हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये
घिर घिर आये कारे बादल
वैरी कोयल कूक उठी
अरमानों ने अंगड़ाई ली
और करेजे हूक उठी
बागों बीच पपीहा बोले
अमुआ डाली बौराये
हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये
खिड़की पर मायूसी पसरी
दरवाजों ने आह भरी
आँगन ज्यूँ शमशान हुआ है
कोने कोने डाह भरी
कब तक साँस दिलासा देगी
कब तक पायल भरमाये
हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये
फिर दिल ने आवाज लगाई
गौर करो इस अर्जी पर
कितने अरमानों से बुन बुन
उर की बंजर धरती पर
मैंने कितने गीत चुने हैं
कितने अफसाने गाये
हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये
तुम बिन सारा जग बिसराया
बस इतनी सी बात हुई
दिन कट जाता जैसे तैसे
वैरन काली रात हुई
मैं बिरहन बिरहा की मारी
कौन मुझे अब समझाये
हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
खिड़की पर मायूसी पसरी दरवाजों ने आह भरी आँगन ज्यूँ शमशान हुआ है कोने कोने डाह भरी कब तक साँस दिलासा देगी कब तक पायल भरमाये हर आहट पर यूँ लगता है जैसे हों साजन आये ...आदरणीय बृजेश जी सुंदर गीत के लिए मुबारकबाद आपको ...
तुम बिन सारा जग बिसराया बस इतनी सी बात हुई दिन कट जाता जैसे तैसे वैरन काली रात हुई मैं बिरहन बिरहा की मारी कौन मुझे अब समझाये हर आहट पर यूँ लगता है जैसे हों साजन आये बहुत खूब आदरणीय बृजेश जी ... प्रेम,विरह,स्मृति ,सब भावों का सुंदर गीत जो दिल में दूर तक असर करता है। कोमल भाषा और गीत प्रवाह पाठक को अंत तक बांधे रखता है। इस उत्तम गीत की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
आपकी पैनी नजर काबिले तारीफ हैं आदरणीया डा.प्राची जी..तीसरे बन्ध की तीसरी पंक्ति में 2 मात्राएँ कम रह गई..साथ ही तुकान्ता भी भिन्न है ध्यानाकर्षण के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर
आ० ब्रज जी , हिदी में १६,१४ जिसका अंत २२ से हो ककुभ छंद कहलाता है . आप आद्यांत २२२२२ क्यों निभा रहे हैं . यह तो उर्दू शायरी की बहरे मीर है . तो क्या आप गजल के मीटर पर हिन्दी गीत लिख रहे हैं . हिन्दी का मात्रा तनिक हटकर है . मैं कुछ उदाहरण देता हूँ -
कूक उठी [ २१ १२] और करेजे हूक़ उठी [२१ १२२ २१ १२] किसी शब्द का अंत हृस्व हो और फिर अनुवर्ती शब्द का प्रथम वर्ण हृस्व हो तो उर्दू शायरी में उसे दीर्घ मान लेते हैं , हालाँकि वहां भी इसे अच्छा नही माना जाता. हिन्दी में यह छूट बिलकुल नहीं है . अतः आप यदि हिन्दी गीत लिख रहे हैं तो ककुभ छंद में लिखे . इसमें दो राय नही कि आपके भाव सराहनीय है . गीत बहुत अच्छा है . और यदि आप extra effort डालना ही चाहते है तो थोड़ी मेहनत और करे तथा मात्रिक व्यवहार हिन्दी के अनुसार करें . सादर .
आपने बिलकुल उचित कहा आदरणीय डा.साहब...मैंने आपकी मील का पत्थर रचना कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे..पढ़ी अभी हाल में उससे मैं समझ गया हूँ कि कमी कहाँ है..फ़िलहाल मैं गीत को छंद मुक्त श्रेणी में रखता हूँ।हालाँकि मैं ये जानना चाहूँगा कि क्या बहरे मीर पे गीत रचना ठीक नहीं है??
चार पदों एवं 16-14 की यति का वह छन्द जिसका पदान्त दो गुरुओं से हो कुकुभ छन्द चार पदों एवं 16-14 की यति का वह छन्द जिसका पदान्त तीन गुरुओं से हो ताटंक छन्द चार पदों एवं 16-14 की यति का वह छन्द जिसका पदान्त उक्त पालन न करें और लघु-लघु गुरु या गुरु-लघु-लघु हो तो लावणी मेरा व्यक्तिगत मत है कि बहरे-मीर में गीत लिखा जा सकता है. बस मात्रा गिराने की छूट कम-से-कम ली जानी चाहिए.
फूल तुम्हे भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है प्रियतम मेरे ये तुम लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है ............ इस पंक्ति में 'ये' की मात्रा गिराई गई है और लय बाधित नहीं हो रही है.
