२१२२ २१२२ २१२२ औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा, फैलता जो जा रहा हैरोशनी का अर्थ भी समझा रहा है चढ़ चुका है इक शिकारी घोसले तकक्या परिंदों को समझ कुछ आ रहा है जो दिया की बोर्ड से आदेश तुमने मानिटर से फल तुम्हें मिलता रहा है पूंछ खींची आपने बकरा…
दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार ।।बिना स्वार्थ के बाँटता, शिक्षक अपना ज्ञान । गढ़े ज्ञान से वह सदा, एक सभ्य इंसान ।।गुरुवर अपने ज्ञान से , करते अमर प्रकाश । राह दिखाते सत्य की, करते तम का नाश ।।शिक्षक करता ज्ञान से , शिष्यों का…
२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१। * जब सच कहे तो काँप उठे झूठ का नगर हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२। * सत्ता के साथ बैठ के लिखते हैं फ़ैसले, जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३। * ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,…
२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी जब पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं बात यूँ अनकही भी निभानी पड़ी।२। * दे गये अश्क सीलन हमें इस तरह याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३। * बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर एक दीवार घर की गिरानी पड़ी।४। * रख दिया बाँधकर…
नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता नहीं,कभी नजर का प्यार । उठी नजर इंकार तो, झुकी नजर इकरार ।। नजरें समझें जो हुए, नजरों से संवाद । बिन बोले ही बोलते , नजरों के उन्माद ।। नजरों को झूठी लगे, नजरों की मनुहार । कामुकता से है भरा, नजरों का संसार…
२१२२ १२१२ २२/११२तमतमा कर बकी हुई गालीकापुरुष है, जता रही गाली भूल कर माँ-बहन व रिश्तों को कोई देता है बेतुकी गाली कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा खीझ उसने उछाल दी गाली ढंग-व्यवहार के बदलने से हो गयी विष बुझी वही गाली कब मुलायम लगी कठिन कब ये सोचना कब दुलारती गाली कौन कहिए यहाँ जमाने में अदबदा…
भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में दौड़ लगाथकी हुई-सीधीरे-धीरे कदम बढ़ाती आ जाती है बिना आहट किएयह बूढ़ीभादों की बारिश।मौलिक एवं अप्रकाशित
चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२ १२२२ १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके समझो, शज़र से शिखर पर जो मिला तनहा मिला हैमरासिम हो अहम, तो बच शिखर से रसोई में मिला वो स्वाद आख़िरगुमा था जो किचन में उम्र भर से तू बाहर बन सँवर के आये जितनामैं भीतर झाँक सकता हूँ , नज़र से छिपी…
कुंडलिया. . .चमकी चाँदी केश में, कहे उम्र का खेल । स्याह केश लौटें नहीं, खूब लगाओ तेल । खूब लगाओ तेल , वक्त कब लौटे बीता । भला उम्र की दौड़ , कौन है आखिर जीता । चौंकी बढ़ती उम्र , जरा जो बिजली दमकी । व्यग्र करें वो केश , जहाँ पर चाँदी चमकी ।सुशील सरना / 22-8-25मौलिक एवं अप्रकाशित
२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर जावेंगे क्याआप आ'ला हैं तो हमको हक़ हमारा दीजियेआपके रहम-ओ-करम पे जीस्त जी पावेंगे क्याइल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँडिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्याआप अपने दर्द की बुनियाद भी तो…