"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178 के आयोजन के क्रम में विषय से परे कुछ ऐसे बिन्दुओं को लेकर हुई चर्चा की सूचना मिली है, और इसी क्रम में उक्त चर्चा को आयोजन के पटल पर पढ़ा और देखा भी गया है, जिनका होना ओबीओ पटल की परम्परा के अनुरूप कत्तई नहीं है. ऐसे कथन, ऐसे वाक्य किसी तौर पर किसी सदस्य की आनुशासनिक-प्रवृति का बखान तो नहीं ही करते, ओबीओ पटल की गरिमा और इसकी मूलभूत अवधारणा की भी अवमानना करते हैं.
ओबीओ के संचालन के लिए विशिष्ट परिपाटियाँ संयत हुई हैं जिसे ओबीओ-परम्परा के रूप में सभी सदस्य स्वीकारते हैं और उसी अनुरूप पटल पर व्यवहार भी करते आये हैं. ओबीओ गुरु-शिष्य, उस्ताद-शागिर्द की परम्परा के उच्च भावों का आग्रही है. इसी कारण, ओबीओ के पटल पर कोई व्यक्ति गुरु या उस्ताद नहीं होता या अन्यान्य सदस्य शिष्य या शागिर्द नहीं होते.
इस पटल पर गुरु या उस्ताद कोई है तो मात्र एक है - ओपन बुक्स ऑनलाइन का पटल अर्थात ओबीओ स्वयं..इस तथ्य को सभी पुराने सदस्य अच्च्छी तरह से जानते हैं. तथा यही सब कुछ नए सदस्यों से अपेक्षित है कि उन्हें जानना ही चाहिए. .
इस परिप्रेक्ष्य में टिप्पणियों के माध्यम से पोस्ट हुए निम्नलिखित उद्गार ओबीओ के पटल पर सदस्यों से अपेक्षित बर्ताव के विरुद्ध जाते हैं -
क. हम उस्ताद-ए-मुहतरम आदरणीय समर कबीर साहिब के शागिर्द हैं
ख. सभी ओबीओ के सदस्यों ने जो सीखा है यहीं सीखा है उस्ताद-ए-मुहतरम साहिब से
ग. अगर सच्चे मन से उस्ताद-ए-मुहतरम को गुरु माना होता तो आप सभी की गजलों का मैयार कुछ और ही होता
घ. सदस्य कार्यकारिणी होने के नाते तो धन्यवाद कहना चाहिए .. .. .. यह अहसान फ़रामोशी और नीचता नहीं तो और क्या है?
कुछ वाक्य तो निहायत ही घटिया स्तर के हैं, जिनका उल्लेख किया जाना तक असभ्यता की सीमा में आता है.
इस तरह के सवादों और वाक्यों का फिर तो अर्थ ही यही है, कि ऐसा कोई सदस्य पटल को एक ऐसे मंच की तरह व्यवहृत कर रहा है या इसके लिए प्रश्रय पा रहा है, जिसका आशय उसे व्यक्ति-विशेष की, या फिर अपनी, महत्ता को प्रतिस्थापित करना मात्र है. यदि कोई सदस्य किसी स्थान, किसी पटल या किसी व्यवस्था की परिपाटियों को बिना अपनाए कुछ भी कहता, या फिर करता है तो, या तो वह सदस्य अपने ढंग से अपने नजरिया को आरोपित करने का दुराग्रही है. या फिर, उसे इस पटल पर प्रश्रय देने वाले वरिष्ठ सदस्य ने पटल की परिपाटियों से उसे तनिक जानकार नहीं बनाया है. अवश्य ही, इसका कोई न कोई, कुछ न कुछ आशय अवश्य होगा.
गजल के आयोजन के प्रमुख आदरणीय समर कबीर जी हैं, जिनके जुड़ाव को ओबीओ का पटल हृदयतल से स्वीकार करता है. अपनी शारीरिक अवस्था और इसकी सीमाओं को देखते हुए आदरणीय समर जी ओबीओ पटल पर अपनी पहुँच बनाये रखने और इसके साथ अपने जुड़ाव को सतत रखने के लिए अपने स्तर पर कई तरह की व्यवस्थाओं और कई तरह के उपायों पर अमल करते रहते हैं. इसमें एक उपाय है, किसी नौजवान या किसी सदस्य को श्रुतिलेख के माध्यम से अपनी टिप्पणियों को पोस्ट करवाना.
