aadarniy Tilak Raj Ji Kapoor sahib,aapki sabhee classes ko mein Dyanpoorvak padhata hoon,achcha lagta hai,kuchcha sikhane ko milta hi hai aapka sneh banaa rahe.aabhaar
आदरणीय श्री तिलक राज कपूर जी, सादर अभिवादन, यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करे | हम सभी उम्मीद करते है कि आपका प्यार इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा | आपका एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन
आदरणीय तिलक सर, ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रबंधन द्वारा "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) चुने जाने पर आपको बहुत बहुत शुभकामना, बधाई हो बधाई,
OBO प्रबंधन द्वारा महीने के सक्रिय सदस्य चुने जाने पर बहुत बहुत बधाई.....आशा ही नही पूर्ण विस्वास है की आपका सहयोग हमलोगों को निरंतर इसी प्रकार मिलता रहेगा.....
Aadarniy shree Tijak Raj Jee Kapoor sahib,Aapke mahine ka sakriy sadasy chune jane par hardik badhaee.iske liye OBO.priwar khud ko gaurvanit mahsoos karta hai.
गुरु (212 212 12)x2 मेँ इक गजल बनी अब इसका बहर क्या होगा ?
ऐसे ही कई गजलेँ बनी हे ।
(2122 2122 21)x2,
(2212 2212 22)x2
122 22 122 22 122 आदि ।
सिखने के क्रम मे ही लिखा । बहर नाम पूछते मेरे दोस्त । मै तो हैरान हूँ । अब कैसे यिन बहर का नाम ढूँढूँ ?
’ज़िन्दगी’ की हिन्दी में भी पाँच मात्रायें होंगी। यथा ऽ।ऽ या २१२। हिन्दी छन्द शास्त्र के अनुसार व्यंजन की आधी मात्रा होती और किसी व्यंजन का उच्चारण बिना स्वर के सम्मिलन के सम्भव नहीं है। यदि लघु वर्ण के बाद कोई संयुक्ताक्षर आता है तो संयुक्ताक्ष के पूर्व का वर्ण दीर्घ हो जाता है। अर्द्धाक्षर का लोप नहीं होता।किसी संयुक्ताक्षर की वही मात्रा होती है जो उसके मुख्य व्यंजन की होती है।
वीनस जी को एक अच्छी और ज्ञानवर्द्धक चर्चा प्रारम्भ करने के लिये धन्यवाद!
जहाँ भी एक स्वर के साथ दो से अधिक व्यंजन जुड़े हों वहाँ संयुक्ताक्षर होता है। प्र, व्य, स्थ, ल्य, क्त, न्त, आदि सभी संयुक्ताक्षर हैं। हिन्दी मे कुछ संयुक्ताक्षर वर्णमाला में भी जोड़ दिये गये हैं लेखन की सुविधा के लिये। क्+ष= क्ष, त्+र = त्र, ज् + ञ = ज्ञ। ध्यान देने योग्य है इन संयुक्ताक्षरों में पहला वर्ण स्वर रहित या हलन्त युक्त है। एक से अधिक व्यंजन भी जुड़ते हैं जैसे उ+ ज् + ज् + व + ल = उज्ज्वल यहाँ भी ’ज्ज्व’ की मात्रा एक ही होगी - २११ क्योंकि एक ही स्वर (लघु) प्रयुक्त हुआ है।
एक रुक्न देखें मफ्ऊलात 2221 जिसके अंत में लघु ही आ सकता है।
आदरणीय तिलक जी, मेरी जानकारी अनुसार फाईलातु (२२२१) रुक्न की मुफरद सालिम सूरत नहीं होती है अर्थात २२२१ २२२१ २२२१ २२२१ पर ग़ज़ल कह्मे पर यह अरूज़नुआर अमान्य अरकान है मुफरद मुजाहिफ, मुरक्कब सालिम और मुरक्कब मुजाहिफ होती है और इन सभी अरकान में से किसी का अंत लघु से नहीं होता है ऐसा कोई अरकान (बहर) नहीं होता है जो लघु से समाप्त होता हो (मैं रुक्न की बात नहीं कर रहा हूँ)
संस्कृत में यदि दो शब्द हो और पहले शब्द का अंतिम अक्षर लघु हो तथा दूसरे शब्द का पहला अक्षर संयुक्ताक्षर हो तो पहले शब्द का अंतिम लघु भी दीर्घ हो जाता हैं। जैसे -----
यह प्रेम
