मैं जनता हूँ ) यदि अन्य साईट कि तरह इस कार्यक्रम को OBO पर भी moderate कर दिया जायेगा तो लाइव का कोई मतलब नहीं रह जायेगा | मुशायरे कि घोषणा और प्रारंभ के बीच कमसे कम ५ दिन तैयारी का समय जरूर रहता है | इस कार्यक्रम मे जो जानकार है या जो जानना चाहते है वो त्रुटियों को बताते है या पूछते है तो इसमे क्या बुराई है , यह तो अच्छे साहित्यकारों को और अच्छा लिखने के लिये राम वाण होगी | अरुण भाई आपकी प्रासंगिता OBO पर सदैव है आपको ऐसा क्यू लगा मेरे समझ से बाहर है | और हां मैं कोई शायर नहीं , मैं तो एक नवजात विद्यार्थी हूँ जो सिख रहा है वो भी क ख ग घ , मैं जितना जनता हूँ उसी आधार पर अन्य साथियों से जानना चाहता हूँ कि जो मैं जनता हूँ वो गलत है या जो उसके इत्तर आप कह रहे है वो गलत है , यकीं मानिये इसके पीछे मेरी भावना केवल यह है कि इस वार्ता का लाभ अन्य साथी भी उठा सके |
सच बताईयेगा क्या इन चर्चाओं से ज्ञान प्राप्त नहीं होता, कुछ जानने को नहीं मिलता ?
एक और उत्सुक्ताता है आपने कहा कि "बेशक संजय जी , नवीन जी , राणा जी , बागी जी ,वेनस जी , राकेश जी ........ बड़े शायर होंगे पर क्या उनका ये फ़र्ज़ नहीं बनता की औरों को भी आगे बढ़ाएं....??????"
मैं तो सदैव नये लेखको को प्रोत्साहित करता रहता हूँ , आप देखे होंगे OBO पर मैं सभी कि रचनाओं पर टिप्पणी लिखता हूँ , केवल इसलिये कि उनका उत्साह वर्धन हो , और भी बढ़िया लिख सके"
यदि आप को लगता है कि मैं औरों को आगे नहीं बढाता तो ....कृपया कारण बताये और साथ ही उपाय भी कि कैसे बढाया जाय |
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
आपका आदेश सर माथे पर, मैं ऐसे सब साहिबान को बाकायदा ज़ाती तौर पर गुज़ारिश करूँगा कि वो मुशायरे में शरीक हों ! लेकिन उस से भी पहले मैं आपसे इल्तेजा करता हूँ कि आप ज़हमत-ए-कलाम मंज़ूर फरमा कर हम सब को ज़रूर नवाजें ! एक गुज़ारिश और (हाथ जोड़ कर), आप बराए करम "प्रणाम" जैसे लफ्ज़ लफ्ज़ मेरे लिए इस्तेमाल न करें ! आप उम्र में मुझ से बड़े, और तजुर्बे में मुझ से बहुत ही बड़े हैं, तो कृपया मुझे आशीर्वाद का ही मुकाम दें !
सादर !
Sep 29, 2010
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
Sep 29, 2010
Admin
OBO लाइव तरही मुशायरा अपने नाम के अनुसार ही लाइव होता है, Reply Box खुलते ही सभी सदस्य स्वतंत्र होते है अपनी ग़ज़ल को पोस्ट करने के लिये, मुशायरे मे शिरकत करने हेतु अपनी ग़ज़ल को किसी को भेजने की आवश्यकता नहीं है सदस्य स्वयम पोस्ट कर दे, हां यह सुविधा जरूर है कि यदि किसी कारण वश ऐसा न कर सकने की स्थिति मे एडमिन को ग़ज़ल भेजी जा सकती हैं जिसे एडमिन द्वारा गज़लकार के नाम से पोस्ट कर दिया जायेगा |
Sep 30, 2010
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
आदरणीय आज़र साहिब, सादर नमस्कार !
मैं श्री राणा प्रताप जी से दरयाफ्त करके यह जानकारी आपके सम्मुख बहुत जल्द प्रस्तुत करूंगा ! सादर !
Jan 15, 2011
Admin
आदरणीय आज़र साहिब , सादर अभिवादन,
आपने कहा कि "बहुत दुख: होता है जब इस प्रकार से साहित्य व खास तौर से जब ग़ज़ल के साथ फ़नकार खिलवाड़ करते हैं"
कृपया अपने कथ्य का खुलासा करना चाहेंगे |
धन्यवाद सहित,
एडमिन
OBO
Jan 15, 2011
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
आदरणीय आज़र साहब
प्रणाम
बताना चाहता हूँ कि मिसरा ए तरह मेरी ही सोच की उपज है | मुशायरे के लिए समसामयिक विषय का चुनाव करते वक्त मुझे यह मिसरा ठीक लगा| अब आप साहित्य के साथ खिलवाड़ की बात शीघ्राति शीघ्र स्पष्ट कर दें|
धन्यवाद|
Jan 15, 2011
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
सादर नमस्कार !
