हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल टूट गया है- मेरा था, आना न कोई समझाने को, नुक़सान में अपने ख़ुश हूँ मैं, क्या और किसी का जाता हैसंतोष सहज ही मिल जाए, तो कद्र नहीं होती इसकी, संतोष की क़ीमत वो जाने, जो चैन गँवा कर पाता हैआज़ाद परिंदे…
.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के रस्ते पर चलना है तेरी मर्ज़ी; लेकिन सुन इस रस्ते को श्राप मिला है राही पगला जाएगा. . उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो तो ज़ख़्म हमारे सीते सीते दर्ज़ी पगला जाएगा. . उस को समुन्दर जैसी छोटी…
दोहा पंचक. . . . . अपनत्वअपनों से मिलता नहीं, अब अपनों सा प्यार ।बदल गया है आजकल, आपस का व्यवहार ।।अपने छूटे द्वेष में, कल्पित है व्यवहार ।तनहा जीवन ढूँढता, अपनों का संसार ।।क्षरण हुआ विश्वास का, बिखर गए संबंध ।कहीं शून्य में खो गई, अपनेपन की गंध ।।तोड़ सको तो तोड़ दो, नफरत की दीवार ।इसके पीछे…
दोहा पंचक. . . . . नया जमानाअपने- अपने ढंग से, अब जीते हैं लोग ।नया जमाना मानता, जीवन को अब भोग ।। मुक्त आचरण ने दिया, जीवन को वो रूप ।जाने कैसे ढल गई, संस्कारों की धूप ।।मर्यादा ओझल हुई, सिमट गए परिधान ।नया जमाना मानता, बेशर्मी को शान ।।सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।नयी सभ्यता ने दिया, खूब…
बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 1212 1122 1212 112/22 किसे जगा के बताएं उदास हैं कितने सितारे,चाँद, हवाएं उदास हैं कितनेन कोई आह लबों पे न ही सदा कोई ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितनेसुदूर सरहदों पे इक ग़ज़ल सिसकती है ख़ुशी के गीत न गाएं, उदास हैं कितने क़ज़ा…
दोहा दशम -. . . शाश्वत सत्यबंजारे सी जिंदगी, ढूँढे अपना गाँव । मरघट में जाकर रुकें , उसके चलते पाँव ।।किसने जाना आज तक, विधना रचित विधान । उसका जीवन पृष्ठ है , आदि संग अवसान ।।जाने कितने छोड़ कर, मोड़ मिला वो अंत । जहाँ मोक्ष का ध्यान कर , देह त्यागते संत ।।मरघट का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।…
आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे प्यार में तर होने दे मुझ को माह-ए-जुलाई जैसा. . जोबन आया है, फिसलोगे ये रस्ता है काई जैसा. . साथ हैं हम बस कहने भर को दूध हूँ मैं वो मलाई जैसा. . जाते जाते उस का बोसा जुर्म के बाद सफ़ाई जैसा. .…
122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते तमाशे की ख़ातिरन ख़ुद आतिशों के ये बोहरान लेते*ये घर टूटकर क्यूँ बिखरते हमारेजो शोरिश-पसंदों को पहचान लेते*फ़ना हो न जाती ये अज़्मत हमारीजो बाँहों के साँपों को भी जान लेते*न होता ये मिसरा यूँ ही…
दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों हालात ।।गले लगाकर मौन को, क्यों बैठे चुपचाप ।आखिर किसकी याद में, अश्क बहाऐं आप ।।बहुत मचा है आपकी. खामोशी का शोर ।भीगे किसकी याद से, दो आँखों के कोर ।।मन मचला जिसके लिए, कब समझा वह पीर ।बह निकला चुपचाप…
1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई देमुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना हैनज़ारा कोई दिखा दे ये शब तो वक्त कटेइसी के साथ सहर होने तक ठहरना हैन जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरेकोई ये काश बता दे कहाँ उतरना हैये…