इस दो शब्द का मात्रा क्रम संस्कृत के हिसाब से लघु-दीर्घ-दीर्घ-लघु है। बहुतेरे श्लोकों से यह प्रमाणित की जा सकती है।
एकपदस्थ शब्द में तो यह है ही-- जैसे
सत्य इसमे स दीर्घ हुआ ( त् के कारण) और य लघु हुआ मतलब इसका मात्रा है ्- दीर्घ-लघु
भाई आशीष जी द्वारा दिया गया कथ्य छंद की मात्राओं की गिनती में उलट-पलट कर देगा, ऐसा मैं समझता हूँ. जबतक संयुक्ताक्षर शब्द न हों ऐसी गिनतियाँ नहीं हुआ करती.
इसके बावज़ूद् ऐसे श्लोक हों जिनके माध्यम से भाई आशीष जी अपनी बात स्पष्ट कर सकते हों तो भाई गणेशजी ने उचित ही कहा है कि ऐसे श्लोक उपलब्ध उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये जायँ. हमसभी समवेत लाभान्वित होंगे.
निश्चित तौर पर --- आदि शंकराचार्य कृत निर्वाण षट्कम देखें----
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश: न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा: अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
इसके सभी पंक्ति की मात्रा क्रम १२२ है जो कि बहरे मुतकारिब है। और देख सकते है की किस तरह से एक पदस्थ नही होते हुए भी कइ अलग अक्षर दीर्घ हुए है । साथ ही साथ रावण कृत शिव ताण्डव स्त्रोतम् के इस श्लोक को देखें
प्रफुल्लनीळपंकजप्रपञ्चकालिमप्रभा –
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचि – प्रबन्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमकच्छिदं भजे ।।
यहाँ दूसरी पंक्ति मे " रुचि" का "चि" दीर्घ है क्योकि उसके बाद " प्र" संयुक्ताक्षर है। पूरे शिव ताण्डव स्त्रोतम् मे अन्य उदाहरण देख सकते है। यहाँ यह बात बताना जरूरी है कि संस्कृत के अधिकाशं श्लोक वार्णिक छंद हैं इसलिये उदाहरण उसी मे से खोजे जायें जो श्लोक मात्रिक छंद के हो।
यह बात भी बताना जरुरी है कि अरविन्द आश्रम के जिस पुस्तक ( छान्दस ) के आधार पर मैने यह बात लिखी है उसमे मात्र इतनी बात लिखी है कि " संयुक्ताक्षर से पहले का अक्षर दीर्घ हो जाता है "। उस पुस्तकमे भी आगे पीछे का बात नहीं है। मतलब उच्चारण के हिसाब से भी देखा जाए और उपर के उदाहरण को भी देखा जाए तो यह पता चलता है कि " यह प्रेम" का मात्रा क्रम --- लघु-दीर्घ-दीर्घ-लघु होगा।
अब इसके आगे अन्य गुणीजनों से हमे अपेक्षा है कि वे इस बात को एक निश्चित लक्ष्य तक पहुचाँयेगे।
आदरणीय आशीष जी आपने जो श्लोक प्रेषित किये हैं उनसे ये स्पष्ट हो रहा है के ऐसा तभी किया जाता है जब दोनों शब्द एक दूसरे से जुड़े हुए हों अन्यथा ऐसा करना संभव और यथोचित भी नहीं जान पड़ता है जैसे आपने उदाहरण लिया है वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबन्धकन्धरम् आप रूचि के चि को दीर्घ इसीलिए कर पा रहे हैं क्यूंकि ये शब्द न केवल प्रबन्ध से जुड़ा हुआ है अपितु उसके साथ ही उच्चारित भी हो रहा है यदि रूचि को प्रथक पढ़ें तो इस प्रवाहमयी छंद का प्रवाह समाप्त हो जायेगा उसमे अटकाव आने लगेगा ये छंद मेरा भी प्रिय छंद है इसको जब पहले पढना प्रारंभ किया तो बहुत दिक्कत आई किन्तु जब छंद का विधान के अनुसार पढ़ा तो ये बहुत लयबद्ध और प्रवाह भरा स्तोत्र लगा
मैं वीनसभाई जी की बातों से इत्तफ़ाक रखता हूँ. इस थ्रेड पर इस विषय से सम्बन्धित यह मेरी यह आखिरी पोस्ट होगी.
