तमन्नाओं को फिर रोका गया है
बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है.
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किसी का खेल है सदियों पुराना
किसी के वास्ते मंज़र नया है.
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यही मौक़ा है प्यारे पार कर ले
ये दरिया बहते बहते थक चुका है.
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यही हासिल हुआ है इक सफ़र से
हमारे पाँव में जो आबला है.
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कभी लगता है अपना बाप मुझ को
ये दिल इतना ज़ियादा टोकता है.
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नहीं है अब वो ताक़त इस बदन में
अगरचे खून अब भी खौलता है.
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हम अपनी आँखों से ख़ुद देख आए
वहाँ बस तीरगी का सिलसिला है.
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बहुत सी लडकियाँ मरती हैं उस पर
वो लड़का, हाँ वही जो साँवला है.
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ग़ज़ल में “नूर”! वो सब तू सुना दे
तेरे जीवन में जो कुछ अनकहा है.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
जनाब निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, हरिक शे'र रवानी में है, शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
मगर... मतले के दोनों मिसरों में ऐब-ए-तनाफ़ुर खटक रहा है। सादर।
Oct 14, 2021
Samar kabeer
//मतले के दोनों मिसरों में ऐब-ए-तनाफ़ुर खटक रहा है//
निलेश जी तनाफ़ुर और तक़ाबुल-ए-रदीफ़ को नहीं मानते:-))))
Oct 14, 2021
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,
फिर रोका गया में तानाफुर इसलिए नहीं माना जाएगा क्यूँ कि यह ज़बान में ऐसे ही बोला जाता है . कभी इसे रोका फिर गया है कहा ही नहीं जा सकता..से समझौता हुआ है में से की अंतिम ध्वनी ए है अत: तनाफुर है ही नहीं..
इस स्पष्टीकरण से बढ़कर बात यह है कि तानाफुर अथवा तकाबुल ए रदीफ़ का मामला क्रिकेट के LBW रिव्यु की तरह है.. बॉल ऑफ़ के बाहर पिच हो, इम्पैक्ट स्टाम्प की लाइन में हो और विकेट हिट हो भी रहे हों तो भी अंपायर कॉल मैटर करता है..
सादर
Oct 15, 2021
Nilesh Shevgaonkar
आ. समर सर,
तानाफुर में जब पढने में दिक्कत हो तब दोष जायज़ है... फिर रोक दिया गया.. में ज़बान परमिट करती है कि दो र साथ आएँगे.. अत: यह दोष नहीं है.
सादर
Oct 15, 2021
Samar kabeer
//तानाफुर में जब पढने में दिक्कत हो तब दोष जायज़ है//
भाई, मैं तो जानता हूँ :-)))
Oct 15, 2021
Samar kabeer
जनाब निलेश `नूर` साहिब आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ पर एक अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली इसके लिये आपका शुक्रीय: , दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ I
तमन्नाओं को फिर रोका गया है
बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है.---मतला कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे , `फिर रोका गया है `--यानी पहले भी ऐसा हो चूका है I
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किसी का खेल है सदियों पुराना
किसी के वास्ते मंज़र नया है.--अच्छा शे `र हुआ I
.
यही मौक़ा है प्यारे पार कर ले
ये दरिया बहते बहते थक चुका है.--इस शे`र पर ख़ास दाद हाज़िर है I
.
यही हासिल हुआ है इक सफ़र से
हमारे पाँव में जो आबला है.--इस शे`र के ऊला में `इक` शब्द मुझे भर्ती का लगा , ये मेरा ख़याल है ज़रूरी नहीं आप मुत्तफ़िक़ हों I
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कभी लगता है अपना बाप मुझ को
ये दिल इतना ज़ियादा टोकता है.--वाह क्या बात है ,बहुत ही उम्द: शे`र I
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नहीं है अब वो ताक़त इस बदन में
अगरचे खून अब भी खौलता है.-- ये शे`र कई लोगों का सच्चा तर्जुमान है , बहुत ख़ूब I
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हम अपनी आँखों से ख़ुद देख आए
वहाँ बस तीरगी का सिलसिला है.---ऊला में तनाफ़ुर:-)))--`ख़ुद अपनी आँखों से हम देख आए `
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बहुत सी लडकियाँ मरती हैं उस पर
वो लड़का, हाँ वही जो साँवला है.-- अच्छा है I
.
ग़ज़ल में “नूर”! वो सब तू सुना दे
तेरे जीवन में जो कुछ अनकहा है.-- ब्बहुत ख़ूब I
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Oct 15, 2021
Chetan Prakash
आदाब, मैं आदरणीय समर कबीर साहब से सहमत हूँ, आपकी ग़ज़ल की सम्प्रेषणीयता वास्तव में अद्भुत है! बाकी कहना होगा, अन्तिम रूप से काव्य भाव की ही साधना है! अत: 'अति सवर्त्रवर्जयेत ' के सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार बताए गए, विद्वत जन, क्षमा करें, सही नहीं लगते! हाँ, इक' का विकल्प 'इस' हो सकता है!
Oct 15, 2021
Nilesh Shevgaonkar
आ. समर सर,
आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार .. आपकी टिपण्णी पर मेरा बिन्दुवार स्पष्टीकरण निम्न है ..
//मतला कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे , `फिर रोका गया है `--यानी पहले भी ऐसा हो चूका है I //
आज फिर दिन ने इक तमन्ना की
आज फिर दिल को हम ने समझाया ..
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//इस शे`र के ऊला में `इक` शब्द मुझे भर्ती का लगा , ये मेरा ख़याल है ज़रूरी नहीं आप मुत्तफ़िक़ हों I //
असल में मुझे यह पूरा शेर ही भर्ती का लग रहा है :) :)
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//`ख़ुद अपनी आँखों से हम देख आए `//
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बदलाव सधन्यवाद स्वीकार्य .
ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी का पुन: आभार
Oct 16, 2021
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश सर,
ग़ज़ल आपको पसंद आई तो रचनाकर्म सार्थक हुआ ..
सादर
Oct 16, 2021
नाथ सोनांचली
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। पढ़कर हम जैसे सीखने वालों को बहुत कुछ मिला। आपको बहुत बहुत बधाई
Oct 17, 2021
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. सुरेन्द्रनाथ भाई
Oct 17, 2021
बृजेश कुमार 'ब्रज'
एक अलग ही अंदाज की ग़ज़ल पढ़ने को मिली आदरणीय नीलेश जी..और उसपे हुई चर्चा बड़ी महत्वपूर्ण है।
Oct 17, 2021
सालिक गणवीर
भाई Nilesh Shevgaonkar जी
सादर प्रणाम
बहुत दिनों बाद पटल पर आपकी ग़ज़ल पढ़ कर मज़ा आ गया। आपकी शैली मुझे बहुत भाती है. ग़ज़ल पर गुणीजनों की टिप्पणियाँ पढ़ते हुए ही नई जानकारियां भी मिल गई। सलामत रहें।
Oct 24, 2021
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गज हुई है । हार्दिक बधाई।
Oct 27, 2021
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. बृजेश जी
Oct 27, 2021
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. सालिक जी
Oct 27, 2021
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी
Oct 27, 2021
Anjuman Mansury 'Arzoo'
आदरणीय नीलेश नूर जी आदाब, बहुत शानदार ग़ज़ल की दिली मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएँ, आदरणीय चेतना प्रसाद जी की प्रतिक्रिया से सहमत
Nov 3, 2021