"कुंडलिया छंद
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आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर।
स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥
जलचर करते शोर, राग मल्हार सुनाते।
छाते रंग बिरंग, लिए सब आते जाते॥
बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के…"
"कुंडलिया छंद
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हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार।
यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार।
करती वर्षा पार, चमकते गिरकर ओले।
झिल्ली की झंकार, कान के पर्दे खोले।
सजी आज 'कल्याण', घटा…"
धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।परिवर्तन संदेश दे…See More
वहाँ मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे १२२ १२२ १२२ १२२ बढी भी तो थी ये उमर धीरे धीरेतो फिर क्यूँ न आये हुनर धीरे धीरेचमत्कार पर तुम भरोसा करो मतबदलती है दुनिया मगर धीरे धीरेहक़ीक़त…See More