बहुत अच्छा किया आशीष भाईजी जो आपने दो श्लोक प्रस्तुत किये. और अधिक दे सकते थे. निर्वाणषटकम् मेरा पसंदीदा नियमित श्लोक है तथ पंचचामर छंद का कमाल रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्र में मुखर रूप से हुआ है. जो स्वयं में अति प्रसिद्ध रचना है. मैं जिस कारण भाई आशीष जी से संस्कृत श्लोक मांगा था उसका हेतु स्पष्ट हुआ. वह यह कि संस्कृत के पद्य नियम जस के तस हिन्दी में उद्धृत नहीं होते.
हमें हिन्दी या हिन्दवी के जन्म को पहले समझना होगा. इसके विकास में आंचलिक भाषाओं का सहयोग सर्वोपरि हुआ. आंचलिक भाषाओं की शब्दावलियों के प्रकार और उनकी विशेषताएँ हिन्दी का ढांचा बनीं. संस्कृत के शब्द और उनकी मात्राएँ आंचलिकता के हिसाब से सरल हुईं. अब हिन्दी छंदों और पदों के लिये संस्कृत के तत्संबन्धी नियम लगे और आंचलिक भाषाओं का ढाँचा बना. इस कारण संयुक्ताक्षर में महती बदलाव आया. हिन्दी में दो शब्दों की या एक सीमा तक संधियाँ स्वीकार्य हुईं लेकिन चर्णों की संधियाँ नहीं चलीं जोकि संस्कृत के पद के चरणों की विशेषता हुआ करती है. जिसे आशीष भाई जी ने उदाहरण सदृश रखा है,
परम आदरणीय निकोर एवं कपूर साहेब ........दरअसल आपने मुझे अपने अनुगृहीत किया अपनी जमात में जगह देकर / आपका आशीर्वाद बना रहे , यही एक छोटी सी चाहत है/ श्रधा के साथ
परम आदरणीय निकोर एवं कपूर साहेब ........दरअसल आपने मुझे अपने अनुगृहीत किया अपनी जमात में जगह देकर / आपका आशीर्वाद बना रहे , यही एक छोटी सी चाहत है/ श्रधा के साथ
आदरणीय तिलक राज जी , नमस्कार -ये आपसे मेरे प्रथम परिचय है - सर ग़ज़ल विधा में मात्राओं का वर्गीकरण मेरी समझ में नहीं आ रहा - ग़ज़ल लिखता हूँ लेकिन मात्रा भार में पिछड़ जाता हूँ - हिन्दी में लघु और गुरु समझ में आती है लेकिन ग़ज़ल में ?? आपसे अनुरोध है की मेरी प्रेषित ग़ज़ल जो निम्न प्रकार से है उसकी मात्रा/अरकान से समझा देंगे तो आपकी कृपा होगी -
आबाद हैं तन्हाईयाँ ..तेरी यादों की महक से वो गयी न ज़बीं से .मैंने देखा बहुत बहक के कब तलक रोकें भला बेशर्मी बहते अश्कों की छुप सके न तीरगी में अक्स उनकी महक के सुर्ख आँखें कह रही हैं ....बेकरारी इंतज़ार की लो आरिज़ों पे रुक गए ..छुपे दर्द यूँ पलक के ज़िंदा हैं हम अब तलक..... आप ही के वास्ते रूह वरना जानती है ......सब रास्ते फलक के बस गया है नफ़स में ....अहसास वो आपका देखा न एक बार भी ......आपने हमें पलट के सुशील सरना मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय तिलक राज जी आप वे जानकारी मुझे भी भेजने का कष्ट करें तो बडी मेहरबानी होगी जो जानकारी आपने आदरणीय मिथिलेश जी को भेजने की बात की है! सादर!