आदरणीय तिवारी जी आपकी सुझाई गईं पंक्ति बहुत ही खूबसूरत है साथ ही जो बहुमूल्य जानकारी आपने साँझा की वो बहुत ही महत्वपूर्ण है।मैं अवश्य इसे ध्यान में रखूँगा..सादर
Ajay Kumar Sharma
Nov 2, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
Mohammed Arif
Nov 3, 2017
सदस्य कार्यकारिणी
rajesh kumari
आद० बृजेश कुमार जी बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने बहुत बहुत बधाई आपको
Nov 3, 2017
लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
सुंदर भावों के गीत के लिए हार्दिक बधाई श्री ब्रजेश कुमार जी
Nov 3, 2017
नादिर ख़ान
खिड़की पर मायूसी पसरी
दरवाजों ने आह भरी
आँगन ज्यूँ शमशान हुआ है
कोने कोने डाह भरी
कब तक साँस दिलासा देगी
कब तक पायल भरमाये
हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये ...आदरणीय बृजेश जी सुंदर गीत के लिए मुबारकबाद आपको ...
Nov 3, 2017
सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh
वाह! बहुत खूबसूरत गीत
पर एक जगह मात्र कम रह गयी और बोया आया का तुकांत भी सही नहीं इसे फिर से साधने का प्रयास हो
भाव और बिम्ब सुन्दर है
हार्सिक बधाई
Nov 3, 2017
Sushil Sarna
तुम बिन सारा जग बिसराया
बस इतनी सी बात हुई
दिन कट जाता जैसे तैसे
वैरन काली रात हुई
मैं बिरहन बिरहा की मारी
कौन मुझे अब समझाये
हर आहट पर यूँ लगता है
जैसे हों साजन आये
बहुत खूब आदरणीय बृजेश जी ... प्रेम,विरह,स्मृति ,सब भावों का सुंदर गीत जो दिल में दूर तक असर करता है। कोमल भाषा और गीत प्रवाह पाठक को अंत तक बांधे रखता है। इस उत्तम गीत की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 3, 2017
vijay nikore
गीत सुन्दर है, भाव प्रभावशाली हैं। हार्दिक बधाई।
Nov 4, 2017
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आ० ब्रज जी , हिदी में १६,१४ जिसका अंत २२ से हो ककुभ छंद कहलाता है . आप आद्यांत २२२२२ क्यों निभा रहे हैं . यह तो उर्दू शायरी की बहरे मीर है . तो क्या आप गजल के मीटर पर हिन्दी गीत लिख रहे हैं . हिन्दी का मात्रा तनिक हटकर है . मैं कुछ उदाहरण देता हूँ -
कूक उठी [ २१ १२] और करेजे हूक़ उठी [२१ १२२ २१ १२] किसी शब्द का अंत हृस्व हो और फिर अनुवर्ती शब्द का प्रथम वर्ण हृस्व हो तो उर्दू शायरी में उसे दीर्घ मान लेते हैं , हालाँकि वहां भी इसे अच्छा नही माना जाता. हिन्दी में यह छूट बिलकुल नहीं है . अतः आप यदि हिन्दी गीत लिख रहे हैं तो ककुभ छंद में लिखे . इसमें दो राय नही कि आपके भाव सराहनीय है . गीत बहुत अच्छा है . और यदि आप extra effort डालना ही चाहते है तो थोड़ी मेहनत और करे तथा मात्रिक व्यवहार हिन्दी के अनुसार करें . सादर .
Nov 4, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 5, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 5, 2017
Samar kabeer
जनाब गोपाल नारायण जी की बातों का संज्ञान लें ।
Nov 5, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 6, 2017
Ajay Tiwari
आदरणीय बृजेश जी,
इस खूबसूरत गीत प्रस्तुति के लिए. हार्दिक शुभकामनाएं.
'कितने अफसाने गाये' को 'तुम बिन कौन इन्हें गाये' या इसी वजन के किसी और उपयुक्त मिसरे से संशोधित कर सकते हैं.
बाकी रचना अरूजी नजरिये से ठीक है.
सादर
Nov 6, 2017
Ajay Tiwari
आदरणीय बृजेश जी,
अगर गीत में बहरे मीर और हिंदी के किसी छंद को एक साथ साधना हो तो मदिरा सवैया को आजमायें.
दोनों की तुलनात्मक संरचना ये है :
भगण भगण भगण भगण भगण भगण भगण गुरु
211 211 211 211 211 211 211 2
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा
सवैया में मात्रा को गिरा कर पढ़ने की छूट भी होती है, लेकिन इस में गुरु की जगह गुरु और लघु की जगह लघु ही आ सकता है.
सादर
Nov 6, 2017
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
आदरणीय बहुत अच्छा गीत लिखा है. हार्दिक बधाई....
चार पदों एवं 16-14 की यति का वह छन्द जिसका पदान्त दो गुरुओं से हो कुकुभ छन्द
चार पदों एवं 16-14 की यति का वह छन्द जिसका पदान्त तीन गुरुओं से हो ताटंक छन्द
चार पदों एवं 16-14 की यति का वह छन्द जिसका पदान्त उक्त पालन न करें और लघु-लघु गुरु या गुरु-लघु-लघु हो तो लावणी
मेरा व्यक्तिगत मत है कि बहरे-मीर में गीत लिखा जा सकता है. बस मात्रा गिराने की छूट कम-से-कम ली जानी चाहिए.
फूल तुम्हे भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है
प्रियतम मेरे ये तुम लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है ............ इस पंक्ति में 'ये' की मात्रा गिराई गई है और लय बाधित नहीं हो रही है.
सादर
Nov 6, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nov 6, 2017