पहले एक लम्बे समय तक उनका पुत्र ही इस कार्य के लिए आदरणीय समर कबीर जी का सहयोग करता था. इसकी चर्चा आदरणीय समर कबीर जी ने कई बार व्यक्तिगत बातचीत में मुझसे की थी. हाल ही में एक सदस्य ’इयूफोनिक अमित’ का भी उन्होंने मुझसे यह कह कर जिक्र किया था, कि वह उनकी वैचारिकता और उनकी सलाहों और उनके सुझावों को समझ पाता है, तथा उनकी अभिव्यक्तियों को पोस्ट कर पाता है.
इस बिना पर आदरणीय समर कबीर जी से स्पष्ट तौर पर पूछना बनता है, कि -
क. इस सदस्य को प्रश्रय देने के क्रम में पटल की परिपाटियों और यहाँ के व्यावहारिक अनुशासन आदि को समझाना आपने कैसे उचित नहीं समझा ?
ख. हालिया सम्पन्न तरही मुशायरा आयोजन के दौरान उक्त सदस्य के निहायत भद्दे अनुशासनहीन व्यवहार और उसकी उच्छृंखल निरंकुश वाचालता और टिप्पणियों को वे कैसे नहीं रोक पाये ?
ग. आदरणीय समर कबीर जी से आखिर ऐसी चूक कैसे हो गयी ?
हालिया सम्पन्न तरही मुशायरा आयोजन के दौरान हुई ऐसी चर्चा को गंभीरता से लेते हुए ओबीओ प्रबन्धन ने सूचित किया है कि आयोजन के पटल से वैसी सभी टिप्पणियों को हटा दिया गया है जो ओबीओ पटल की गरिमा के विरुद्ध पोस्ट की गयी थीं.
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विश्वास है, सभी सम्मनित सदस्य इस विषय पर अपनी बात रख कर इस पटल के वातावरण को सहज बनाने का प्रयास करेंगे.
सादर
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
मैं अपने प्रस्तुत पोस्ट को लेकर बहुत संयत नहीं हो पा रहा था. कारण, उक्त आयोजन के दौरान हुए कुल उट-पटांग संवाद-क्रम के सूत्र आदरणीय समर कबीर जी को बाँध रहे थे. कि, आरोपित सदस्य, आदरणीय समर जी का कथित शागिर्द न केवल उनके हवाले से अपनी सारी ऊल-जुलूल बातें पोस्ट कर रहा था, उन सारे वाहियात पोस्ट --जिन्हें ओबीओ प्रबन्धन ने संज्ञान ले कर पटल से हटा दिया है-- के हवाले से यह भी स्पष्ट हुआ है, कि उक्त सदस्य को न तो इस मंच पर अपेक्षित व्यवहार की कोई समझ है, न ही ओबीओ पटल के आम सदस्यों के व्यक्तित्व और उनकी गरिमा की परवाह ही है. ऐसा कुछ है, तो यह किसी व्यक्ति के किसी तरह के ज्ञान, उस ज्ञान की उपयोगिता, उस ज्ञान की तार्किकता, हर कुछ, पर वस्तुतः गंभीर प्रश्न खड़े करता है.
इन संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में आज दोपहर में मेरी आदरणीय समर जी से बातचीत हुई. आदरणीय समर कबीर जी भारी सर्दी-खाँसी से बेतरीके प्रभावित होने के कारण न केवल अपने स्वास्थ्य को लेकर परेशान दीखे, उन्होंने बताया कि वे उच्च ज्वर में भी थे. और तो और, आपका परिवार तथा वे एक अत्यंत ही विकट दौर से गुजर रहे हैं. आदरणीय के दो चचाजात भाई पिछले एक सप्ताह में दिवंगत हो चुके हैं. यह किसी संवेदनशील व्यक्ति तथा उसके परिवार के लिए अत्यंत कठिन समय है. फिर भी, चर्चा के दौरान आपने मेरी बातें पूरी गंभीरता से सुनीं और उक्त संवाद-क्रम पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त कीं. उन्होंने स्वीकार किया कि आदरणीय नीलेश शेवगांकर भाई ने उनसे सम्पर्क कर उक्त अतुकांत घटनाक्रम से वाकिफ करा दिया था.