मेरी ई मेल आई डी है
" panchal92rahul@gmail.com"
आपने कहा था!
"मिथिलेश जी
आप अपना ई-मेल आई डी मुझे भेज दें। मैं आपको एकजाई सभी बह्र और उनकी मुज़ाहिफ़ शक्लें भेज देता हूँ। "
Admin
Jan 23, 2011
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
Jan 23, 2011
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
आदरणीय तिलक राज कपूर ji
OBO परिवार में आपका स्वागत है|
Jan 23, 2011
PREETAM TIWARY(PREET)
Jan 24, 2011
Ratnesh Raman Pathak
Jan 26, 2011
nemichandpuniyachandan
Apr 15, 2011
Admin
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में
आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य"
(Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करे |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका प्यार इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
आपका
एडमिन
ओपन बुक्स ऑनलाइन
Jun 3, 2011
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
of the Month) चुने जाने पर आपको बहुत बहुत शुभकामना, बधाई हो बधाई,
Jun 3, 2011
PREETAM TIWARY(PREET)
बहुत बहुत बधाई हो....
CONGRATS TILAK SIR..........
Jun 3, 2011
Veerendra Jain
Jun 3, 2011
nemichandpuniyachandan
Jun 3, 2011
आवाज शर्मा
ऐसे ही कई गजलेँ बनी हे ।
(2122 2122 21)x2,
(2212 2212 22)x2
122 22 122 22 122 आदि ।
सिखने के क्रम मे ही लिखा । बहर नाम पूछते मेरे दोस्त । मै तो हैरान हूँ । अब कैसे यिन बहर का नाम ढूँढूँ ?
Jun 30, 2011
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
Jul 26, 2011
PREETAM TIWARY(PREET)
MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY TILAK SIR....
Jul 26, 2011
अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’
आदरणीय तिलकराज जी,
’ज़िन्दगी’ की हिन्दी में भी पाँच मात्रायें होंगी। यथा ऽ।ऽ या २१२। हिन्दी छन्द शास्त्र के अनुसार व्यंजन की आधी मात्रा होती और किसी व्यंजन का उच्चारण बिना स्वर के सम्मिलन के सम्भव नहीं है। यदि लघु वर्ण के बाद कोई संयुक्ताक्षर आता है तो संयुक्ताक्ष के पूर्व का वर्ण दीर्घ हो जाता है। अर्द्धाक्षर का लोप नहीं होता।किसी संयुक्ताक्षर की वही मात्रा होती है जो उसके मुख्य व्यंजन की होती है।
वीनस जी को एक अच्छी और ज्ञानवर्द्धक चर्चा प्रारम्भ करने के लिये धन्यवाद!
