परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का मिसरा जनाब 'अहमद फ़राज़' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |मैंने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला'फ़ाइलातुन…See More
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा):
"तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार समझाया कि व्यवहारिक बनो, बी प्रैक्टिकल! ' 'डाऊन टू अर्थ' - बने रहने से कुछ न…"
दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे डोर ।।अलिकुल की गुंजार से, सुमन हुए भयभीत ।गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।आशिक भौंरे दिलजले,…See More