मैं सर्वप्रथम आदरणीय समर जी से हुई बातचीत के तथ्यों को बिना किसी व्याख्या के बिन्दुवत प्रस्तुत कर रहा हूँ:
प्रश्न 1. क्या उक्त सदस्य को अपनी टिप्पणियों के लिए श्रुतिलेख हेतु चयनित करने के पूर्व इस पटल के सदस्यों की गरिमा, इस पटल के ’हेतु’ और इसके होने के ’मूल कारण’ को आपने स्पष्ट किया था ?
प्रश्न 2. क्या कथित ’शागिर्द’ के व्यक्तित्व और उसके सामाजिक व्यवहार से आप परिचित थे ?
प्रश्न 3. क्या उक्त सदस्य के व्यक्तित्व और सामाजिक व्यवहार से आप संतुष्ट थे ?
प्रश्न 4. क्या आपने अपने कथित ’शागिर्द’ को बताया था, कि पटल पर किसी को ’गुरु’ या ’उस्ताद’ आदि उद्बोधित करना ऒबीओ की परिपाटी के अनुसार अशोभनीय है ?
प्रश्न 5. क्या आपको कभी किंचित भान हुआ कि उक्त सदस्य आपको कथित ’उस्ताद’ कहते हुए आपके व्यक्तित्व को लगातार कितनी क्षति पहुँचाता जा रहा है ?
आदरणीय समर जी वस्तुतः ग्लानिवत चुप अधिक बने रहे. वे मेरे प्रश्नों का अस्फुट शब्दों में ही उत्तर दे पा रहे थे. उनके उत्तर को बिना किसी व्याख्या के बिन्दुवत प्रस्तुत कर रहा हूँ;
उत्तर 1. हाँ, उसे अवश्य ही बताया था कि ओबीओ कोई आम पटल नहीं है. वह ओबीओ के तथ्यों से परिचित था. उसे यह भी बताया था कि आदरणीय नीलेश भाई और आदरणीय गिरिराज जी जैसे सदस्य मंच के पुराने सदस्य हैं.
उत्तर 2. वह पटल पर आने के पूर्व गजल पर अपनी समझ के कारण सम्पर्क में आया था. जिसमें और परिमार्जन की आवश्यकता प्रतीत हो रही थी.
उत्तर 3. गजल के व्याकरण पर उसकी समझ चूँकि आश्वस्तिकारी थी, अतः सामयिक आवश्यकता के कारण उसे अपने श्रुतिलेख हेतु चयनित किया था.
उत्तर 4. उसे जरूर बताया था. लेकिन तरही मुशायरा के आयोजन 178 के दौरान अपने चचाजत भाइयों के दिवंगत हो जाने के कारण मंच पर उपस्थित नहीं हो पाया था. वह मेरी अनुपस्थिति में मनमाना व्यवहार कर गया.
उत्तर 5. हाँ, समझ में आ रहा है. सारी बातें जान कर उस पर मैं बहुत गुस्सा हुआ. उसको पटल से फिलहाल दूर रहने को कहा है.
