दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगारदृगजल से लोचन भरे, व्यथित हृदय उद्गार ।बाट जोहते दिन कटा, रैन लगे अंगार ।।तन में धड़कन प्रेम की, नैनन बरसे नीर ।बैरी मन को दे गया, अनबोली वह पीर ।।जग क्या जाने प्रेम के, कितने गहरे घाव ।अंतस की हर पीर को, जीवित करते स्राव ।।विरही मन में मीत की, हरदम आती याद ।हर करवट पर…
सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।*वह रिश्ते ही सच कहूँ, पाते लम्बी आयुजहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।*तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोरयह टूटा तो हो गया, हर रिश्ता कमजोर।।*करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का…
दोहा पंचक. . . . . होलीअलहड़ यौवन रंग में, ऐसा डूबा आज ।मनचलों की टोलियाँ, खूब करें आवाज ।।हमजोली के संग में, खेले सजनी रंग ।चुपके-चुपके चल रहा, यौवन का हुड़दंग ।।पिचकारी की धार से, ऐसे बरसे रंग ।जीजा की गुस्ताखियाँ, देख हुए सब दंग ।।कंचन काया का किया, पति ने ऐसा हाल ।अंग- अंग रंग में ढला, यौवन लगे…
दोहा सप्तक. . . . . रिश्तेतार- तार रिश्ते हुए, मैला हुआ अबीर ।प्रेम शब्द को ढूँढता, दर -दर एक फकीर ।1।सपने टूटें आस के , खंडित हो विश्वास ।मुरझाते रिश्ते वहाँ, जहाँ स्वार्थ का वास ।2।देख रहा संसार में, अकस्मात अवसान ।फिर भी बन्दा जोड़ता, विपुल व्यर्थ सामान ।3।ऐसे टूटें आजकल, रिश्ते जैसे काँच ।पहले…
दोहा पंचक. . . . . उमरबहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।यादें बीती उम्र की,…
कुंडलिया. . . .जीना है तो सीख ले ,विष पीने का ढंग ।बड़े कसैले प्रीति के,अब लगते हैं रंग ।।अब लगते हैं रंग , जगत् में छलिया सारे ।पल - पल बदलें रूप, स्वयं का साँझ सकारे ।।बड़ा कठिन है सोम, भरोसे का यों पीना ।विष को जीवन मान , पड़ेगा यों ही जीना ।।सुशील सरना / 27-2-25मौलिक…
ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब चाहो तब प्यार से, खोल सके तारीख।१।*मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोरइससे केवल टूटती, अपनेपन की डोर।२।*दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नामलेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।*छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठसज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।*रिश्तो…
दोहा सप्तक----------------चिड़िया सोने से मढ़ी, कहता सकल जहान।होड़ मची थी लूट लो, फिर भी रहा महान।1। कृष्ण पक्ष की दशम तिथि, फाल्गुन पावन मास।दयानंद अवतार से, अंधकार का नास।2। टंकारा गुजरात में, जन्में शंकर मूल।दयानंद बन बांटते, आर्य समाज उसूल।3।जोत जगाकर वेद की, दिया विश्व को ज्ञान।त्याग योग…
दोहा पंचक. . . . नवयुगप्रीति दुर्ग में वासना, फैलाती दुर्गन्ध ।चूनर उतरी लाज की, बंध हुए निर्बंध ।।पानी सूखा आँख का, न्यून हुए परिधान । बेशर्मी हावी हुई, भूले देना मान ।।सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।पश्चिम की यह सभ्यता, लील रही संस्कार ।।पश्चिम के परिधान का, फैला ऐसा रोग ।नवयुग ने बस प्यार…
दोहा सप्तक. . . . . . अभिसारपलक झपकते हो गया, निष्ठुर मौन प्रभात ।करनी थी उनसे अभी, पागल दिल की बात ।।विभावरी ढलने लगी, बढ़े मिलन के ज्वार ।मौन चाँद तकने लगा, लाज भरे अभिसार ।।लगा लीलने मौन को, दो साँसों का शोर ।रही तिमिर में रेंगती, हौले-हौले भोर ।।अद्भुत होता प्यार का, अनबोला संवाद ।अभिसारों में…