मैं आपकी बात से इत्तफाक रखता हूँ कि उर्दू अदबी दुनिया में तरही मुशायरे के दौरान मिसरा किसी जाने माने शायर के कलाम से ही उठाने की परम्परा रही है ! लेकिन श्री राणा प्रताप जी द्वारा दिया गया मिसरा क्योंकि बिना किसी Mala fide Intensions के सहवन ही दिया गया है तो मेरे निजी विचार में यह हर प्रकार से दोषमुक्त माना जाना चाहिए ! श्री राणा प्रताप सिंह जी एक बहुत ही प्रतिभावान युवा शायर हैं जो कि महफ़िल के अदब-ओ-आदाब से बखूबी वाकिफ हैं, मैं नहीं मान सकता कि खुद अपना रचित मिसरा देने के पीछे उनका कोई निजी स्वार्थ निहित रहा होगा !
अब रही बात परम्परा की, तो अगर कोई नवीनता किसी असूल का उल्लंघन नहीं करती तो उसको अपनाने में क्या हर्ज़ है ? क्या आज अदब की हर बानगी में नये नये प्रयोग नहीं किए जा रहे हैं ? यहाँ ओबीओ में हम खुद ऐसी नवीनता के हक में हैं ! और क्या मालूम कि कुछ अरसे के बाद श्री राणा प्रताप सिंह जी भी उस मुकाम पर पहुँच जाएँ जहाँ कि उनके कलाम से दुनिया तरही मिसरा उठाने लग जाए !
सादर !
Jan 17, 2011
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
परम आदरणीय आजर sahab
साष्टांग dandavat
आपको मिसरों में कोमा(,) तो दिख गया पर उसका मकसद नहीं दिखाई दिया| जनाब अगर आप गौर से देखें तो मूलतः जो मिसरा दिया गया है वहां पर कोई भी panctuation का निशान है ही नहीं और उसके बाद जो मिसरे में कोमे का निशान है वह अरकान के बीच में स्पेस देने के लिए रखा गया है जिससे की कोई नया व्यक्ति भी अरकान को समझ सके, ठीक उसके नीचे अरकान को लिख कर बात को और भी स्पष्ट किया गया है|
मै अदब की university तो गया नहीं हूँ पर हां इतना अवश्य जानता हूँ कि महफ़िल में किससे किस तरह से पेश आना चाहिए|
बहुत बहुत dhanyavaad
Jan 17, 2011
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
परम आदरणीय आजर साहब
आपको और आपकी सोच को
साष्टांग दंडवत
Jan 17, 2011
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
सादर नमस्कार !
//जनाब फ़िराक गोरखपुरी//
निगाहे-चश्मे-सियह कर रहा है शरहे-गुनाह
न छेड़ ऐसे में बहसे-जवाज़ो-गै़रे-जवाज़
हुस्न-ए-अदा भी खूबी-ए-सीरत में चाहिए,
यह बढ़ती दौलत, ऐसी ही दौलत में चाहिए।
//मिर्ज़ा असदुल्ला ग़ालिब साहिब//
शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
तमाशा-ए बयक-कफ़ बुरदन-ए-सद दिल पसंद आया
हवा-ए-सैर-ए-गुल आईना-ए-बेमिहरी-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-ब -ग़लतीदन-ए-बिस्मिल पसंद आया
रवानियाँ -ए-मौज-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल से टपकता है
कि लुतफ़-ए बे-तहाशा-रफ़तन-ए क़ातिल पसंद आया
वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां
दर्से-उन्वाने-तमाशा बा-तग़ाफ़ुल ख़ुशतर
है निगहे- रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गाँ
असरे-आब्ला से है जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ
सूरते-रिश्ता-ए-गोहर है चराग़ाँ मुझसे
निगह-ए-गर्म से इक आग टपकती है ‘असद’
है चराग़ाँ ख़स-ओ-ख़ाशाके-गुलिस्ताँ मुझसे
दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा
वो वलवला, वो जोश, वो तुग़याँ नहीं रहा
मोमिन ये लाफ़-ए-उलफ़त-ए-तक़वा है क्यों अबस
दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा
जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद-ओ-याद-ए-शराब में|
शौक़-ए-सवाब ने मुझे डाला अज़ाब में|
रहते हैं जमा कूचा-ए-जानाँ में ख़ास-ओ-आम,
आबाद एक घर है जहान-ए-ख़राब में|
//मीर तक़ी मीर साहिब //
आ जायें हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ
मोहलत बसाँ-ए-बर्क़-ओ-शरार कम बहुत है याँ
बक्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़िजल
ए चश्म-ए-जोश अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ
//अल्लामा इकबाल साहिब//
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र! नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
के हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ में
तरब आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरूद क्या के छिपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़में
तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता हो तो अज़ीज़तर है निगाह-ए-आईना-साज़ में !