सधन्यवाद
Apr 30
Samar kabeer
प्रिय मंच को आदाब,
Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच वो ओबीओ के सदस्य भी बन गए और यहाँ के सभी आलेख और पिछले आयोजनों में आई टिप्पणियों को मेरे कहने पर पढ़ते रहे लेकिन कभी कहीं भी कोई टिप्पणी नहीं की सीखने के लिए पढ़ते रहे ।
जब मंच की तरफ़ से मुझ पर तरही मुशाइर: के संचालन की ज़िम्मेदारी आ गई तो जैसा कि आप सब जानते हैं मैं अपनी आँखों की बीमारी में मुब्तिला रहा हूँ पिछले साल इस बीमारी में ये इज़ाफ़ा हो गया कि मेरी दोनों आँखों में ख़ून उतर आया,इलाज के लिए इंदौर के एक बड़े अस्पताल से सम्पर्क किया वहाँ पता चला कि मेरी दाईं आँख बिल्कुल ख़राब हो चुकी है और बाईं को बचाने का प्रयास डॉक्टर कर रहे हैं,और अभी तक उसका इलाज चल रहा है ।
ख़ैर, इस दौरान जब मैं ओबीओ पर कमेंट करने लाइक़ नहीं था मैंने euphonic अमित से कहा कि वो तरही मुशाइर: में आई ग़ज़लों की इस्लाह कर दिया करें,उन्होंने मेरे कहने पर ऐसा किया और पूरी लगन और मिहनत से सबका दिल जीत लिया सभी उनकी टिप्पणियों को पसंद करते थे उसके गवाह पिछले आयोजन हैं ।
इस बीच मैं भी आयोजन देखता रहता था,तरही मुशाइर: अंक-178 के दौरान मेरे परिवार में मेरे चचेरे जवान भाई का देहांत होने के कारण मैं ओबीओ पर नहीं जा सका, मुझे जनाब निलेश जी ने फ़ोन पर बताया कि मंच पर ऐसी टिप्पणियाँ आई हैं जो ओबीओ की गरिमा को दाग़दार कर रही हैं तो यक़ीन जानिए ऐसा लग जैसे मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई है, मगर मैं उस समय कोई ऐक्शन नहीं ले सका क्योंकि मैं अपने परिवार में सबसे बड़ा हूँ और मेरी हालत आप समझ सकते हैं, दूसरे दिन मैंने अमित से बात की और क्या कुछ कहा ये बताने की ज़रूरत नहीं है,इतना बताना चाहूँगा कि मैंने अमित को ओबीओ से दूर रहने के लिए कहा ।
मुझे इस वाक़िए का बेहद अफ़सोस है,और अमित मेरा शागिर्द है इसलिए मैं आप सबसे इसके लिए क्षमा चाहता हूँ ।
अब ज़रा इस बात पर भी ग़ौर करने की ज़रूरत है कि ऐसे हालात क्यों बने?
एक लम्बे समय से ओबीओ की प्रबंधन टीम अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह छुपा रही है:-
'रखियो ग़ालिब मुझे इस तल्ख़ नवाई से मुआफ़
आज कुछ दर्द मेरे दिल में सिवा होता है'
ये कहना ग़लत नहीं होगा कि काफ़ी समय से पुराने सदस्यों ने मंच पर आना तो दूर वहाँ झाँकना भी पसंद नहीं किया, मैं बराबर सबसे फ़ोन पर ओबीओ पर आने के लिए गुज़ारिश करता रहा,हर महीने वास्ट्सऐप के माध्यम से मुशाइर: में आने की दावत देता रहा,मगर कोई नहीं आया ।
जिन हज़तात ने इस पोस्ट पर अपनी महब्बत का इज़हार किया है वो सब झूटी महब्बत है,(मुझे ये बात कहने के लिए मुआफ़ किया जाए) मगर ये हक़ीक़त है,अब मैं नामज़द सबके बारे में बताऊँगा:-
इस पोस्ट के लिखने वाले जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब बताएँ कि उनकी ऐसी कौनसी व्यस्तता थी कि उनके संचालन में चलने वाला आयोजन "चित्र से काव्य तक" में वो एक महीने में दो दिन भी मंच पर नहीं आ सके ।
वो कौन था जो उन्हें रात के 12 बजे फ़ोन कर के कहता था कि जनाब बाग़ी जी,और जनाब योगराज प्रभाकर साहिब मेरा फ़ोन नहीं उठा रहे हैं आप ही आयोजन का रिप्लाई बॉक्स ओपन कर दें ।
सबसे पहली टिप्पणी करने वाले जनाब तिलक राज कपूर साहिब जो अब रिटायर भी हो चुके हैं और जिन के काँधों पर मंच ने "ग़ज़ल की कक्षा" चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी वो क्या थोड़ा समय भी मंच को नहीं दे सकते थे?
जनाब शिज्जु शकूर साहिब जो साल्हा साल से कार्यकारणी सदस्य का ठप्पा लगा कर घूम रहे हैं और आज बड़े बडे वादे कर रहे हैं अभी तक कहाँ थे?