Sep 8, 2011
अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’
जहाँ भी एक स्वर के साथ दो से अधिक व्यंजन जुड़े हों वहाँ संयुक्ताक्षर होता है। प्र, व्य, स्थ, ल्य, क्त, न्त, आदि सभी संयुक्ताक्षर हैं। हिन्दी मे कुछ संयुक्ताक्षर वर्णमाला में भी जोड़ दिये गये हैं लेखन की सुविधा के लिये। क्+ष= क्ष, त्+र = त्र, ज् + ञ = ज्ञ। ध्यान देने योग्य है इन संयुक्ताक्षरों में पहला वर्ण स्वर रहित या हलन्त युक्त है। एक से अधिक व्यंजन भी जुड़ते हैं जैसे उ+ ज् + ज् + व + ल = उज्ज्वल यहाँ भी ’ज्ज्व’ की मात्रा एक ही होगी - २११ क्योंकि एक ही स्वर (लघु) प्रयुक्त हुआ है।
Sep 8, 2011
SANDEEP KUMAR PATEL
saadar pranaam sir ji wandan hai aapka
May 30, 2012
SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR
आदरणीय तिलक राज जी ...जन्म दिन की हार्दिक बधाई ..प्रभु सब मंगल करें आप उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर बढ़ें सूर्य से दमकें और इस समाज को रोशन करें
Jul 26, 2012
वीनस केसरी
एक रुक्न देखें मफ्ऊलात 2221 जिसके अंत में लघु ही आ सकता है।
आदरणीय तिलक जी,
मेरी जानकारी अनुसार फाईलातु (२२२१) रुक्न की मुफरद सालिम सूरत नहीं होती है
अर्थात २२२१ २२२१ २२२१ २२२१ पर ग़ज़ल कह्मे पर यह अरूज़नुआर अमान्य अरकान है
मुफरद मुजाहिफ, मुरक्कब सालिम और मुरक्कब मुजाहिफ होती है और इन सभी अरकान में से किसी का अंत लघु से नहीं होता है
ऐसा कोई अरकान (बहर) नहीं होता है जो लघु से समाप्त होता हो (मैं रुक्न की बात नहीं कर रहा हूँ)
सादर
Oct 1, 2012
लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
तिलक से स्वागत हो राज गर मिल गया
मधु से झूमता दोस्त जैसे गल हार मिल गया
Oct 1, 2012
ASHISH ANCHINHAR
संस्कृत में यदि दो शब्द हो और पहले शब्द का अंतिम अक्षर लघु हो तथा दूसरे शब्द का पहला अक्षर संयुक्ताक्षर हो तो पहले शब्द का अंतिम लघु भी दीर्घ हो जाता हैं। जैसे -----
यह प्रेम
इस दो शब्द का मात्रा क्रम संस्कृत के हिसाब से लघु-दीर्घ-दीर्घ-लघु है। बहुतेरे श्लोकों से यह प्रमाणित की जा सकती है।
एकपदस्थ शब्द में तो यह है ही-- जैसे
सत्य इसमे स दीर्घ हुआ ( त् के कारण) और य लघु हुआ मतलब इसका मात्रा है ्- दीर्घ-लघु
Oct 9, 2012
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
भाई आशीष जी द्वारा दिया गया कथ्य छंद की मात्राओं की गिनती में उलट-पलट कर देगा, ऐसा मैं समझता हूँ. जबतक संयुक्ताक्षर शब्द न हों ऐसी गिनतियाँ नहीं हुआ करती.
इसके बावज़ूद् ऐसे श्लोक हों जिनके माध्यम से भाई आशीष जी अपनी बात स्पष्ट कर सकते हों तो भाई गणेशजी ने उचित ही कहा है कि ऐसे श्लोक उपलब्ध उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये जायँ. हमसभी समवेत लाभान्वित होंगे.