क्या इन आशार को पुरऐब माना जाएगा ? बराए मेहरबानी वजाहत फरमाएं !
सादर !
योगराज प्रभाकर
Jan 17, 2011
वीनस केसरी
मैंने ग़ज़ल की पाठशाला पर एक प्रश्न पूछा था फिर देखा की आप यहाँ उपस्थित हैं तो उस प्रश्n को यहाँ दोहरा रहा हूँ
ग़ज़ल की पाठशाला में आज़र जी का अंतिम पाठ (अंक ९) दिनांक October 29, २०१० को प्रकाशित हुआ है और उसके बाद पाठ प्रकाशित न होने पाने की कोई सूचना नहीं दी गई है
मैं ये जानना चाहता हूँ की क्या आज़र जी ने यहाँ लिखना बंद कर दिया है ?
Jan 17, 2011
Admin
आदरणीय आज़र साहिब,
सादर अभिवादन ,
श्रीमान venus keshari जी ने यही सवाल गज़लशाला मे भी उठाई है , यदि आप इनके सवाल का जबाब वहा ही दे तो सभी को ज्ञात होगा कि आप द्वारा अगला पाठ क्यू नहीं लगाया जा रहा है , बकौल आपका पहला अंक आपने लिखा है कि आपने एडमिन OBO के अनुरोध पर गज़लशाला शुरू कर रहे है , आपकी बातों से ऐसा लगता है कि कुछ गलतफहमियां है , यदि ऐसा है तो आपको एडमिन से कहना चाहिये, आपके कहे अनुसार मैने पूरा गज़लशाला पुनः पढ़ा किन्तु मुझे कुछ खास समझ मे नहीं आया कि आप का इशारा किधर है , OBO आप का अपना परिवार है जो कुछ कहना है खुल कर कहे | परिवार मे नोक झोक चलता रहता है , आपके अगले पाठ का इन्तजार हम सब को आज भी है , मैं आज तक यह समझ रहा था कि किसी खास व्यस्तता के कारण नया पाठ नहीं आ रहा है |
कृपया नविन पाठ शुरू करे |
आप का अपना ही
एडमिन
Jan 17, 2011
वीनस केसरी
Jan 17, 2011
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
परम आदरणीय आज़र साहब
साष्टांग दंडवत
मैंने भी इस बाबत कई वरिष्ठ फनकारों से बात की है और उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है कि ग़ज़ल के विधान में इस प्रकार का कोई ऐब नहीं होता है| अपने भी जो उत्तर दिए हैं वह भी दिग्भ्रमित करने वाले है, न तो अपने इस दोष का नाम ही बताया और न ही कोई सन्दर्भ दिया| अलबत्ता मै सन्दर्भ के साथ चंद अशआर पेश कर रहा हूँ |
१. "ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों
दाग देहलवी
१. न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर- ग़ैर होता कोई यार- यार होता
२. आती है बात बात मुझे याद बार बार
कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..
मीर तकी 'मीर'
१. याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया
२. पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है
शुक्रिया
Jan 17, 2011
वीनस केसरी
Jan 17, 2011
वीनस केसरी
@ आज़र जी
वीनस केशरी
Jan 17, 2011
Abhinav Arun
Jan 23, 2011
Abhinav Arun
कृपया जानकार शायरों का एक पैनल बना कर उसे ये अधिकार दिया जाये की वो तरही की सूचना और शुरुआत के बीच के एक निर्धारित समय के मध्य सुधार को प्राप्त ग़ज़लों को एक नज़र देख लें इससे छोटी मोटी त्रुटियाँ और " अ-गज़लें " सरेआम प्रसारित होने से बच जायेंगी और एक अनुशासन भी बनेगा | तब भी ये अनिवार्य न हो, जो अपनी गज़लें सुधार को भेजना चाहे वही भेजें और उस्ताद भी पूरी तरह से उस गज़ल को ख़ारिज करने या नकारने को स्वतंत्र हों | कम से कम मेरे लिये ये हो जाये तो अच्छा हो | कुछ बहरें ऐसी हैं जिनमे मैं लिखने से बचता हूँ इस बार की तरही -०७ भी ऐसी ही थी | मैं तो खुद अपने को हास्यास्पद पा रहा था | कई बार ऐसा लगा जैसे मेरी ओ.बी.ओ. पर प्रासंगिता ही नहीं रही | बेशक संजय जी , नवीन जी , राणा जी , बागी जी ,वेनस जी , राकेश जी ........ बड़े शायर होंगे पर क्या उनका ये फ़र्ज़ नहीं बनता की औरों को भी आगे बढ़ाएं....??????