जनाब गिरिराज भंडारी जी अभी मंच पर सक्रिय हुए हैं,ईमानदारी से बताएँ कि मैंने माज़ी में उन्हें कितनी बार फ़ोन कर के गुज़ारिश की है कि मंच पर वापस आ जाएँ तो वो मुझे जवाब देते थे कि समर भाई ओबीओ पर आने का कोई फ़ाइदा नहीं क्योंकि वहाँ किसी भी चर्चा का कोई नतीजा नहीं निकलता ।
जनाब रवि शुक्ल जी बताएँ कि मैंने कितनी बार उन्हें फ़ोन किया कि ओबीओ पर आया करें, कभी वो मेरी बात मान कर आ जाते थे फिर ग़ायब हो जाते थे ।
सिर्फ़ एक सदस्य हैं जनाब निलेश 'नूर' जो इस दौरान मुशाइरों में भी शिर्कत करते रहे और ब्लॉग्स पर अपनी ग़ज़लें भी पोस्ट करते रहे और दूसरों की ग़ज़लों पर टिप्पणी भी करते रहे ।
आज फिर सभी में जोश नज़र आ रहा है और ब्लॉग्स भी आबाद हो रहे हैं, देखना है ये जोश कब तक रहता है?
अपने लहजे की कड़वाहट के लिए एक बार फिर मुआफ़ी चाहता हूँ, इस शे'र पर अपनी बात ख़त्म करता हूँ:-
"बात सच है तो फिर क़ुबूल करो
ये न देखो कि कौन कहता है"
May 1
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही है। यह न केवल अत्यंत खेदजनक है, बल्कि मुझे गहरे स्तर पर व्यथित और क्षुब्ध भी कर रही है।
हम सभी ओबीओ मंच को एक परिवार की भावना से देखते रहे हैं—और यह भाव भविष्य में भी अक्षुण्ण रहेगा। ऐसे में, किसी भी सदस्य को इस अवधारणा के प्रतिकूल आचरण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
यूफोनिक अमित नामक सदस्य की भाषा मैंने पढ़ी है; उसके पीछे की मानसिकता और विद्वेषपूर्ण भाव स्पष्ट दिखाई देते हैं, जो सर्वथा अस्वीकार्य है। वे स्वयं को समर कबीर जी का शिष्य बताते हैं—परंतु कोई भी सच्चा शिष्य अथवा गुरु परंपरा में आस्था रखने वाला व्यक्ति इस प्रकार की निम्नस्तरीय भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता। ओबीओ के सम्मानित सदस्यों को एहसानफरामोश कहना अत्यंत अपमानजनक है। इसी प्रकार यह दावा करना कि उन्होंने ग़ज़ल की सम्पूर्ण शिक्षा केवल समर कबीर जी से प्राप्त की है—न केवल मंच के अन्य सदस्यों की प्रतिभा का उपहास है, बल्कि यह गुरु–शिष्य परंपरा के गरिमामय स्वरूप का भी अवमूल्यन करता है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
और भी खेदजनक बात यह रही कि स्वयं समर कबीर जी द्वारा यह टिप्पणी की गई कि ओबीओ के कुछ सदस्यों द्वारा उन्हें दिया गया सम्मान ‘कृत्रिम’ है। यह वक्तव्य अत्यंत आपत्तिजनक है और इससे मुझे व्यक्तिगत रूप से गहरी ठेस पहुँची है।
यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है कि मंच पर किसी सदस्य की अस्थायी निष्क्रियता को उपेक्षा या पलायन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अनेक निष्क्रिय सदस्यों ने भी इस मंच को जीवंत बनाए रखने के लिए अपने स्तर पर यथासंभव योगदान दिया है—उसका विश्लेषण यहाँ करना अनुचित होगा।
जहाँ तक यूफोनिक अमित जैसे सदस्य का प्रश्न है—उनकी अभिव्यक्ति, उनकी मानसिकता और उनकी भाषा इस मंच की गरिमा और अनुशासन के सर्वथा विपरीत है। वे मंच की मर्यादा, शिष्टाचार और साहित्यिक परंपरा से अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं, चाहे वे स्वयं को किसी बड़े नाम से जोड़ने का प्रयास करें। उन्हें यह समझना चाहिए कि ग़ज़ल इस मंच की अनेक विधाओं में से एक है—एकमात्र नहीं।
इसलिए, यूफोनिक अमित को उनकी अभद्र भाषा, मंच की मर्यादा भंग करने और ओबीओ परिवार की आत्मा को ठेस पहुँचाने के कारण तत्काल प्रभाव से मंच से निष्कासित किया जाता है।
May 1