Oct 9, 2012
ASHISH ANCHINHAR
निश्चित तौर पर --- आदि शंकराचार्य कृत निर्वाण षट्कम देखें----
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
इसके सभी पंक्ति की मात्रा क्रम १२२ है जो कि बहरे मुतकारिब है। और देख सकते है की किस तरह से एक पदस्थ नही होते हुए भी कइ अलग अक्षर दीर्घ हुए है । साथ ही साथ रावण कृत शिव ताण्डव स्त्रोतम् के इस श्लोक को देखें
प्रफुल्लनीळपंकजप्रपञ्चकालिमप्रभा –
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचि – प्रबन्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमकच्छिदं भजे ।।
यहाँ दूसरी पंक्ति मे " रुचि" का "चि" दीर्घ है क्योकि उसके बाद " प्र" संयुक्ताक्षर है। पूरे शिव ताण्डव स्त्रोतम् मे अन्य उदाहरण देख सकते है। यहाँ यह बात बताना जरूरी है कि संस्कृत के अधिकाशं श्लोक वार्णिक छंद हैं इसलिये उदाहरण उसी मे से खोजे जायें जो श्लोक मात्रिक छंद के हो।
यह बात भी बताना जरुरी है कि अरविन्द आश्रम के जिस पुस्तक ( छान्दस ) के आधार पर मैने यह बात लिखी है उसमे मात्र इतनी बात लिखी है कि " संयुक्ताक्षर से पहले का अक्षर दीर्घ हो जाता है "। उस पुस्तकमे भी आगे पीछे का बात नहीं है। मतलब उच्चारण के हिसाब से भी देखा जाए और उपर के उदाहरण को भी देखा जाए तो यह पता चलता है कि " यह प्रेम" का मात्रा क्रम --- लघु-दीर्घ-दीर्घ-लघु होगा।
अब इसके आगे अन्य गुणीजनों से हमे अपेक्षा है कि वे इस बात को एक निश्चित लक्ष्य तक पहुचाँयेगे।
Oct 10, 2012
SANDEEP KUMAR PATEL
आदरणीय आशीष जी आपने जो श्लोक प्रेषित किये हैं उनसे ये स्पष्ट हो रहा है के ऐसा तभी किया जाता है जब दोनों शब्द एक दूसरे से जुड़े हुए हों अन्यथा ऐसा करना संभव और यथोचित भी नहीं जान पड़ता है
जैसे आपने उदाहरण लिया है
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबन्धकन्धरम्
आप रूचि के चि को दीर्घ इसीलिए कर पा रहे हैं क्यूंकि ये शब्द न केवल प्रबन्ध से जुड़ा हुआ है
अपितु उसके साथ ही उच्चारित भी हो रहा है
यदि रूचि को प्रथक पढ़ें तो इस प्रवाहमयी छंद का प्रवाह समाप्त हो जायेगा
उसमे अटकाव आने लगेगा
ये छंद मेरा भी प्रिय छंद है
इसको जब पहले पढना प्रारंभ किया तो बहुत दिक्कत आई
किन्तु जब छंद का विधान के अनुसार पढ़ा तो ये बहुत लयबद्ध और प्रवाह भरा स्तोत्र लगा
Oct 10, 2012
वीनस केसरी
ashish ji se nivedan hai ki is charcha ko tilak ji ki wall par n karen nahi to any log bhvishy men iska fatda nahi utha sakenge
nivedan hai ki hindi chhnad samooh men is chrcha ko naye sire se shuru karen
Oct 10, 2012
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
मैं वीनसभाई जी की बातों से इत्तफ़ाक रखता हूँ. इस थ्रेड पर इस विषय से सम्बन्धित यह मेरी यह आखिरी पोस्ट होगी.
बहुत अच्छा किया आशीष भाईजी जो आपने दो श्लोक प्रस्तुत किये. और अधिक दे सकते थे. निर्वाणषटकम् मेरा पसंदीदा नियमित श्लोक है तथ पंचचामर छंद का कमाल रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्र में मुखर रूप से हुआ है. जो स्वयं में अति प्रसिद्ध रचना है. मैं जिस कारण भाई आशीष जी से संस्कृत श्लोक मांगा था उसका हेतु स्पष्ट हुआ. वह यह कि संस्कृत के पद्य नियम जस के तस हिन्दी में उद्धृत नहीं होते.
