अर्पणा शर्मा : "गोलगप्पा"/हास्य कविता

रसना लपलपाये देख गोलगप्पा, चलो हो जाये कुछ धौल धप्पा, धनिया, पुदिना, कैरी की चटनी, और जोरदार इमली का खट्टा, है मिलाया इसमें गुड़ का मीठा, हींग और जीरे का लगाया है तड़का, हरदिल अजीज, लाजवाब शै है ये गोलगप्पा , भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े, ना होता कोई हक्का-बक्का, मुँह में घुलाया, फिर जीभ से, दिया अंदर धक्का, गले में यह जा अटका, साँस आधी ऊपर आधी नीचे, बड़ी मुश्किल से गटका, पर तब भी मन न माना, जल्दी से एक और लपका, एक 'एकस्ट्रा' देना भैया, पहले वाला टूटा कबका, अरे आओ तुम भी खालो, मैंने 'टोकन' ले लिया सबका, हरदिल अजीज, लाजवाब शै है ये गोलगप्पा ...!! मौलिक एवं अप्रकाशित
  • सतविन्द्र कुमार राणा

    हा हा, सुन्दर महिमा मण्डन!
  • Arpana Sharma

    आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी - "गोलगप्पा" पसंद करने के लिए बहुत आभार ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    अरे वाह ! गोलगप्पा के तो दिन बहुर गये ! वैसे शरद ऋतु आ ही गयी है. और यही मौसम है गोलगप्पे का ! इस गोलगप्पे को पानी-पुरी, पानी-बताशे भी कहते हैं और मेरे इलाहाबाद में इसे फुलकी कहते हैं. मैं भी, आदरणीया, गोलगप्पा का रसिया हूँ. 

    हींग और जीरे का लगाया है तड़का,
    हरदिल अजीज, लाजवाब शै है
    ये गोलगप्पा ,
    भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े,
    ना होता कोई हक्का-बक्का,
    मुँह में घुलाया, फिर जीभ से,
    दिया अंदर धक्का,

    वाह ! वाह !

    आपकी रचना अच्छी हुई है. आपने दिल खोल कर आत्मीय भाव पिरोये हैं. इसलिए रचना भी स्वादिष्ट हुई है. :-))

    हार्दिक बधाई आ० अपर्णा जी. 

    वैसे, अन्यथा न होगा, आदरणीया, यदि आप मेरी भी एक पुरानी रचना ’फुलकी’ को इसी परिप्रेक्ष्य में देख जाइए. हालाँकि वह इलाहाबादी भाषा में है, लेकिन हिन्दी की भरपूर छौंक होने से समझने अवश्य कोई दिक्कत नहीं आयेगी. यह आग्रह नहीं मात्र सूचना है. :-)) 

    http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:177085

    सादर

  • Samar kabeer

    मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,आपकी कविता सुनकर मुंह में पानी आ गया,अभी मुंह में तकलीफ़ है वरना आज इसका स्वाद ज़रूर चखते,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
    'हींग और ज़ीरे का लगाया है तड़का'जहां तक मेरा ख़याल है, तड़का बघार लगाने को कहते हैं,जो दाल सब्ज़ी में लगाया जाता है,गोलगप्पे में तड़का नहीं लगाया जाता ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Dr.Prachi Singh

    वाह! बड़ी स्वदिष्ट रचना.....

    गोलगप्पे का नाम ही मुंह में पानी ला देता है , और आपने तो इतने सारे फ्लेवर्स पढ़ा पढ़ा कर पूरा पूरा ललचाया है..हाहाहा 

    सौरभ जी की छंदबद्ध फुलकी भी याद आ गयी ...सवैया छंद में है शायद 

    बहुत खूब 

    हार्दिक बधाई