मुझे तो शौक़ ने नहीं मजबूरियों ने ही हमेशा लिखने को मजबूर किया है गज़ल नहीं तो कविता और लेख ही सही पर लिखे -कहे -बोले बिना रह सकूं मैं वो जीव नहीं ....| हालात तकलीफ देतें हैं ... बगावत शायद मेरी खूबी भी है और विवशता भी ...|
Jan 24, 2011
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
आदरणीय अरुण जी सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत धन्यवाद , आप सदैव ही OBO परिवार की समृधि और सुधार की दिशा मे सोचते रहते है और बहुमूल्य सुधार देते है | सबसे पहले मैं बताना चाहता हूँ कि ओपन बुक्स ऑनलाइन अपने नाम के मुताबिक़ ही ओपन मंच देने का पक्षधर है | तरही मुशायरे को हम लोगो ने लाइव कार्यक्रम कि तरह चलाते है , जो वेब साईट कि दुनिया मे अकेला ऐसा कार्यक्रम है ( जितना मैं जनता हूँ ) यदि अन्य साईट कि तरह इस कार्यक्रम को OBO पर भी moderate कर दिया जायेगा तो लाइव का कोई मतलब नहीं रह जायेगा | मुशायरे कि घोषणा और प्रारंभ के बीच कमसे कम ५ दिन तैयारी का समय जरूर रहता है | इस कार्यक्रम मे जो जानकार है या जो जानना चाहते है वो त्रुटियों को बताते है या पूछते है तो इसमे क्या बुराई है , यह तो अच्छे साहित्यकारों को और अच्छा लिखने के लिये राम वाण होगी | अरुण भाई आपकी प्रासंगिता OBO पर सदैव है आपको ऐसा क्यू लगा मेरे समझ से बाहर है | और हां मैं कोई शायर नहीं , मैं तो एक नवजात विद्यार्थी हूँ जो सिख रहा है वो भी क ख ग घ , मैं जितना जनता हूँ उसी आधार पर अन्य साथियों से जानना चाहता हूँ कि जो मैं जनता हूँ वो गलत है या जो उसके इत्तर आप कह रहे है वो गलत है , यकीं मानिये इसके पीछे मेरी भावना केवल यह है कि इस वार्ता का लाभ अन्य साथी भी उठा सके |
सच बताईयेगा क्या इन चर्चाओं से ज्ञान प्राप्त नहीं होता, कुछ जानने को नहीं मिलता ?
एक और उत्सुक्ताता है आपने कहा कि "बेशक संजय जी , नवीन जी , राणा जी , बागी जी ,वेनस जी , राकेश जी ........ बड़े शायर होंगे पर क्या उनका ये फ़र्ज़ नहीं बनता की औरों को भी आगे बढ़ाएं....??????"
मैं तो सदैव नये लेखको को प्रोत्साहित करता रहता हूँ , आप देखे होंगे OBO पर मैं सभी कि रचनाओं पर टिप्पणी लिखता हूँ , केवल इसलिये कि उनका उत्साह वर्धन हो , और भी बढ़िया लिख सके"
यदि आप को लगता है कि मैं औरों को आगे नहीं बढाता तो ....कृपया कारण बताये और साथ ही उपाय भी कि कैसे बढाया जाय |
रही बगावत कि बात तो .........
नाम के साथ जुड़ा है बागी,
बगावत मेरी पहचान है ,
मंगल पाण्डेय कि धरती पर जन्म लिया,
जो देश कि शान है ,
Jan 24, 2011
वीनस केसरी
बेशक संजय जी , नवीन जी , राणा जी , बागी जी ,वेनस जी , राकेश जी ........ बड़े शायर होंगे
मुझे अपने नाम के साथ शक है
और ध्यान दीजियेगा यहाँ स्माइली भी नहीं लगा रहा हूँ
Jan 24, 2011
वीनस केसरी
अरुण जी,
आपकी नाराजगी जाइज़ है
मैंने गणेश जी को कुछ सुझाव दिए हैं
उन्होंने कहा है वो बाकि लोगों से चर्चा करेंगे अगर उन्हें पसंद आये तो ओ.बी.ओ. परिवार जल्द ही कुछ बड़े देखेगा
क्या यह एक बड़ा बदलाव नहीं है की गलत जानकारी देने वाले (आज़र जी) अब यहाँ नहीं हैं
परसों राणा जी से बात हुई तो भी मैंने यही कहा था की इससे लोगों का भला होने की जगह नुक्सान हो रहा था
गलत जानकारी मिलने से अच्छा जानकारी न मिले या देर से मिले और सही मिले
Jan 24, 2011