हमें हिन्दी या हिन्दवी के जन्म को पहले समझना होगा. इसके विकास में आंचलिक भाषाओं का सहयोग सर्वोपरि हुआ. आंचलिक भाषाओं की शब्दावलियों के प्रकार और उनकी विशेषताएँ हिन्दी का ढांचा बनीं. संस्कृत के शब्द और उनकी मात्राएँ आंचलिकता के हिसाब से सरल हुईं. अब हिन्दी छंदों और पदों के लिये संस्कृत के तत्संबन्धी नियम लगे और आंचलिक भाषाओं का ढाँचा बना.
इस कारण संयुक्ताक्षर में महती बदलाव आया. हिन्दी में दो शब्दों की या एक सीमा तक संधियाँ स्वीकार्य हुईं लेकिन चर्णों की संधियाँ नहीं चलीं जोकि संस्कृत के पद के चरणों की विशेषता हुआ करती है. जिसे आशीष भाई जी ने उदाहरण सदृश रखा है,
हार्दिक धन्यवाद
Oct 10, 2012
Dr Babban Jee
परम आदरणीय निकोर एवं कपूर साहेब ........दरअसल आपने मुझे अपने अनुगृहीत किया अपनी जमात में जगह देकर / आपका आशीर्वाद बना रहे , यही एक छोटी सी चाहत है/ श्रधा के साथ
Jun 29, 2013
Dr Babban Jee
परम आदरणीय निकोर एवं कपूर साहेब ........दरअसल आपने मुझे अपने अनुगृहीत किया अपनी जमात में जगह देकर / आपका आशीर्वाद बना रहे , यही एक छोटी सी चाहत है/ श्रधा के साथ
Jun 29, 2013
लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाए | प्रभु आपको नए आयाम स्थापित करने दिनोदिन प्रगति का
मार्ग प्रशस्त करने में सक्षमता प्रदान करे |
Jul 26, 2013
Abhinav Arun
हार्दिक स्वागत और सादर प्रणाम आदरणीय ! स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त हो यही कामना है !!
Oct 7, 2013
Sushil Sarna
आदरणीय तिलक राज जी , नमस्कार -ये आपसे मेरे प्रथम परिचय है - सर ग़ज़ल विधा में मात्राओं का वर्गीकरण मेरी समझ में नहीं आ रहा - ग़ज़ल लिखता हूँ लेकिन मात्रा भार में पिछड़ जाता हूँ - हिन्दी में लघु और गुरु समझ में आती है लेकिन ग़ज़ल में ?? आपसे अनुरोध है की मेरी प्रेषित ग़ज़ल जो निम्न प्रकार से है उसकी मात्रा/अरकान से समझा देंगे तो आपकी कृपा होगी -
आबाद हैं तन्हाईयाँ ..तेरी यादों की महक से
वो गयी न ज़बीं से .मैंने देखा बहुत बहक के
कब तलक रोकें भला बेशर्मी बहते अश्कों की
छुप सके न तीरगी में अक्स उनकी महक के
सुर्ख आँखें कह रही हैं ....बेकरारी इंतज़ार की
लो आरिज़ों पे रुक गए ..छुपे दर्द यूँ पलक के
ज़िंदा हैं हम अब तलक..... आप ही के वास्ते
रूह वरना जानती है ......सब रास्ते फलक के
बस गया है नफ़स में ....अहसास वो आपका
देखा न एक बार भी ......आपने हमें पलट के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Apr 24, 2014
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
Jul 26, 2014
Rahul Dangi Panchal
मेरी ई मेल आई डी है
" panchal92rahul@gmail.com"
आपने कहा था!
"मिथिलेश जी
आप अपना ई-मेल आई डी मुझे भेज दें। मैं आपको एकजाई सभी बह्र और उनकी मुज़ाहिफ़ शक्लें भेज देता हूँ। "
Jan 11, 2015